निर्देशक: होमी अदजानिया
रेटिंग: ***
होमी अदजानिया जानते हैं की बाप -बेटी के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती एक खुशनुमा कहानी परदे पर कैसे पेश करनी है. फिल्म में शानदार परफॉरमेंस, बढ़िया कॉमिक टाइमिंग और पर्याप्त मात्र में ड्रामा और इमोशन आपको बाँध कर रखते हैं. लेकिन, फिल्म का प्लॉट पेचीदा होने के कारण ये हिंदी मीडियम के इस सीक्वल 'अंग्रेजी मीडियम' की कहानी जितनी खूबसूरत हो सकती थी उतनी होने से वंचित रह गयी.
कहानी की शुरुआत होती है उदयपुर में. चम्पक बंसल (इरफ़ान खान) एक हलवाई है जो अपनी पुश्तैनी मिठाई की दूकान 'घसीटे राम्स' चलाता है और आगे बढ़ाना चाहता है. चम्पक की बेटी तारिका (राधिका मदान) बचपन से ही विदेश जा कर पढने का सपना देखती आई है और उसे आखिर एक मौका मिलता भी है जब उसका स्कूल लन्दन के ट्रूफोर्ड कॉलेज के साथ पार्टनरशिप की घोषणा करता है जिसके तहत कुछ बच्चों को वहां पढने का मौका मिलेगा, लेकिन सिर्फ कॉलेज के टॉपर ही इस लिस्ट में शमिल हों सकते हैं.
तरीका स्कूल की टॉपर बन भी जाती है लेकिन उसके सपने तब टूट जाते हैं जब चम्पक न चाहते हुए अनजाने में स्कूल की प्रिंसिपल (मेघना मलिक) को नाराज़ कर देता है और प्रिंसिपल तरीका का अप्रूवल लैटर फाड़ देती है. इसके बाद चम्न्पक ये फैसला करता है की वह तारिका को पढने के लिए लन्दन तो भेज कर रहेगा चाहे उसे ज़मीन-आसमान एक करना पड़े.
होमी अदजानिया ने इस फिल्म में बाप-बेटी के रिश्ते की मिठास को बखूबी दर्शाया है. उनका निर्देशन और फिल्म कहानी दोनों ही काफी मज़बूत हैं जो हर कदम पर फिल्म पर पकड़ बना कर रखते हैं. फिल्म में कॉमेडी का बढ़िया तड़का लगाया गया है और अदजानिया ने अपनी कहानी में ड्रामा और इमोशन भी औसत रखा है तो मेलोड्रामा कम ही देखने को मिलता है. कुछ पल तो ऐसे भी हैं जहाँ आपकी हंसी लम्बे समय तक नहीं रुकेगी और इसका श्रेय निर्देशक और कलाकारों दोनों को जाता है.
इस खुशनुमा सफ़र में स्पीडब्रेकर तब आने लगते हैं जब कहानी लन्दन पहुंचती है और धीरे - धीरे पेचीदा होने लगती है. एक के बाद एक ऐसी घटनाएं होती हैं जो दर्शक को उलझा कर रख देती हैं. कम समय में ज्यादा परोसने के कारण फिल्म दर्शक का उत्साह और दिलचस्पी दोनों कम कर देती है और एक समय के बाद खिंची हुई लगती है.
परफॉरमेंस की बात करें तो इरफ़ान खान 2 साल बाद स्क्रीन पर वापस लौटे हैं और उन्हें देखना आनंदमय है. अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने वाले पिता के रूप में इरफ़ान बेहतरीन लगे हैं और उन्हें देख कर ही आपके पैसे वसूल हो जाते हैं. तरीका के रूप में राधिका मदान ने भी बढ़िया काम किया है लेकिन उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले उनका प्रदर्शन यहाँ कुछ ढीला रहा है.
दीपक दोरियाल और डिंपल कपाड़िया ने हमेशा की तरह शानदार और जानदार प्रदर्शन किया है. वहीँ करीना फिल्म में कुछ देर से आती हैं मगर उनका किरदार नैना कोहली और उसकी मां के रूप में डिंपल कपाड़िया आज के दौर के वयस्कों और उनके माता-पिता के बीच के रिश्ते को जिस सटीकता से दिखाया गया है वह सराहनीय है. अपने छोटे से केमियो रोल में पंकज त्रिपाठी भी कमाल के लगे हैं.
अंग्रेजी मीडियम एक ऐसी फिल्म है जो आज के दौर के दो अलग - अलग कल्चर और जनरेशन की सोच के फर्क को सामने लाती है. तरीका बड़ी हो रही हैं और अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है इसलिए पार्ट टाइम जॉब करने लगती है ताकि अपने पिता का बोझ कम कर सके. मगर चम्पक को तरीका की सोच की उसे अपने पिता के पैसे लौटाने हैं या बोझ कम करना है समझ नहीं आती. ऐसी कई बातें है जिन्हें ये फिल्म सामने रखती है और अंत में चम्पक तारिका को अंत में जो सलाह देता है वह सिर्फ तरीका ही नहीं आपके साथ भी लम्बे समय तक रहने वाली है.
सचिन-जिगर और तनिष्क बागची का संगीत सुरम्य है और कहानी के साथ चलता है. कहीं भी बिना मतलब के ठूंसे हुए गाने नही हैं जो की राहत की बात है.
कुल मिलाकर, अंग्रेजी मीडियम एक पिता और उसकी बेटी की प्यार भरी कहानी है. होमी अदजानिया की ये फिल्म आज की जनरेशन और उनके सपनों को पूरा करने के लिए आज भी मां - बाप किस हद तक जाते हैं ये एक ज़रूरी मेसेज के साथ दिखाती है. फिल्म में दमदार परफॉरमेंसेस और कॉमेडी का मज़ेदार तड़का है. हालांकि सेकंड हाफ में कहानी पटरी से उतरती दिखती है मगर इरफ़ान और दीपक इसे वापस पटरी पर लाते हैं और आपको हँसते हुए ही घर भेजते हैं.