डायरेक्टर: आदित्य दत्त
रेटिंग: **1/2
मुंबई, दो युवाओं उस्मान और उमर को उनके लीडर सुभान के साथ गिरफ्तार कर लिया जाता है. पता चलता है की उस्मान और उमर का असली नाम राकेश और अमित था, जिन्होंने बुराक अंसारी (गुलशन देवैया) द्वारा ब्रेनवाश किए जाने के बाद इस्लाम क़ुबूल कर लिया था.
बुराक का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है, अपने विडियोज़ में वह अपना चेहरा भी ढक कर रखता है और भारतीय खुफिया एजेंसीयां भी उसकी पहचान पता लगा पाने में नाकाम हैं. बुराक भारत में एक बड़े आतंकवादी हमले की योजना बना रहा है और वरिष्ठ खुफिया अधिकारी रॉय (राजेश तैलंग) इस हमले को रोकने के लिए बुलाते हैं हमारे हीरो करणवीर सिंह डोगरा (विद्युत जमवाल) को.
करणवीर के साथ इस मिशन में भावना रेड्डी (अदा शर्मा) और दो ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंट, मल्लिका सूद (अंगिरा धर) और अरमान अख्तर (सुमीत ठाकुर) शामिल होते हैं. ये चारों मिलकर बराक की तलाश शुरु करते हैं और उसे किसी भी तरह उसे रोकने के मिशन पर निकलते हैं. इस मिशन में आगे क्या मोड़ आता है यह इस फिल्म की कहानी है.
आदित्य दत्त की 'कमांडो 3' पुराने और आजमाए हुए बॉलीवुड फॉर्मूले का उपयोग करती दिखती है. फिल्म का हीरो एक ग्रैंड एंट्री मारता है और एक लड़की को कुछ गुंडों से बचाता है, देश पर एक बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है और हमारे हीरो के अलावा इस खतरे को कोई और नहीं टाल सकता. कमांडो 3 के फर्स्ट हाफ में विदुत को अपनी स्टंट और एक्शन की असाधारण प्रतिभा दिखलाने के लिए काफी मौके मिले हैं मगर फिल्म की कहानी आपको बाँधने में थोड़ा समय लेती है.
सेकंड हाफ में फिल्म में कुछ बढ़िया ट्विस्ट देखने को मिलते हैं लेकिन जहां यह फिल्म बुरी तरह से विफल होती है वो है कहानी. कमांडो 3 का असली विलन 'बुराक' नहीं बल्कि फिल्म की कमज़ोर व लम्बी स्क्रिप्ट है. जितना दर्शक पचा पायें उससे कहीं ज्यादा 2 घंटे की इस फिल्म में ठूंसने की कोशिश की गयी है जिसे देख कर दर्शक अपना सर खुजाने लगता है और फिल्म में आपका इंटरेस्ट धीरे - धीरे कम हो जाता है.
एक्टिंग की बात करें तो कमांडो करणवीर सिंह डोगरा के रूप में विद्युत जमवाल हर दृश्य में एक बार फिर से अपने एक्शन ग्राफ को अगले स्तर पर ले जाते दिखे हैं और उन्हें सिल्वर स्क्रीन पर देखना एक शब्द में कहा जाए तो मजेदार है. उनका किरदार स्टाइल, एक्शन और देशभक्ति से भरपूर है और ज़्यादातर समय फिल्म को विद्युत् ही अपने मजबूत कंधों पर उठाये रखते हैं.
अदा शर्मा और अंगिरा धर ने भी अपने किरदारों में प्रशंसनीय काम किया है और फिल्म की लीडिंग लेडीज़ को सिर्फ दिखावे के लिए न रख कर मज़बूत किरदारों में एक्शन अकरते हुए देखना बढ़िया लगता है. मगर जो व्यक्ति अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहता है तो वो हैं गुलशन देवैया जो की एक बर्बर और डरावने आतंकी (बुराक अंसारी) के रूप में कमज़ोर दिखते हैं. हालांकि उन्होंने कोशिश की है मगर अपनी पिछली फिल्मों के उलट, वे इस किरदार के साथ इन्साफ करने में विफल रहे हैं.
फिल्म का संगीत सस्पेंस और थ्रिल को बढाने का प्रयास करता है और लगभग कामयाब भी होता है मगर कई बार बैकग्राउंड म्यूजिक ज्यादा लगने लगता है और शोर में तब्दील हो जाता है.
कुल मिलाकर, कमांडो 3 में आपको शुरू से लेकर अंत तक ज़बरदस्त एक्शन और थ्रिल मिलेगा जो की तारीफ के काबिल है मगर इस एक्शन को सहारा देने के लिए एक मजबूत स्टोरीलाइन फिल्म से गायब है और इसके बिना यह फिल्म बिना सर-पैर की एक्शन फिल्म लगने लगती है. फिर भी कमांडो 3 को शानदार एक्शन, स्टंट्स और विद्युत् जमवाल के लिए एक बार देखा जा सकता है.