निर्देशक: अभिषेक पाठक
रेटिंग: **
30 साल का चमन कोहली (सनी सिंह) दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का लेक्चरर है. चमन के बढ़ते गंजेपन और गिरते बालों कि वजह से कॉलेज में उसके स्टूडेंट्स उसका हर समय मजाक उड़ाते हैं. इसी गंजेपन के कारण चमन की शादी भी नहीं हो रही है और यह सब मिल कर उसकी परेशानी और निराशा बढा रहे हैं.
चमन जल्दी ही 31 साल का होने वाला है और जिस ज्योतिष (सौरभ शुक्ला) के पास वह और उसका परिवार जाते हैं उसका कहना है की अगर 31 साल की उम्र से पहले चमन की शादी नहीं हुई तो वह ज़िन्दगी भर कुंवारा ही रहेगा. इस खबर से उसके मां - बाप घबरा जाते हैं और 31 साल का होने से पहले ही चमन की शादी करवाना चाहते हैं.
चमन के पिता शशि कोहली (अतुल कुमार) उसे एक डेटिंग एप जॉइन करवाते हैं जिसके ज़रिये जल्द ही चमन की मुलाकात होती है अप्सरा (मानवी गग्रू) से और इसके बाद किस तरह चमन की ज़िन्दगी बदलती है यह कहानी है अभिषेक पाठक की उजड़ा चमन फिल्म की.
अभिषेक पाठक की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है और ये आपको कोई न भी बताये तो भी आपको फिल्म देख कर पता चल जाएगा. उजड़ा चमन फर्स्ट हाफ में आपको हंसाती हैं मगर कुछ ही देर बाद खरगोश जैसी दिखने वाली यह फिल्म कछुए का रूप धारण कर लेती है जिसे फिनिश लाइन तक पहुँचने में काफी समय लगता है.
फिल्म का कहानी ठीक है मगर प्रेडिक्टेबल है. स्क्रीनप्ले की बात की जाए तो उसे काफी खींचा गया है जो की फिल्म और कहानी दोनों का मज़ा किरकिरा कर देता है और दर्शक धीरे - धीरे फिल्म में दिलचस्पी खो देता है. वैसे तो फिल्म 2 घंटे की ही है लेकिन लगता है जैसे ढाई घंटे की हो और ये चमत्कार करने का श्रेय निर्देशक अभिषेक पाठक के साथ ही फिल्म के एडिटर मितेश सोनी को भी देना बनता है.
फिल्म के फर्स्ट हाफ की शुरुआत बढ़िया है और कई ऐसे मजेदार पल हैं जो आपको ख़ूब हंसाते हैं मगर कुछ ही समय में फिल्म धीमी और बोरिंग बन जाती है. सेकंड हाफ को मानवी गग्रू के आने से कुछ सहारा मिलता है जो की अप्सरा के किरदार में काफी परिपक्व लगी हैं और उनका किरदार ही है जिसके साथ दर्शक सबसे ज्यादा जुड़ के देख पाएँगे बजाये की फिल्म का मुख्य किरदार चमन कोहली के.
सनी सिंह एक 30 साल के कुंवारे गंजे व्यक्ति के किरदार में जान डालने में नाकाम रहे हैं और उनका किरदार ज्यादतर समय थका हुआ लगता है जैसे दर्शकों की छोडिये उसे ही फिल्म में कोई दिलचस्पी नहीं है. सनी सिंह के एक्सप्रेशंस भी प्लेन हैं और एक 30 साल के गंजे कुंवारे व्यक्ति की कुंठा और भड़ास उनके किरदार से गायब हैं.
अतुल कुमार, गृशा कपूर और गगन अरोड़ा, चमन के पिता, माता और छोटे भाई के किरदार में अच्छे लगे हैं. बल्कि ये ही वो किरदार हैं जो फिल्म के स्क्रीनप्ले और कहानी को जीवित रखते हैं और आपको हंसाते हैं.
सौरभ शुक्ला के पास पंडित जी के किरदार में कुछ ज्यादा करने को है नहीं मगर जितना है ठीक है. शरीब हाश्मी, चमन के दोस्त और कॉलेज के पीयून 'राज' के किरदार में अच्छे लगे है जिनकी कहानी आपको पसंद आएगी. करिश्मा शर्मा फिल्म में चमन की स्टूडेंट 'आइना' के किरदार में दिखी हैं जिससे चमन को प्यार हो जाता है और वे अपने किरदार में फिट बैठी हैं.
फिल्म का म्यूजिक ठीक है 'गुरु रंधावा का 'ऑउटफिट' और 'ट्विंकल - ट्विंकल' तोचि रैना की आवाज़ में बढ़िया लगे हैं. हालांकि फिल्म के जल्द ही ठन्डे होने वाले स्क्रीनप्ले में एक अच्छा बैकग्राउंड स्कोर जान डाल सकता था मगर वह भी यहाँ गायब है, और अगर है भी तो महसूस नहीं होता.
उजड़ा चमन हमें एक अच्छा मैसेज देने की भी कोशिश करती है की आप जैसे हैं वैसे परफेक्ट हैं और खुद को दूसरों के हिसाब से बदलने की कोशिश न करें. फिल्म के इरादे भी नेक हैं मगर जब कहानी ही दम तोड़ चुकी हो मेसेज थिएटर से निकलने के ज्यादा समय तक आपके साथ नहीं रहता.
कुल मिलाकार उजड़ा चमन ऐसी फिल्म है जिसकी की साँसें पूरी तरह से अपनी सप्पोर्टिंग कास्ट और मानवी गग्रू की परफॉरमेंस के भरोसे चलती हैं. 'प्यार का पंचनामा 2' और 'सोनू के टीटू की स्वीटी' जैसी फिल्मों की एनर्जी सनी सिंह के थके हुए चमन कोहली के पास नहीं है. फिल्म से ज्यादा इसका ट्रेलर अच्छा है, दोबारा वही देख लीजिये या फिर अगले हफ्ते 'बाला' के रिलीज़ होने का इंतज़ार कीजिये.