निर्देशक: ओम राउत
रेटिंग: ****
तानाजी की शुरुआत होती है 17 वीं शताब्दी में जब छत्रपति शिवाजी महाराज (शरद केलकर) को पुरंदर की संधि के तहत मजबूरी में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (ल्यूक केनी) को मराठा साम्राज्य के किले समर्पित करने पड़े थे और इन्ही में जंग के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कोंढाणा का किला भी शामिल था (आज का सिंहगढ़).
इसके कारण छत्रपति शिवाजी की माता राजमाता जीजाबाई (पद्मावती राव) यह संकल्प लेती हैं की जब तक कोंढाणा का किला मराठाओं द्वारा वापस जीत नहीं लिया जाता तब तक वे नंगे पांव चलेंगी. चार साल बीतने के बाद शिवाजी महाराज किले पर फिर से फ़तेह करने की योजना बनाते हैं और उन्हें रोकने के लिए मुग़ल बादशाह औरंगजेब अपने सबसे बेहतर सेनापति उदयभान राठौड़ (सैफ अली खान) को एक बड़ी सेना और एक विशाल तोप (नागिन) के साथ कोंढाणा भेजता है.
मराठा सेना का नेतृत्व करने के लिए शिवाजी महाराज न चाहते हुए भी से अपने सबसे भरोसेमंद सूबेदार 'तानाजी मालुसरे' (अजय देवगन) को भेजते हैं जो अपने बेटे की शादी की तैयारी छोड़ कर कोंढाणा वापस जीतने के लिए निकल पड़ते हैं. तानाजी और उनके मराठा गोरिल्ला योद्धा कोंढाणा के अभेद कहे जाने वाले किले में प्रवेश कर जाते हैं और तानाजी के नेतृत्व में मराठा और उदयभान राठौड़ के नेतृत्व में मुग़ल सेना के बीच जंग शुरु होती जिस पर ओम राउत की तानाजी आधारित है.
तानाजी को देख कर यह बता पाना बेहद मुश्किल है की ये ओम राउत की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है क्यूंकि उनका निर्देशन बेहतरीन है हालांकि कहानी को आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने कुछ कलात्मक स्वतंत्रताएं भी ली हैं. फिल्म के हर एक पहलु पर ख़ासा ध्यान दिया गया है और लगभग हर चीज़ उत्त्तम बर्जे की है. सिनेमैटोग्राफी, कैमरा वर्क, वीएफएक्स, एक्शन और ख़ासतौर पर युद्ध के स्टंट सीन्स शानदार ढंग से फिल्माए गए हैं और एक दम असली नज़र आते हैं. प्रकाश कपाड़िया और ओम राउत का स्क्रीनप्ले कसा हुआ है और कहीं भी फिल्म खिंची हुई नज़र नहीं आती. हुई है. निर्देशक ने कहानी पर अपनी पकड़ पूरी तरह बनाए राखी है और एडिटिंग डिपार्टमेंट ने भी यहाँ बढ़िया काम किया है. इमोशन, ड्रामा और एक्शन सब कुछ फिल्म में पर्याप्त मात्रा में दिखाया गया है और फिल्म आपकी आपकी आँखें स्क्रीन पर टिका कर रखने में कामयाब रहती है.
अजय देवगन एक साहसिक और निडर मराठा योद्धा 'तानाजी मालुसरे' के रूप में दमदार लगे हैं और ये उनकी सबसे बेहतरीन परफॉरमेंसेस में से एक है. उन्होंने तानाजी के पराक्रम, देशभक्ति और जुनून को बखूबी परदे पर पेश किया है. मगर फिल्म की खासियत हैं उदयभान राठौड़ के किरदार में सैफ अली खान. उनका खूंखार और बर्बर किरदार अपने चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान लिए हुए शानदार लगता है जो अपने रास्ते में में आने वाली हर अड़चन का सफाया कर देता है. इस फिल्म के लिए अगर सैफ अली खान को कोई फिमफेयर या राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल जाए तो हैरानी की बात नहीं होगी.
तन्हाजी की पत्नी और शक्ति 'सावित्रीबाई' के रूप में काजोल ने हमेशा की तरह उत्तम प्रदर्शन किया है और अजय देवगन और काजोल की एवरग्रीन जोड़ी को इतने साल बाद वो भी पति और पत्नी की भूमिका में देखना मनोरंजक है. छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में शरद केलकर काफी अच्छे लगे हैं और उनके किरदार को गरिमा के साथ पेश करते हैं. संदीप शिरोडकर का बैकग्राउंड म्यूजिक उल्लेखनीय है जो की धमाकेदार है और फिल्म के रोमांच को और बढ़ाता है.
कुल मिलाकार, ओम राउत की 'तानाजी: द अनसंग वारियर' एक अद्भुत फिल्म है जो बढ़िया एक्टिंग, ज़बरदस्त विज़ुअल्स, दमदार एक्शन, स्टंट्स और रोमांच से भरपूर है. फिल्म किसी महागाथा से कम नहीं है और तानाजी के शौर्य की ये अनकही कहानी ज़रूर देखनी बनती है.