निर्देशक: अमर कौशिक
रेटिंग: ****
'बाला' कहानी है कानपुर के बालमुकुन्द शुक्ला (आयुष्मान खुर्राना) की जो की बचपन में अपने स्कूल का हीरो था, उसके अमिताभ बच्चन जैसे बालों की वजह से सब लड़कियां उस पर मरती थी सिर्फ एक को छोड़ कर, लतिका त्रिपाठी (भूमि पेड्नेकर) जिसका उसके काले रंग की वजह से बाला समेत स्कूल में सब मज़ाक उड़ाया करते थे. स्कूल के प्ले में भी लतिका को उसके काले रंग की वजह से हमेशा छोटे - मोटे किरदार ही मिलते थे और बाला को अच्छा दिखने के कारण मुख्य किरदार.
समय का चक्का आगे बढ़ता है और बड़ा होकर फेयरनेस क्रीम बेचने वाले सेल्समैन और पार्ट टाइम कॉमेडियन बाला के लहराते बाल धीरे - धीरे गिरने लगते हैं और वह आधा गंजा हो जाता है. नौकरी में बाला का डिमोशन कर दिया जाता है, उसकी बचपन की गर्ल फ्रेंड भी उसे छोड़ कर चली जाती है और यह सब मिल कर उसकी ज़िन्दगी को पलट के रख देते हैं. अपने बाल वापस उगाने के लिए बाला कई अजीबो गरीब नुस्खे अपनाता है जिनके ज़रिये फिल्म आपको हंसाती है.
बाला की ज़िन्दगी से निराशा के बादल जल्द ही गायब हो जाते हैं जब एक दिन उसके पिता (सौरभ शुक्ला) उसे एक बालों की विग तोहफे में देते हैं और बाला को एक ऑफिस के काम से लखनऊ भेजा जाता है जहाँ उसकी मुलाकात होती है लखनऊ की मॉडल और मशहूर सोशल मीडिया स्टार परी मिश्रा से, दोनों को प्यार हो जाता है और इसके बाद जो होता है वो बाला की ज़िन्दगी और उसकी ज़िन्दगी की तरफ देखने के नज़रिए को पूरी तरह बदल कर रख देता है.
निर्देशक अमर कौशिक ने इस फिल्म के ज़रिये समाज की नज़रों में जो लोग नार्मल नहीं है उनकी रोज़ मर्रा की तकलीफों को एक मजेदार और दिलचस्प तरीके से पेश करने की कोशिश की है और इस कोशिश में उन्हें कामयाबी भी मिली है.
बाला का स्क्रीनप्ले शुरुआत से ही बढ़िया है और आपको बाँध कर रखता है. फिल्म आपको ख़ूब हंसाएगी खासकर फर्स्ट हाल्फ में. हालांकि सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ा इमोशनल मोड़ ले लेती है मगर आयुष्मान खुर्राना जब स्क्रीन पर हों तो आपकी आँखें स्क्रीन से नहीं हटती और वे आपको अंत तक फिल्म से जोड़ कर रखते हैं.
आयुष्मान ने बाला के किरदार को बहुत सटीक तरीके से पिरोया है. बाला के रूप में वो इतने नेचुरल लगे हैं की आपको यकीन हो जाता है की वे बाला ही हैं आयुष्मान नहीं और यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है. आयुष्मान का बाला आपको हंसाने की कोशिश नहीं करता बल्कि उसके झाड़ते बालों के कारण उसकी दुर्दशा आपको हंसाती है वो भी इस तरह की आपको उस पर दया नहीं आती. फिल्म में आयुष्मान का हर एक सीन पैसा वसूल है.
यामी गौतम एक छोटे शहर की सोशल मीडिया स्टार और खुद में डूबी हुई परी मिश्रा के किरदार में मनमोहक लगी हैं. पारी की हमेशा अच्छा दिखने की चाह को उन्होंने स्क्रीन पर उम्दा तरीके से पेश किया है और उनके किरदार को देखना मजेदार लगता है.
भूमि पेड्नेकर ने दृढ और आत्मविश्वास से भरपूर लतिका त्रिपाठी के रंग के कारण उसे समाज द्वारा मिलने वाले तानों की कुंठा को फिल्म में बखूबी दर्श्हाया है, हालांकि उनका मेक अप अजीब लगता है.
बाला के पिता के रूप में सौरभ शुक्ला, उसके मार्गदर्शक के रूप में जावेद जाफ़री, उसके हेयर स्टाइलिस्ट और दोस्त के रूप में अभिषेक बैनर्जी और सीमा पाहवा सभी अपने - अपने किरदारों में परफेक्ट हैं और आपको हंसने के कई मौके देते हैं. फिल्म का म्यूजिक भी सुन्दर है और 90 के दशक के गानों को भी दिलचस्प तरीके से इस्तेमाल किया गया है.
कुल मिलकर बाला आपको ख़ूब हंसाती है और कहती है की आप जैसे हैं वैसे ही खुश रहें जो की इसे एक खूबसूरत फिल्म बनाता है. फिल्म का सेकंड हाफ़ आपको थोड़ा सीरियस या इमोशनल एंगल लेते हुए नज़र आ सकता है मगर साथ ही आपके चेहरे पर एक मुस्कान भी लाता है. ज़रूर देखें!