फिर पलट रही हैं सर्दी की सुहानी शामें, फिर उनकी याद में मुठ मारनें के ज़माने आ गये! |
सर्दियों के लिए विशेष: चूत मारने का मज़ा भी तभी आता है ग़ालिब, जब, मौसम हो जाड़े का और भोसड़ा हो भाड़े का। |
बारिश हो और ज़मीन गीली न हो; धुप निकले और सरसों पीली न हो; तो फिर आपने यह कैसे सोच लिया कि; नींद मे आप की याद आये और सलवार गीली न हो! |
इस सुहाने मौसम में तुम्हारा साथ हो; गर्म बिस्तर में कम्बल ओढ़े तुम पास हो; मेरे होंट तुम्हें छूने को तरसें; काश ऐसा भी एहसास हो! |