सुधांशु राय की इस कहानी का मुख्य पात्र बिज़नेस टाइकून विक्रमजीत राय सिंह है जिसकी शुरुआत बेहद साधारण पृष्ठभूमि से हुई लेकिन धीरे-धीरे जब कामयाबी उसके कदम चूमने लगी तो वक़्त के साथ वह घमंडी और क्रूर बन गया। कहानी की शुरुआत होती है विक्रमजीत को एक सत्र न्यायाधीश द्वारा जेल की सजा सुनाए जाने के साथ। उस पर आरोप है कि उसने 800 करोड़ रु की भारी रकम का गबन किया है। उसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज (इलाहाबाद) के नज़दीक एक पुरानी जेल में सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
लेकिन उसे यकीन है कि उसे जल्द ही जमानत मिल जाएगी और वह जेल से छूट जाएगा। इसी घमंड के चलते वह जेल में भी पुलिसकर्मियों और जेल अधिकारियों पर रौब जमाता रहता है। लेकिन फिर उसका सामना एक ऐसे कैदी से होता है जिस पर इल्ज़ाम है मानवभक्षी होने का और इस रहस्यमयी कैदी से मिलने के बाद से ही हमारी कहानी का किरदार एक डरपोक कैदी में बदल जाता है। कहानीकार सुधांशु राय जब जेल और उसमें बंद कैदियों का खाका अपने खास अंदाज़ में खींचते हैं तो जेल की ऊंची दीवारों और सलाखों के उस पार का खौफ श्रोताओं के रौंगटे खड़े कर देता है।
आखिर जेल में बंद यह रहस्यमी कैदी कौन है? क्यों उस कैदी को जेल में देखकर विक्रमजीत की घिग्धी बंध गई थी? आखिर उसने ऐसे कौन-से सवाल विक्रमजीत से किए जिन्हें सुनने के बाद उसका सामाना अपने ही भीतर छिपे शैतान से हुआ ? और कागज़ के उस पुर्जे पर क्या लिखा था जो कैदी ने कहानी के प्रमुख नायक को थमाया था? इन तमाम सवालों के जवाब 'द प्रिज़्नर' कहानी को सुनकर मिल सकते हैं। कहानी सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: