निर्देशक: मेघना गुलज़ार
रेटिंग: ****
'राज़ी' जैसी सुपरहिट फिल्म देने के बाद, निर्देशक मेघना गुलज़ार अब लेकर आई हैं 'छपाक'. ये फिल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी पर आधारित है जिसमे दीपिका पदुकोण लक्ष्मी से प्रेरित 'मालती' का किरदार में पहली बार विक्रांत मासी के साथ नज़र आई हैं।
फिल्म शुरु होती है और हमारी मुलाकात होती है मालती से जो की अपने ऊपर हुए एसिड अटैक के बाद नौकरी की तलाश में है, वह एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रही है और अपने ऊपर हुए अघात के मानसिक तनाव से आगे बढ़ना चाह रही है. अब भी मालती को कई दर्दभरी सर्जरी से गुज़ारना है और डॉक्टर उसका चेहरा वापस सामान्य बनाने की पूरी कोशिश में लगे हैं लेकिन यह सामान्य वास्तव में सामान्य है नहीं।
मालती कभी सिंगर बनने का सपना देखा करती थी लेकिन उस पर हुए एसिड अटैक ने उसकी जिंदगी और सपनों को उलट के रख दिया और अब उसकी दिनचर्या उसके जैसी एसिड हमले के पीड़ितों के मदद करने में एनजीओ, अपने इलाज के लिएअस्पताल और अदालत में चल रहे मामलों में उलझ कर रह गयी है. मालती ने अपने और अपने जैसे अन्य लोगों के लिए लड़ने का संकल्प लिया है और इस रास्ते में जो भी रुकावटें आती हैं उनका सामना करने व न्याय पाने के लिए उसका आत्मिश्वास अटूट है।
मालती के पिता की मौत और उसके भाई की बीमारी के कारण उसकी ज़िन्दगी में दुःख और परेशानियाँ और बढ़ जाती हैं और ऐसे में उसकी वकील अर्चना (मधुरजीत सरगी) उसे सहारा देती है। साथ में वे एसिड हमलों को रोकने के लिए देश में एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक जनहित याचिका दायर करते हैं। मालती का ये सफ़र और कठिन होता जाता है जिसमे उसका साथ देने उसकी ज़िन्दगी में आता है अमोल (विक्रांत मासी) और साथ मिलकर ये दोनों ये मुश्किल सफ़र तय करते हैं जिसे दर्शाती है मेघना गुलज़ार की ये फिल्म।
'छपाक' की आत्मा है दीपिका पादुकोण जो मालती के रूप में प्रभावशाली लगी हैं. दीपिका ने खुद को मालती में डूबो दिया है जो की काफी प्रशंसनीय है. मालती के रूप में दीपिका का प्रदर्शन इतना ज़बरदस्त और असली लगता है की कई सीन्स ऐसे में उन्हें देख कर आपका दिल भर आएगा और आँखें नाम हो जाएंगी. दीपिका ने मालती के किरदार को जिया है और मालती का अटूट आत्मविश्वास और इन्साफ पाने का दृढ निश्चय बेहद प्रेरणादायक है।
मालती की वकील अर्चना के रूप में मधुरजीत सरगी और उसके जीवन साथी अमोल के रूप में विक्रांत मासी ने भी अच्छा काम किया है और उनके किरदार फिल्म को काफी सपोर्ट देते हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले थोड़ा धीमा है लेकिन जो संदेश यह देना चाहती है वह देने में प्रभावी रूप से कामयाब है. हालांकि एडिटिंग डिपार्टमेंट यहां थोड़ी मदद कर सकता था, क्योंकि फिल्म का सेकंड हाफ कुछ खिंचा हुआ लगता है।
छपाक का संगीत दिल को छूने वाला है जो की सिनेमाघरों के बाहर निकलने के बाद भी दिमाग में गूंजता रहता है. 'छपाक' के टाइटल ट्रैक से लेकर 'नोक झोंक' तक शंकर-एहसान-लॉय का संगीत और गुलज़ार साहब के बोल आपको मालती और उनके सफ़र से जोड़ने का काम करते हैं.।
कुल मिलाकर, 'छपाक' एक कोमल फिल्म है जो आपके साथ रहती है, आपको परेशान करती है और आपको सोचने पर मजबूर कर देती है। यह एक ऐसी फिल्म है जो एक शक्तिशाली संदेश देती है और आप पर एक अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रहती है, ज़रूर देखें।