निर्देशक: प्रशांत सिंह
रेटिंग: *1/2
उत्तर प्रदेश और बिहार में सदियों पुरानी एक प्रथा है 'पकडवा शादी', जो परिवार मोटा - ताज़ा दहेज़ नहीं दे पाते वो इस प्रथा को अपनाते हैं जहाँ दुल्हे की ज़बरदस्ती लड़की से शादी करवा दी जाती है.
अब यूपी - बिहार बैकग्राउंड वाली फ़िल्में आज कल दर्शकों को लुभा रही हैं, बस इसीलिए डायरेक्टर 'प्रशांत सिंह' ने इस टॉपिक पर फिल्म बना दी.
जबरिया जोड़ी कहानी है पटना के अभय सिंह (सिद्दार्थ मल्होत्रा) और बबली यादव (परिणीती चोपड़ा) की, यहाँ ये बता दें है की परिणीती चोपड़ा और सिद्दार्थ मल्होत्रा की सुपरहिट 'हँसी तो फसी' (2014) के बाद यह दूसरी फिल्म है.
कहानी की शुरुआत होती हैं पटना के एक स्कूल से जहाँ अभय (सिद्दार्थ मल्होत्रा) और बबली (परिणीती चोपड़ा) एक दूसरे को पसंद करते हैं, जब बबली का परिवार शहर छोड़ कर जाता है तो अभय, बबली के पिता दुनियालाल (संजय मिश्रा) से उसका हाथ तक मांग बैठता है, और यहीं उसकी बचपन की प्रेम कहानी ख़त्म हो जाती है.
अगले ही सीन में हमारी मुलाकात एक जवान बबली से होती है जो अपने बॉयफ्रेंड के साथ भागने वाली है, पर उसका दिल टूट जाता है जब लड़का मुकर जाता है, गुस्से में बबली उसे सबके सामने पीटती है और मीडिया बबली को 'बबली बम' का नाम दे देती है.
अभय भी अब बड़ा हो चुका है और अपने पिता हुकुम देव सिंह (जावेद जाफ़री) की बतायी राह पे चलते हुए दुल्हों को किडनैप करके उनकी ज़बरदस्ती शादियाँ करवाता है जो उसके हिसाब से समाज सेवा है.
बबली की एक दोस्त की शादी में एक दिन अभय और बबली की फिर मुलाकात होती है और बचपन के प्यार की आग फिर सुलग उठती है जिसके बाद एक के बाद एक कंफ्यूज करने वाले हालात पैदा होते हैं और स्क्रीन के पात्रों के साथ दर्शक भी कंफ्यूज हो जाते हैं.
फिल्म जितनी लम्बी है उससे कहीं ज्यादा लम्बी लगती है क्योंकि कहानी का रूपांतरण बेहद धीमा है और निर्देशन उससे भी कमज़ोर!
कहानी में कॉमेडी के साथ एक मेसेज देने की भी नाकाम कोशिश की गयी है कि जबरिया कुछ भी अच्छा नहीं होता, इसीलिए शायद फिल्म भी अच्छी नहीं बनी (जबरिया है), दर्शकों को लुभाने के लिए एली अवराम और अलंकृता सहाय के आइटम नंबर भी ठूंसे गए हैं.
परफॉरमेंस की बात करें तो अभय के रोल में सिद्दार्थ की कास्टिंग ही गलत है, उनकी पर्सनालिटी पटना के अभय सिंह वाली नहीं लगती. रंग बिरंगे कपड़ों में अभय का किरदार नकली लगता है जिसका मुख्य काम अपने आस पास के लोगों का थप्पड़ मारना है.
परिणीती के किरदार का फैशन सेंस देख कर लगता है वो बिहार की नहीं मुंबई की है और पटना में अटक गयी है. 'बबली बम' के किरदार में दम था जिसे ठीक से लिखा नहीं गया, परिणीती ने फिर भी किरदार के साथ इन्साफ करने की पूरी कोशिश की है.
बबली के शायर दोस्त के रूप में (संतोष) अपारशक्ति खुराणा और सिद्दार्थ के दोस्त गुड्डू (चन्दन रॉय सान्याल) का ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया है.
दुनियालाल के किरदार में (संजय मिश्रा) ने अच्छा काम किया है, बाकी कलाकारों ने अपने किरदार के हिसाब से ठीक-ठाक परफॉरमेंस दी है.
फिल्म का संगीत कुछ ख़ास नहीं है, तनिष्क बागची ने म्यूजिक के नाम पर कुछ गाने रीमेक भी कर दिए हैं जिन्में हनी सिंह और अशोक मस्ती का 'ग्लासी' और भोजपुरी गाना 'जिला हिलेला' शामिल है.
निर्देशक प्रशांत सिंह की ये पहली फिल्म है जो फिल्म देख कर मालूम भी पड़ता है, कहानी ठीक से न दिखा पाने के साथ प्रशांत कलाकारों को क्षमता का भी पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाए है.