निर्देशक: पुष्पेन्द्र नाथ मिश्रा
रेटिंग: 3
निर्देशक पुष्पेन्द्र नाथ मिश्रा की 'घूमकेतु ' प्रकाश झा द्वारा निर्देशित और मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखित भारतीय टेलीविज़न शो 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' को एक मज़ेदार और अजीबो-गरीब श्रद्धांजलि है.
फिल्म की शुरुआत हमारे हीरो व इसके मुख्य किरदार 'घूमकेतु' (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) के संघर्ष से होती है जो एक लेखक बनना चाहता है, फिलहाल सिर्फ लेखक कोई फ़िल्मी कहानियां लिखने वाला स्क्रिप्ट राइटर नहीं। घूमकेतु अपने गाँव के स्थानीय दैनिक 'गुदगुदी' के कार्यालय में काम की तलाश में पहुँचता है, काम तो मिलता नहीं, मिलती है तो एक किताब की '30 दिन में बॉलीवुड लेखक कैसे बनें' जिसे गुदगुदी की सम्पादक जोशी जी (बृजेन्द्र काला) ने लिखा है और यहाँ से जन्म होता है घूमकेतु के स्क्रीन राइटर बनने के सपने का.
घूमकेतु की माहात्वकांक्षा जाग उठती है और अब वह एक बड़ा फिल्म लेखक बनना चाहता है जो किसी दिन शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन के लिए फ़िल्में लिखे। बुआ (इला अरुण) द्वारा मिली मदद और अपनी भारी-भरकम नई दुल्हन से नाखुश, वह घर से भाग जाता है। साथ में सिनेमा के लिए लेखन पर एक किताब और एक भयानक हेयरस्टाइल लिए वह सपनों के शहर मुंबई पहुँचता है जहां शुरू होती है उसकी दिलचस्प यात्रा जो हमें भी हमारे नायक के साथ ले चलती है.
निर्देशक-लेखक पुष्पेन्द्र नाथ मिश्रा ने अपनी फिल्म के हर किरदार को बखूबी पिरोया है। उसके गांव से मुंबई तक घूमकेतु के किरदार में जिस तरह परिवर्तन आता है वह खूबसूरत है। फिल्म के डायलॉग भी मजेदार हैं जो कॉमेडी के डोज़ को हमेशा बरकरार रखते हैं.
घूमकेतु का स्क्रीनप्ले मनोरंजक है और इसके प्रत्येक किरदार को काफी ध्यान से लिखा गया है. हर किरदार की एक बेकस्टोरी है जो कहानी का अपने अनूठे तरीके से समर्थन करती है और इसे और भी दिलचस्प बनाती है ।
परफॉरमेंस की बात करें तो, नवाजुद्दीन हमेशा की तरह शानदार लगे हैं हैं। उन्होंने अपने किरदार को इतने बेहतरीन ढंग से निभाया है की ऐसा लगता ही नहीं की वे एक्टिंग कर रहे हैं. एक छोटे शहर के लेखक के रूप में नवाज़ुद्दीन की मासूमियत व उनकी कहानियों पर आपको विशवास होता है और हमेशा की तरह उनकी स्क्रीन प्रेज़ेस और कॉमिक टाइमिंग भी बढ़िया है।
एक भ्रष्ट और लालची पुलिस वाले 'बडलानी' के रूप में अनुराग कश्यप अविश्वसनीय रूप से अच्छे लगे हैं। हालांकि उनका प्रदर्शन कुछ दृश्यों में थोडा कमज़ोर महसूस होता है मगर कुल मिलाकर उनका काम सराहनीय है.
रघुबीर यादव की ऑन-स्क्रीन एनर्जी यहाँ उत्कृष्ट है। टीवीएफ की वेब सीरीज़ 'पंचायत' के बाद, उन्होंने घूमकेतु में एक मध्यम-वर्गीय पिता के किरदार में जान डाल दी है और उन्हें देख कर आप सिवाए उनकी तारीफ के और कुछ नहीं कर सकते।
'संतो बुआ' के रूप में इला अरुण एक भी बेहद मज़ेदार हैं। उनका एक बॉलीवुड बुआ के रूप में प्रदर्शन गुदगुदाने वाला है. उनका किरदार उस गोंद की तरह है जो दद्दा और घूमकेतु को बांधता है। 'गुड्डन चाचा' के रूप में स्वानंद किरकिरे ने भी जितना स्क्रीन टाइम उन्हें मिला है उसमें औसत प्रदर्शन किया है.
संगीत के मोर्चे पर स्नेहा खानविलकर और जसलीन रॉयल का म्यूज़िक कहानी व लय को आकर्षक बनाता है व मनोरंजन में भी योगदान देता है.
कुल मिलाकर, घूमकेतु सीधे शब्दों में कहा जाए तो एक बढ़िया लाफ्टर डोज़ है जिसकी अभी के हालात देखते हुए हम सभी को ज़रुरत है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी और रघुबीर यादव के शानदार प्रदर्शन के के लिए ये फिल्म ज़रूर देखिये.