पागलपंती रिव्यु: इरादा था कॉमेडी करने का मगर किया निराश

Saturday, November 23, 2019 14:58 IST
By Santa Banta News Network
कास्ट: अनिल कपूर, जॉन अब्राहम, अरशद वारसी, कृति खरबंदा, पुलकित सम्राट, इलियाना डी'क्रूज़, उर्वशी रौटेला, सौरभ शुक्ला

निर्देशक: अनीस बज्मी

रेटिंग: *1/2

पागलपंती कहानी है राजकिशोर (जॉन अब्राहम) की जो बहुत ही बदकिस्मत है, वह जहाँ जाता है यह बदकिस्मती हमेशा उसका पीछा करती है और उसके सारे काम बिगाड़ देती है. वह और उसके दोस्त चंदू (अरशद वारसी) और चंकी (पुलकित सम्राट) कर्ज में डूब जाते हैं, जिसे चुकाने के लिए उन्हें 2 गैंगस्टर्स 'राजा साहब' (सौरभ शुक्ला) और 'वाईफाई भाई' (अनिल कपूर) के लिए काम करना पड़ता है, जो उनसे अपना पैसा वसूल करना चाहते हैं और इन तीनो की कहानी में ये क़र्ज़ चुकाने की राह में क्या - क्या मोड़ आते हैं यह पागलपंती की पूरी कहानी है.

अनीस बज़्मी की इस फिल्म का प्लाट काफी पुराना है और स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स और हर एक चीज़ आपको हंसाने की पुरज़ोर कोशिश करते नज़र आते हैं लेकिन सब कुछ बेकार गया है. शुरुआत से ही पागलपंती एक के बाद एक अजीब किरदरों से हमें मिलवाती है और खुद को एक कॉमेडी के रूप में पेश करने की नाकाम कोशिश करती दिखती है.


हालांकि फिल्म में कुछ मजेदार पल हैं जिनका श्रेय जाता है अनिल कपूर, जॉन अब्राहम, अरशद वारसी, और बृजेन्द्र काला जैसे कलाकारों को जो इस दिशाहीन कहानी और स्क्रीनप्ले के बीच अपनी थोड़ी-बहुत इज्ज़त बचाने में कामयाब रहते हैं लेकिन बाकी की स्टार कास्ट सिर्फ मसखरों की की बर्ताव करती दिखती है जिस पर हंसी नहीं बल्कि दया आती है.

जॉन अब्राहम की सभी कोशिशें इस उलझी हुई फिल्म को बचाने में नाकाम रहती हैं और फिल्म की तीनों मुख्य अभिनेत्रियाँ इलियाना डीक्रूज, कृति खरबंदा, और उर्वशी रौटेला को सिर्फ दर्शकों की आँखों का ख़याल रखने के लिए फिल्म में जगह दी गयी है. वे ज्यादातर समय बेवकूफी भरे बिना दिमाग के डायलॉग्स बोलते और व्यवहार करते हुए नज़र आती है.

पुलकित सम्राट और सौरभ शुक्ला ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है मगर फिल्म की पटकथा और कहानी इतनी पेचीदा और पुरानी है कि इन अभिनेताओं की दशा देख कर आपको लगता है की शायद उन्हें पैसों की बुरी तरह से जरूरत थी जिसके चलते उन्होंने यह फिल्म साइन की.


निर्देशक अनीस बज़्मी ने फिल्म को बचाने के लिए इसे बच्चों के लिए मजेदार बनाने की भी कोशिश की है और हर मसाला डाल दिया है. कार चेज़ सीन, एक्शन सीन, अफ्रीकी शेर, जो की वैसे तो शानदार दिखते हैं, लेकिन फिल्म की बेहद कमज़ोर स्क्रिप्ट हर शानदार चीज़ को पकड़ कर धूल चटा देती है.

पागलपंती का संगीत असहनीय है और गाने दर्शकों को सिर्फ और अधिक सिरदर्द देने का काम करते हैं. जैसे-जैसे फिल्म क्लाइमैक्स के करीब आती है, वह अपने पुराने कपड़े बदल कर देशभक्ति के रंग में रंग जाती है जो की और भी हास्यास्पद लगता है.

कुल मिलाकर पागलपंती का इरादा था कॉमेडी करने का, लेकिन निर्देशक अनीस बज़्मी की ये फिल्म सिर्फ एक काम करने में सफल दिखती है वो है 'दर्शकों को निराश'. पागलपंती में आपके सामने स्क्रीन पर कुछ पात्र आते हैं, इधर - उधर घूमते हुए खुद को मजाकिया दिखाने की कोशिश करते हैं और फिल्म समाप्त होती है.
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