निर्देशक: देबमित्रा बिस्वाल
रेटिंग: **
ऐनी (अथिया शेट्टी) का हमेशा से ये सपना था की की उसकी शादी ऐसे व्यक्ति से जो विदेश में सेटल हो या फिर किसी दूसरे देश में काम करता हो ताकि शादी के बाद वह विदेश जा सके और अपने दोस्तों को वहां से तस्वीरें पोस्ट करके जला सके.
दूसरी तरफ हैं दुबई रिटर्न पुष्पिंदर त्यागी जी (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) जिनकी बढती उम्र के कारण वह किसी से भी शादी करने के लिए तैयार हैं बस वह लड़की होनी चाहिए लेकिन उनकी मां (विभा छिब्बर) चाहती हैं की पुष्पिंदर की पत्नी ढेर सारा दहेज़ लेकर आये.
दोनों के परिवार पडोसी हैं जिनके पास हर समय अपने बच्चों की शादी के लिए लड़का-लड़की तलाश के बजाये कोई और काम नहीं है और इसी बीच ऐनी की मौसी (करुणा पांडे) उसे पुष्पिंदर से शादी करने के लिए मना लेती हैं. ऐनी भी यह सोच कर की पुष्पिंदर के पास दुबई में नौकरी है शादी के लिए तैयार हो जाती है. शादी हो जाती है और फिर आता है कहानी में ट्विस्ट क्यूंकि पिच्चर अभी बाकी है भाई!
सबसे पहले बात फिल्म के स्क्रीनप्ले की जो की अपने चुलबुले किरदारों के माध्यम से भारत के छोटे शहरों की एक रूढ़िवादी तस्वीर पेश करता है. फिल्म के हिसाब से छोटे शहरों के लोगों के पास काम धंधा तो है ही नहीं और यह आपने यह कई बॉलीवुड फिल्मों में पहले भी देखा होगा जिस विरासत को मोतीचूर - चकनाचूर आगे बढ़ा रही है.
निर्देशक देबमित्रा बिस्वाल ने फिल्म के किरदारों और उनके हालातों को दिखाया बढ़िया है मगर इसकी अकारण घिसी गयी कहानी इसे थकाऊ बना देती है हालांकि फिल्म आपको कई जगह हंसाती ज़रूर है.
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पुष्पिंदर त्यागी के किरदार में अच्छे लगे हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग भी बढ़िया है. वे अपने किरदार के इमोशनल पलों को भी अच्छे से परदे पर उकेरते हैं और अथिया शेट्टी की भी एक्टिंग इस फिल्म में काफी बेहतर हुई है, उनके किरदार पर उनकी पकड़ अच्छी है और उनकी डायलॉग डिलीवरी में भी काफी सुधार है जो आपको ज़रूर इम्प्रेस करेगी..
करुणा पांडे ऐनी की मौसी और विभा छिब्बर पुष्पिंदर की मां के किरदार में अपनी छाप छोड़ने में काम रहती है और फिल्म के कमज़ोर पलों में उसे सहारा देती हैं. फिल्म में वैसे तो कोई विलन नहीं है मगर उसकी कमी पूरी करती है इसकी कमज़ोर कहानी.
किसी भी फिल्म के कलाकारों का अच्छा प्रदर्शन व्यर्थ चला जाता है अगर फिल्म की कहानी ही नीरस हो जिसकी वजह से कलाकार ज्यादा समय तक फिल्म को संभाल नहीं पाते और इस बीमारी से मोतीचूर चकनाचूर बुरी तरह से ग्रस्त है. फिल्म का म्यूजिक मजेदार है और थीम के साथ जचता है.
अंत में यही कहा जा सकता है की मोतीचूर चकनाचूर आपको हंसाती है मगर ज्यादा देर नहीं. फिल्म की कहानी को खींच कर व्यर्थ में लम्बा बना दिया गया है जो इसे नीरस बना देता है. फिर भी इसे नवाज़ुद्दीन और अथिया की बढ़िया परफॉरमेंस के लिए एक बार चाहें तो देख सकते हैं.