दादा जी: सारा दिन मोबाइल! फेसबुक...बोर नहीं होता क्या तू? ऐसा क्या है उसमें? पोता: अरे दादा जी आप एक काम करो, आप इसमें अपने पुराने मित्रों को ढूँढो! इसे एक बार इस्तेमाल करके देखो! फिर कहना! दादा जी: मुझे नहीं करना ये सब! पोता: एक बार करके तो देखिये! दादाजी: अरे, वो सब तो मेरे साथ तीसरी, चौथी तक पढ़े... उन सबको ये पता होगा क्या? पोता: अरे, आप एक बार, ट्राय तो करो दादा जी! और फिर 88 साल के सदानंद जी का फेसबुक अकाउंट बनाया गया! आधे घंटे के भीतर, चन्द्रकान्त पाटिल, यशवंत राव और झामलू यादव, इत्यादि इनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट आ गई! यह सब फ्रेंड रिक्वेस्ट देखते ही दादा जी की आँखें चमक उठीं और वे पोते से बोले, "अरे, बेटा जरा देख तो... इसमें लीलावती चौरसिया या फिर मंदाकिनी चौहान, इनका कहीं पता लगता है क्या?" |
एक जाट के पड़ोस में बनिया रहता था। बनिया की बीवी गुजर गई। जाट ने सोचा बनिया के पास बहुत पैसे हैं, कुछ आमदनी की जाये।
जाट छाती पीटता हुआ बनिये के घर जा कर रोते हुए कहने लगा, "मेरा तुम्हारी बीवी से बहुत प्यार था। मैं उसके बिना कैसे जीऊंगा, मुझे भी इसके साथ जला आओ।" बनिया हाथ जोड़ कर बोला, "चौधरी दूर- दूर से रिस्तेदार आने वाले हैं। ऐसे मत कर। बहुत बेइज्जती होगी।" जाट: ठीक है, एक लाख रुपए दे दे, मैं चुपचाप चला जाऊंगा। बनिये ने एक लाख रुपए दे दिए और जाट खुशी खुशी अपने घर चला गया। कुछ दिन बाद जाट की घरवाली मर गई। बनिये ने सोचा अब मौका आया है जाट से ब्याज समेत पैसे वापिस लाऊंगा। बनिया रोता हुआ जाट के घर जा कर बोला, "मेरा और तुम्हारी घरवाली का बहुत प्यार था। मैं भी इसके साथ मरूंगा, मने भी इसके साथ फूँक आओ।" यह सुनकर जाट अपने लड़कों से बोला, "छोरो, थारी माँ कहे तो करै थी कि मेरा एक बनिये तै प्यार है। अच्छा तो ये ही है वो बनिया, फूँक आओ इस ने भी अपनी माँ के साथ।" बनिया: चौधरी माफ कर दे। मैं तो मजाक कर रहा था। जाट: ठीक है, दो लाख रुपये ले आ, वरना लड़के तनै फूकण नै तैयार खड़े हैं। |
एक बार एक आदमी अपनी प्रेमिका के साथ पार्क में बाहों में बाहें डाल कर बैठा हुआ था और कुछ बड़ी ही रूमानी बातें कर रहा था कि तभी अचानक वहां एक हवलदार आया और बोला, "आपको शर्म नहीं आती आप एक समझदार व्यक्ति होकर खुलेआम पार्क में ऐसी हरकत कर रहे हैं"।
आदमी: देखिये हवालदार साहब आप गलत समझ रहे हैं, जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है। हवलदार: तो कैसा है? आदमी: जी हम दोनों शादीशुदा हैं। हवालदार: अगर तुम शादीशुदा हो तो फिर अपनी ये प्यार भरी गुटरगूं अपने घर पर क्यों नहीं करते। आदमी: हवालदार साहब कर तो लें पर वहां मेरी पत्नी और और इसके पति को शायद अच्छा नहीं लगेगा। |
बहुत समय पहले एक नगर में एक राजा था। एक दिन उसने एक सर्वे करने का सोचा, जिससे कि यह पता चल सके कि उसके राज्य के लोगों की घर गृहस्थि पति से चलती है या पत्नी से।
उसने एक ईनाम रखा कि "जिसके घर में पति का हुक्म चलता हो उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए।" एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे। राजा को चिंता होने लगी कि क्या मेरे राज्य में सभी सेब वाले ही हैं? इतने में एक लम्बी-लम्बी मूछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल-लाल आखों वाला जवान आया और बोला, "राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुक्म चलता है! लाओ घोडा़ मुझे दीजिये!" राजा खुश हो गए और कहा, "जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा।" जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया। घर गया और फिर थोडी़ देर में दरबार में वापिस लौट आया। राजा: क्या हुआ? वापिस क्यों आये हो? आदमी: महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतीक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दीजिये! राजा: घोडा़ रख और सेब लेकर निकल। इसी तरह रात हो गई दरबार खाली हो गया लोग सेब लेकर चले गए। आधी रात को महामंत्री ने राजा के कमरे का दरवाजा खटखटाया! राजा: बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ? महामंत्री: महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा, इसकी जगह एक मण अनाज या सोना रखा होता तो लोग कुछ दिन खा सकते थे या जेवर बना सकते थे। राजा: मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा। महामंत्री: महाराज आपके लिए सेब काट दूँ! राजा को हँसी आ गई और पूछा, "यह सवाल तुम दरबार में या कल सुबह भी पूछ सकते थे। तो आधी रात को क्यों आये?" महामंत्री: मेरी धर्मपत्नी ने कहा अभी जाओ और पूछ के आओ सच्ची घटना का पता चले। राजा (बात काटकर): महामंत्री जी, सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए। शिक्षा: समाज चाहे कितना भी पुरुष प्रधान हो लेकिन संसार स्त्रीप्रधान है! |