पूजा ने एक इंटरव्यू में बताया कि फिल्मोद्योग अब भी एक बच्चे की तरह है। आपका उस स्तर (सेंसर बोर्ड) तक पहुंचने से पहले अपने खुद के समुदाय से लडम्ना मजाक नहीं है। इसलिए मुझे लगता है कि न केवल सेंसर बोर्ड को बल्कि सर्वप्रथम फिल्मोद्योग को बहुत सुधार करना होगा।
बीते वर्षों में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को 'अनफ्रीडम' जैसी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने और फिल्मों में वैधानिक चेतावनी जारी करने को जरूरी बनाए जाने के चलते कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है।
'दिल है के मानता नहीं', 'सड़क', 'सर', 'जख्म' और 'तमन्ना' जैसी फिल्मों में अपनी दमदार अदाकारी से प्रभाव छोड़ने वाली पूजा ने कहा कि फिल्मोद्योग के लोगों को समस्याओं को लेकर अकेले-अकेले संघर्ष करने की बजाय एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए।
पूजा ने कहा, ''हम सिर्फ अपनी-अपनी लड़ाई लड़ते हैं। मेरे ख्याल से हमें उस तरह समझने की जरूरत है।''
पूजा (43) ने बॉलीवुड में बतौर अभिनेत्री करियर की शुरुआत 'डैडी' (1989) से की और 2004 में 'पाप' निर्देशन की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने 'हॉलीडे', 'धोखा', 'कजरारे' और 'जिस्म 2' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। यही नहीं, उन्होंने फिल्में भी बनाईं।
अपनी फिल्मों में बोल्ड दृश्यों को शामिल करने के लिए जानी जाने वाली पूजा का मानना है कि दर्शक हमेशा से बोल्ड और प्रयोगधर्मी विषयों के लिए तैयार रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमने जब 'जिस्म' या 'सड़क' की, तो लोगों ने कहा कि यह नहीं चलेगी। लेकिन यह चली और इसे किसने अपनाया? दर्शकों ने अपनाया। दर्शक हमेशा तैयार थे। फिल्म बनाने वाले लोग ही यह मानते हैं कि वे (दर्शक) इसके लिए तैयार नहीं हैं। हमें बड़े होने की जरूरत है।