है फिर भी सुकून कि 'तलाश' है; मालिक तेरा बंदा कितना 'उदास' है; क्यों खोजता है इंसान 'राहत'; जब कि दुनिया में सारे 'मसलों' का हल है तेरी 'अरदास' में! |
को काहू को मित्र नहीं, शत्रु काहू को नाय; अपने ही गुण दोष से, शत्रु मित्र बन जाय। |
बोली माहि कठोरता, प्रभु को नाहि सुहाय; सोई जीभ माही हड्डी, प्रभु ने दीन्ही नाय। |
यदि तुम अपनी इच्छा से नहीं, भगवान की इच्छा से ही चल रहे हो तो; सैकड़ों जन्म-मृत्युओं में जाना भी तुम्हारे लिये सौभाग्य और परमानन्द है। |
हमने हर शाम चिरागों से सजा रखी है; मगर शर्त हवाओं से लगा रखी है; न जाने कौन सी राह से मेरे साईं आ जाएँ; हमने हर राह फूलों से सजा रखी है। |
मेरी औक़ात से बाहर मुझे कुछ ना देना मेरे मालिक; क्योंकि ज़रूरत से ज्यादा रोशनी भी इंसान को अंधा बना देती है। |
कर ऐसी इनायत अए साहिबा तेरा शुकर मनाना आ जाए; हम बन्दे हैं बन्दों की तरह हमें प्यार निभाना आ जाए। |
मैं और मेरा इश्वर, दोनों एक जैसे हैं। हम रोज़ भूल जाते हैं। वो मेरी गलतियों को और मैं उसकी . .. ... मेहरबानियों को। |
तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मालिक; वर्ना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं। ॐ साईं राम। |
दुख मे सिमरन सब करे सुख में करे न कोए; जो सुख में सिमरन करे तो दुख काहे को होए। |