कास्ट: सैयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष, राजश्री देशपांडे
रेटिंग: ***1/2
चार साल पहले हमें नोटबंदी के रूप में एक अकल्पनीय स्थिति का सामना करना पड़ा था जिसने पूरे देश को एक साथ लाइन में ला कर खड़ा कर दिया था | 500 और 1000 के करंसी नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा जैसे ही हुई कुछ ही मिनटों में लाखों करोड़ रुपये के नोट महज़ कागज़ बन कर रह गए | अब इस अकल्पनीय स्थिति पर 4 साल बाद अनुराग कश्यप और नेटफ्लिक्स लेकर आये हैं 'चोक्ड' जो उनका कहना है की नोटबंदी की तरफ एक अलग नज़र देखती है. तो चलिए देखते हैं आखिर कितनी अलग है अनुराग कश्यप की नज़र.
चोक्ड की शुरुआत होती है एक आदमी से जिसके पास पैसों से भरा एक सूटकेस है. यह व्यक्ति इन पैसों के बंडल बना कर उसे प्लास्टिक के छोटे - छोटे बैंग्स में डाल कर अपने बाथरूम के सिंक में छिपा रहा है. बाथरूम का ये सिंक एक और फ्लैट के किचन सिंक से जुड़ा हुआ है जो है सरिता (सैयामी खेर) का. सरिता एक निम्न-मध्यम वर्ग की महिला है जो बैंक में काम करती है और अपने परिवार में कमाने वाली अकेली महिला है क्यूंकि उसका संगीतकार पति सुशांत (रोशन मैथ्यू) गर्व से बेरोज़गार है.
सरिता की ज़िन्दगी की ही तरह उसके किचन की हालत भी खस्ता है और सिंक है खराब. लेकिन जल्द ही सरिता का यही सिंक उसकी ज़िन्दगी बदल कर रख देता है जब वह एक रात नोटों के बंडल उगलना शुरू करता है | इन सब का श्रेय जाता है सरिता से एक फ्लोर ऊपर रहने वाले भाईसाहब को जो अनजाने में सरिता की बदहाली को खुशहाली में बदल देते है और इस तरह वो होता है जो वास्तव में अकल्पनीय है | मगर सरिता को मिली ये नयी - नयी ख़ुशी ज्यादा देर नहीं टिकती क्यूंकि उस पर नोटबंदी नाम का ग्रहण लग जाता है और इसके बाद सरिता की ज़िन्दगी में जो होता है वो उसकी खुशनुमा ज़िन्दगी को एक बुरे सपने में तब्दील कर देता है.
अनुराग कश्यप की चोक्ड काफी मनोरंजक है और फिल्म का स्क्रीनप्ले कई रोमांचकारी पलों से भरा है | अनुराग ने एक बार फिर एक बेहतरीन थ्रिलर-ड्रामा फिल्म देने की अपनी क्षमता को बखूबी साबित किया है। फिल्म इतनी साधारण मगर ख़ास है की दर्शक सरिता की जगह खुद को स्क्रीन पर देखने लगता है और यही आपकी नज़रों को स्क्रीन पर शुरू से अंत तक टिका कर रखता है.
एक्टिंग फ्रंट पर सैयामी खेर फिर एक बार अपने शानदार अभिनय से दिल जीत लेती हैं । उन्होंने सरिता के किरदार को बड़ी ख़ूबसूरती से उकेरा है और दर्शक यह मान लेता है की ये सरिता असली है । सरिता के बेटे समीर के रूप में पार्थवीर शुक्ला ने भी मनमोहक व मज़ेदार परफॉरमेंस दि है और उन्होंने देखना हर फ्रेम में मनोरंजक है |
सरिता के आलसी व बेफिक्र पति सुशांत के रूप में रॉशन मैथ्यू का प्रदर्शन अच्छा है. रॉशन ने भी अपने किरदार को परदे पर जिया है जो की सराहनीय है। एक चिंतित और भावनात्मक पड़ोसी के रूप में अमृता सुभाष भी अपने किरदार में अद्भुत लगी हैं।
सिनेमैटोग्राफर सिल्वेस्टर फोंसेका ने भी प्रशंसनीय काम किया है और एक निम्न मध्यमवर्गीय तबके के परिवार और लोगों को के रहन - सहन को कैमरा में बड़ी खूबसूरती से कैद किया है जो फिल्म की सुन्दरता को बढ़ाता है और इसे असलीयत के और करीब लाता है |
फिल्म का संगीत भी इसकी कहानी के साथ अच्छे से मिश्रित होता है और फिल्म में मनोरंजन बना कर रखने में सहायक है |
कुल मिलाकर, अनुराग कश्यप की चोक्ड एक ज़बरदस्त थ्रिलर-ड्रामा है जो आपको शुरू से अंत तक बाँध कर रखती है | कहानी में आगे क्या होगा ये बताना मुश्किल है जो इसे और ख़ास बनाता है. मज़बूत राइटिंग, निर्देशन और दमदार परफॉरमेंस के लिए ये फिल्म ज़रूर देखें |