डायरेक्टर: सुजीत
रेटिंग: **1/2
भारत की सबसे बड़ी एक्शन फिल्म बनाने के प्रयास में निर्देशक सुजीत शायद फिल्म को ग्रैंड दिखाने की कोशिश में छोटी - छोटी चीज़ों पर ध्यान नहीं दे सके और अपने सपने को फ़िल्मी परदे पर ठीक से उकेरने में कामयाब होते नहीं नज़र आते.
साहो शुरू होती के एक काल्पनिक शहर 'वाजी' में जहाँ के एक बड़े क्रिनिमल सिंडिकेट के बादशाह रॉय (जैकी श्रॉफ) की भारत में एक एक्सीडेंट में मौत हो जाती है. रॉय के जाते ही उसकी कुर्सी, साम्राज्य और उसके द्वारा छुपाये लाखों करोड़ रूपए के सोने और जहाँ सोना छुपाया गया है उस वॉल्ट को खोलने के लिए ज़रूरी एक 'ब्लैक बॉक्स' के लिए राजनीति और खून खराबा शुरू होता है.
रॉय के सिंडिकेट का सदस्य 'देवराज' (चंकी पाण्डेय) रॉय की जायदाद हड़पने के लिए एक अंदरूनी साज़िश रचता है जिसे रॉय का बेटा विश्वांक (अरुण विजय) नाकाम कर देता है.
इसके बाद फिल्म में ग्रैंड एंट्री होती है हमारे हीरो प्रभास उर्फ़ अशोक की जो की एक अंडरकवर पुलिस ऑफिसर है और अशोक के बेफिक्र अवतार में प्रभास खूब जचे हैं. अशोक को देश में लगातार हो रही हज़ारों करोड़ की रस्यमायी लूट को रोकने का केस सौंपा जाता है. इस दौरान उसे मुंबई क्राइम ब्रांच ऑफिसर अमृता नायर (श्रद्धा कपूर) से प्यार हो जाता है. यह सफ़र अशोक को रॉय और उसके सोने के लिए चल रही जंग के बीच ले जा कर खड़ा कर देता है और कैसे हमारा हीरो क्रिमिनल्स के साम्राज्य का खात्मा करता है ये साहो की कहानी है.
नाईट क्लब में 1 रोमांटिक गाना गाने के बाद ही अमृता जो की बहुत ही सीरियस है और आसानी से किसी पर भरोसा नहीं करती वह अचानक ही प्रभास को इंगेजमेंट रिंग पहना देती है जो की उसके किरदार के बिलकुल उलट है और अकारण लगता है.
साहो कि कहानी शरुआती 20 मिनट बाद ही पटरी से उतर जाती है, फिल्म के अनगिनत किरदार, बहुत सारे सब प्लॉट्स और ट्विस्ट दर्शक को कंफ्यूज कर देते हैं की आखिर कौन क्या है और कौन किसके साथ काम कर रहा है जिस वजह से पूरा स्क्रीनप्ले उधड कर रह जाता है.
इंटरवल से पहले साहो दर्शकों को बड़े ट्विस्ट के साथ छोड़ कर जाती है जिसके बाद आपको लगता है की असली फिल्म तो अब शुरू होगी मगर इसके उलट इंटरवल के बाद फिल्म औंधे मुंह गिर पड़ती है.
फिल्म देख कर मन में बार - बार ये ख्याल आता है की आखिर फिल्म जाना किस तरफ छह रही है, स्क्रीन पर क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है यह समझने के चक्कर में देखने वाले के लिए साहो, किसी तरह 'सहो' बन जाती है और फिल्म का 2 घंटे 51 मिनट का रनटाइम असहनीय लगने लगता है.
साहो की सबसे बढ़िया चीज़ हैं प्रभास, जिन्होंने बड़ी खूबसूरती से अपने किरदार में जान डाल दी है और पूरी फिल्म को लगभग 3 घंटे तक अपनी मज़बूत कन्धों पर उठाया है, उनका चुलबुला किरदार शुरू से अंत तक सस्पेंस से भरा है लेकिन फिल्म की स्क्रिप्ट उनके किरदार के साथ न्याय नहीं करती. प्रभास के बिना साहो टाइटैनिक है, जिसका डूबना तय है.
जैकी श्रॉफ रॉय के किरदार में हमेशा की तरह शालीन और उत्कृष्ट लगे हैं. हालांकि उनका रोल फिल्म में छोटा ही है मगर उसमे भी वे अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहते हैं.
श्रद्धा कपूर क्राइम ब्रांच ऑफिसर अमृता नायर के किरदार में घुसने की कोशिश करती नज़र आती हैं मगर असफल दिखती हैं. उनका किरदार स्क्रीन पर अलर्ट कम और कंफ्यूज ज्यादा नज़र आता है.
मुरली शर्मा मुंबई पुलिस साइबर एक्सपर्ट के रूप में नज़र आये हैं और वेनेला किशोर कांस्टेबल गोस्वामी के किरदार में हमें हंसाने में लगभग कामयाब रहते हैं. नील नितिन मुकेश भी साहो में अहम् किरदार में है लेकिन फिल्म के एक बड़े ट्विस्ट के कारण उनके किरदार का जितना कम ज़िक्र हो उतना बेहतर.
फिल्म के अनगिनत खलनायकों में सिर्फ देवराज (चंकी पाण्डेय) अपने किरदार में शानदार लगे हैं जिस पर अपनी पकड़ से उन्होंने जान डाल दी है. उनका किरदार फिल्म के उन चुने हुए किरदारों में है जो असली नज़र आते हैं बाकी कोई भी नेगेटिव करैक्टर आपको याद नहीं रहेगा.
अरुण विजय रॉय के बेटे विश्वांक के तौर पर स्टाइलिश लगे हैं और साथ ही उनके वफादार साथी इब्राहीम के किरदार में लाल भी बढ़िया लगे हैं. मंदिरा बेदी ने भी कल्कि के किरदार में ठीक ठाक काम किया है.
प्रकाश बेलावड़ी का काम कमिश्नर शिंदे के के रूप में अपने जूनियर्स को आर्डर देना और देवराज की धमकियाँ सुनना है जिसके साथ वह गुप्त रूप से मिला हुआ है.
भारत की सबसे बड़ी एक्शन फिल्म होने का दावा करने वाली साहो में एक चीज़ अगर आपको भरपूर मिलेगी तो वो है एक्शन. खासकर फिल्म का क्लाइमेक्स जो की लगातार ताबड़तोड़ एक्शन से लदा हुआ है मगर इस बेलगाम एक्शन को सहारा देने के लिए एक दमदार कहानी की फ़िल्म में कमीं महसूस होती है. फिर भी एक्शन सीन्स बढ़िया तरीके से फिल्माए गए हैं.
प्रभास के बाद साहो का सबसे बड़ा स्टार कोई है तो वो है वीएफऐक्स (vfx) मगर इस डिपार्टमेंट में भी साहो ख़ास कमाल नहीं कर पाती. 350 करोड़ खर्च करने के बाद भी फिल्म के हिसाब से जिस लेवल के वीएफऐक्स होने चाहिए थे वैसे बिलकुल भी नज़र नहीं आते.
फिल्म देख कर ऐसा लगता है की सुजीत, जिनकी बतौर निर्देशक साहो सिर्फ दूसरी फिल्म है वे प्रभास और उनकी स्टारडम को लेकर शायद ज्यादा ही उत्सुक और मंत्रमुग्ध थे और 350 करोड़ रूपए के बजट की वजह से शायद उन पर एक सुपरहिट फिल्म बनाने का दबाव भी रहा होगा जिस कारण पूरी कोशिश के बावजूद भी वे ठीक से फिल्म के ज़रूरी पहलुओं पर ध्यान नहीं दे पाए हैं जो की फिल्म देख कर पता भी चलता है.
म्यूजिक की बात करें तो कुछ गाने हैं जिनकी कहानी में ज़रूरत नहीं थी और फिल्म की लम्बाई देखते हुए इन्हें हटाया जा सकता था. हालांकि प्रभास और श्रद्धा पर फिल्माया गया रोमांटिक गाना 'बेबी वोन'ट यू टेल मी' अच्छा लगता है और गाने की लोकेशंस भी बेहद खूबसूरत हैं.
कुल मिलाकर साहो को प्रभास, जैकी श्रॉफ और चंकी पाण्डेय की बढ़िया परफॉरमेंस के साथ - साथ हाई लेवल एडवेंचर और एक्शन के लिए एक बार देखा जा सकता है.