निर्देशक: नवदीप सिंह
रेटिंग: **1/2
सैफ अली खन की पिछली फिल्म 'बाजार' के बॉक्स ऑफिस पर एवरेज परफॉर्म करने के बाद सैफ एक बार फिर हाज़िर हैं लाल कप्तान के साथ जो की कहानी है एक नागा साधु, 'गोसाईं' की, जो फिल्म की शुरुआत से ही शिकार पर है.
गोसाईं बदला लेने के लिए भूखा है और रहमत खान (मानव विज) की तलाश में है जिसके साथ उसे एक पुराना हिसाब बराबर करना है. रहमत खान एक क्रूर व्यक्ति है जो बिना हिचकिचाए लोगों के सर काटता नज़र आता है और दूसरी तरफ गोसाईं की भी रक्त की प्यास बढती जा रही है.
लाल कप्तान में, नवदीप सिंह, जिन्होंने पहले सैफ के साथ 'मनोरमा सिक्स फीट अंडर' और अनुष्का शर्मा की 'एनएच 10' जैसी क्रिटिकल क्लेम पाने वाली फ़िल्में बनायी हैं, एक ऐतिहासिक एक्शन - ड्रामा बनाने की कोशिश करते दिखते हैं मगर यह सिर्फ एक कोशिश ही है कामयाबी नहीं.
नवदीप जो भी स्क्रीन पर जो दिखाना चाहते थे, वो परदे पर उकेरने में कामयाब नहीं हो पाए हैं और जो दिखाया है वो थकाने वाला लगता है. फिल्म की कहानी लंबी है और बीच-बीच में पटरी से उतर कर फिर पटरी पर वापस आती है जिससे दर्शक का इंटरेस्ट कम हो जाता है.
फिल्म का बाकी किरदारों को भी ठीक से नहीं लिखा गया है और वे अधूरे नज़र आते हैं. सोनाक्षी सिन्हा फिल्म में एक छोटे से कैमियो रोल में हैं, इतते छोटे की अगर आप उस सीन पर पलक झपका लें तो सोनाक्षी को मिस कर देंगे.
सैफ अली खान की लाल कपतान कुछ जगह पर मनोरंजक है, लेकिन छोटे - छोटे अंतराल पर. देख कर लगता है जैसे एक पल में निर्देशक का ध्यान फिल्म पर था मगर अगले ही पल उसका ध्यान भटक गया और फिर कुछ देर बाद उसका ध्यान दुबारा फिल्म पर गया. नवदीप सिंह की लाल कप्तान एक ऐसी सवारी है जिसमें बहुत सारे स्पीड ब्रेकर हैं. हालाँकि फिल्म में ऐसे भी पल हैं जो आपका ध्यान आकर्षित करते हैं, लेकिन कई दृश्य ऐसे भी हैं जो बोर करते हैं.
18 वीं शताब्दी में स्थित लाल कप्तान को मनोरंजक और दिलचस्प बनाने की काफी गुंजाइश थी, लेकिन यह अवसर अब निर्देशक ने गँवा दिया है. ऐसी फिल्मों में सिनेमेटोग्राफी, बहुत ज़रूरी भूमिका अदा करती है और शंकर रमन ने इस डिपार्टमेंट को अच्छे से संभाला भी है, लेकिन जब कहानी साथ न दे वो भी किस काम की.
लेकिन, सैफ अली खान, एक निडर और खूंखार गोसाईं के रूप में शानदार प्रदर्शन देने में कामयाब रहे हैं. वह नागा साधु के रूप में जंगली और क्रूर हैं जो की सराहनीय है और अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब हैं. हालांकि गोसाईं के रूप में उनका लुक आपको हॉलीवुड फिल्म 'पाइरेट्स ऑफ द कैरेबियन' के कप्तान जैक स्पैरो की याद ज़रूर दिलाएगा.
दीपक डोबरियाल भी एक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण किरदार में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. रहमत खान के रूप में मानव विज कुछ ख़ास नहीं लगे हैं और अपने किरदार में घुसने के उनके प्रयास औंधे मुंह गिर जाते हैं. जोया हुसैन, अपनी छोते किरदार में बढ़िया लगी हैं.
कुल मिलाकर, लाल कप्तान एक बेहतरीन फिल्म हो सकती थी मगर नियति को यह मंज़ूर नहीं था और इसका श्रेय जाता है एक घसीते हुए और धीमे स्क्रीनप्ले को जो इसे एक थकाऊ और ऊबड़-खाबड़ सवारी बनाता है.