डायरेक्टर: स्नेहा तौरानी
रेटिंग: 2.5
सनी कौशल और रुक्षार ढिल्लों की डेब्यू बॉलीवुड फिल्म भंगड़ा पा ले रिलीज़ हो गयी है और जग्गी और सिमी के बीच 'भंगड़ा' का ये महायुद्ध आखिर कितना मनोरंजक है? आइये जानते हैं.
'भंगड़ा पा ले' से निर्देशन में कदम रखा है स्नेहा तौरानी ने और ये फिल्म कहानी है जग्गी (सनी कौशल) और सिमी (रुक्षार ढिल्लों) जिनका जूनून है पंजाब का फोक डांस फॉर्म भंगड़ा और इन दोनों के लिए ये सिर्फ डांस नहीं बल्कि एक जज़्बा है. दोनों अलग कॉलेज में पढ़ते हैं और अपने - अपने कॉलेज के लिए अमृतसर का इंटर-कॉलेज भंगड़ा कम्पटीशन जीतना चाहते हैं.
सिमी जो खुद को शहर की बेस्ट फीमेल भंगड़ा डांस मानती है एक मॉडर्न कॉंफिडेंट लड़की है और भंगड़ा के मॉडर्न रूप को ज्यादा फॉलो करती है जबकि जग्गी एक सीधा - सादा 'पिंड दा मुंडा' है जिसके इस डांस फॉर्म से जज़्बात जुड़े हुए हैं. वह भंगड़ा के देसी स्टाइल को फॉलो करता है और यही भंगड़ा इन दोनों को आमने - सामने लेकर आता है.
इस कम्पटीशन के कारण दोनों एक दुसरे के प्रतिद्वंदी बन जाते हैं और अमृतसर से शरू हुआ एक - दूसरे से बेहद अलग जग्गी और सिमी का ये कम्पटीशन लन्दन के इंटरनेशनल भंगड़ा बैटल तक पहुँचते - पहुँचते किस तरह प्यार में बदल जाता है और इन दोनों के सफ़र में आगे क्या मोड़ लेकर आता हैं ये भंगड़ा पा ले की कहानी है.
स्नेहा तौरानी ने अपनी डेब्यू कॉमेडी-ड्रामा फिल्म को पूरी चमक - धमक के साथ परदे पर पेश किया है जो की ज़्यादातर समय आपको एंटरटेन करने में कामयाब भी रहता है मगर फिल्म की कहानी इस मेहनत के साथ इन्साफ करने में असफल रहती है जो की बेहद प्रेडिक्टेबल है और नयी तो बिलकुल नहीं है.
फिल्म का स्क्रीनप्ले हमें दो अलग - अलग समय की सैर करवाता है. एक दितीय विश्व युद्ध के समय की और दूसरी आज की. परफॉरमेंस की बात की जाए तो सनी कौशल छोटे शहर से आये 'जग्गी' के किरदार में बढ़िया लगे हैं. जग्गी के लिए भंगड़ा उसके सपने पूरे करने और अपने परिवार का नाम ऊँचा करने का जरिया है और उसके जज़्बात और पंजाब के लोकल टच को सनी ने बखूबी परदे पर उकेरा है लेकिन जब बात एनर्जी की होती है तो सनी यहाँ पर अपनीको -स्टार से पीछे रह गए हैं.
जी हाँ, फिल्म की मुख्य अदाकारा रुक्षार ढिल्लों शहर की रहनेवाली आत्मविश्वास से भरपूर मॉडर्न लड़की 'सिमी' के किरदार में बेहतरीन लगी है. उन्हें स्क्रीन पर देखना हर पल मनोरंजक है और ज़्यादातर समय वे सनी पर भारी पड़ती हुई नज़र आती हैं. रुक्षार ने सिमी के किरदार को परदे पर इस तरह उकेरा है की वो रुक्षार नहीं बल्कि सिमी ही लगती हैं और उनके एक्सप्रेशंस भी एकदम प्राकर्तिक हैं.
सिनेमैटोग्राफी इस फिल्म को और ख़ास बनाती है जिसका श्रेय सिनेमैटोग्राफर जीतन हरमीत सिंह को जाता है जिन्होंने पंजाब को बड़ी खूबसूरती से कैद किया है. फिल्म का म्यूजिक भी दमदार है जो की इसकी सबसे बढ़िया चीज़ों में से एक है.
लेकिन जहाँ स्नेहा तौरानी की ये फिल्म मात खा जाती है वो है सनी और रुक्षार के बीच की ऑन - स्क्रीन केमिस्ट्री जो की फीकी है. जग्गी और सिमी के बीच चल रहा कम्पटीशन और भंगड़ा का उनका जूनून फिल्म का आधार है मगर दोनों के बीच वो जोश और केमिस्ट्री जो आपको बाँध कर रख सके वही गायब है.
कमाल की बात ये है की सनी की ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री दूसरे विश्व युद्ध के बैकड्रॉप वाले हिस्से में 'निम्मो' के किरदार में श्रिया पिल्गाओंकर के साथ ज्यादा जुडती दिखती है और बता दें की श्रिया ने भी यहाँ मज़बूत प्रदर्शन किया है. फिल्म देखने के बाद अगर कोई है जिसे सबसे ज्यादा सीखना बाकी है तो वे हैं फिल्म की निर्देशक स्नेहा तौरानी जिन्होंने हर चीज़ पर ध्यान दिया मगर फिल्म के आधार को ही दरकिनार कर दिया.
एक डांस फिल्म में म्यूजिक के अलावा कोरियोग्राफी सबसे ज़रूर हिस्सा होती है मगर यहाँ वो भी निराश करती है और जो जोश दर्शक में जगना चाहिए वो सोता रहता है.
कुल मिलाकर भंगड़ा पा ले में आपको बढ़िया परफॉरमेंसेस देखने को मिलेंगी और फिल्म का दमदार म्यूज़िक भी आनंदमय है लेकिन इसकी कहानी इसे एक साधारण बॉलीवुड डांस फिल्म बना कर रख देती है. फिर भी, अच्छी परफॉरमेंस के लिए या फिर भंगड़ा और म्यूज़िक के शौक़ीन हैं तो एक बार ये फिल्म देख सकते हैं.