प्रकाश झा 'जय गंगाजल' से पहले मध्य प्रदेश और खासकर भोपाल में छह फिल्मों की शूटिंग कर चुके हैं।
एक संवाददाता ने प्रकाश झा से पूछा क्या व्यापमं पर फिल्म बनाने का उनका कोई विचार है। इस पर उन्होंने कहा कि वह किसी ज्वलंत मुद्दे पर फिल्म नहीं बनाते, बल्कि किसी खास मुद्दे से समाज पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखकर फिल्म बनाते हैं।
उन्होंने कहा, `अभी तक ऐसी कोई भावुक कहानी उनके सामने नहीं आई है, जिस पर फिल्म बनाई जा सके। अभी तक इस विषय न तो कोई शोध किया है और न ही कोई इस तरह की कहानी लेकर आया है। अभी इस विषय पर सोचा ही नहीं है।`
प्रकाश झा ने आगे कहा कि `समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण का अहसास हो रहा है, महिलाओं के लिए मंदिर के दरवाजे खुल रहे हैं, महिलाएं पुलिस में जा रही हैं। जय गंगाजल में प्रियंका चोपड़ा ने भी पुलिस अफसर बनकर यही दिखाया है। समाज, व्यवस्था में महिलाएं संघर्ष कर कैसे खड़ी होती हैं, इसकी चर्चा होती है। यही सब है इस फिल्म में।`
सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी द्वारा 'जय गंगाजल' को ए सर्टिफिकेट दिए जाने के सवाल पर झा ने कहा कि `एक व्यक्ति सब कुछ साफ कर देना चाहता है। इस फिल्म में अश्लीलता, हिंसा, द्विअर्थी शब्द आदि नहीं थे, मगर उन्होंने 'साला' शब्द पर आपत्ति जताई थी। हमारे यहां 'साला मैं तो साहब बन गया, खटिया सरकाय लो जाड़ा लगे' जैसे गाने नहीं थे और खडूस जैसे नाम की फिल्म बन चुकी है, जिसे सेंसर बोर्ड ने पास किया है। मैं न्यायाधिकरण गया, जहां से फिल्म को 'साला' शब्द के साथ रिलीज की अनुमति मिल गई। न्यायाधिकरण को फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा, ए सर्टिफिकेट से बच गया।`