यह फिल्म 31 अक्टूबर 1984 की जब दो सिख बॉडीगुर्द ने मिलकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी। जिसने पूरा पोलिटिकल सेनारिओ को ही हिलाकर रख दिया और जिसकी वजह से लोगो का नजरिया एक विशेष समुदाय के लिए पूरी तरह से बदल गया। वास्तविक जीवन पर आधारित इस फिल्म माध्यम से लोगो को तांत्रिक चालाकियों के और उस दिन दिल्ली के लोगो ने क्या देखा यह दर्शाया है, इस फिल्म को लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में स्पेशल स्क्रिीनिंग के लिए चुना गया।
फिल्म की अच्छी प्रतिक्रिया के बाद अभिनेता वीर दास का कहना है कि "वहां पर मेरा अनुभव बहुत ही बेहतरीन रहा, समारोह में लोगो से बातचीत के दौरान मैंने लोगो को बताया कि मैं इस तरह के समारोह में जल्दी हिस्सा नहीं लेता लेकिन 31 अक्टूबर एक ऐसी फिल्म है। जिसे लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल जैसे प्लेटफार्म पर दिखाना फिल्म के लिए ज़रूरी है, यह फिल्म एक साधारण परिवार की कहानी है, यह कहानी है कि किस तरह आप अपने परिवार को बचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं।