निर्देशक: मयंक शर्मा
रेटिंग: **
मयंक शर्मा के निर्देशन में बनी अमेज़न प्राइम की सस्पेंस-थ्रिलर सीरीज ब्रीद: इनटू द शैडोज़ एक रोमांचक राइड हो सकती थी मगर इसका कमज़ोर स्क्रीनप्ले और प्रेडिक्टेबल कहानी आपको ये सोचने पे मजबूर कर देती है की क्या ये सीज़न इस सीरीज के पहले सीजन की बराबरी करना तो दूर इसके करीब भी है या नहीं|
ब्रीद की कहानी दिल्ली में स्थित है जहाँ एक मेडिकल स्टूडेंट गायत्री (रेशम श्रीवर्धन) एक मास्क पहनने वाले व्यक्ति द्वारा अपहरण कर लिया जाता है | इसके बाद कहानी सीधा पहुँचती है अदालत में जहां हमारी मुलाकात होती है अविनाश सभरवाल (अभिषेक बच्चन) से जो की एक साइकायट्रिस्ट है और एक केस में गवाह पेश कर रहा है| अविनाश उसकी पत्नी आभा (नित्या मेनन) और उनकी बेटी सिया (इवाना कौर) जिसे डायबिटीज़ है, एक साथ काफी खुश हैं लेकिन एक दिन उनकी इस ज़िन्दगी में तूफ़ान आ जाता है जब सिया का एक पार्टी क्वे दौरान अपहरण हो जाता है और पुलिस भी महीनों तक सिया को ढूंढने में नाकाम रहती है|
9 महीने के बाद अविनाश और आभा ये मान लेते हैं की अब सिया कभी नही मिलेगी और तभी उन्हें किडनैपर संपर्क करता है और ये मांग करता है की अगर उन्हें सिया वापस चाहिए तो उन्हें कुछ चुने हुए लोगों की जान लेनी पड़ेगी जिन्होंने कोई न कोई पाप किया है| दूसरी तरफ इंस्पेक्टर कबीर सावंत (अमित साध) को ट्रान्सफर करके अब दिल्ली क्राइम ब्रांच में भेज दिया गया है जहाँ वह खुश नहीं है और उसकी किस्मत उसे सिया के केस तक ले जाती है जहाँ उसे फिर एक मकसद मिलता है| इसका बाद इस सब की ज़िन्दगी जो मोड़ लेती है वह कहानी है ब्रीद: इनटू द शैडोज़ की|
मयंक शर्मा का निर्देशन अभिषेक और अमित की परफॉरमेंस के बीच बैलेंस बना कर चलता है| जहाँ कबीर का किरदार आपको हर दृश्य में बाँधने का काम करता है वहीँ अविनाश का किरदार ऐसा कर पाने में असफल दिखता है| फिल्म का स्क्रीनप्ले शुरुआत में बेहद ढीला है जो की सीरीज के मध्य में जा कर रफ़्तार पकड़ता है मगर तब तक दर्शक की रुचि ही ख़त्म हो जाती है|
अविनाश सभरवाल के किरदार में अभिषेक बच्चन ने कोशिश तो पूरी की है मगर ऐसा कहा नहीं जा सकता है की ये उनकी बेहतरीन परफॉरमेंस है उल्टा ज़्यादातर जगह वे असहज नज़र आते हैं| सीरीज़ में उनके किरदार के पास करने के लिए बहुत कुछ था मगर अफ्सोस ऐसा कुछ बी अभिषेक कर नहीं पाए हैं हालांकि कुछ दृश्यों में उनकी तारीफ बनती है|
नित्या मेनन ने अपने किरदार के साथ पूरा इन्साफ किया है| सैयामी खेर के स्क्रीन पर कम ही समय के लिए आती हैं मगर जब आती हैं तो आपकी नज़र उन पर ही रहती है| पूरी सीरीज में अगर कोई है जिसने इस कमज़ोर कहानी को अपने कंधे पर उठाया हुआ है तो वे हैं अमित साध| कबीर के रूप में अमित एक बार फिर अपनी छाप छोड़ते हैं व उनकी डायलॉग डिलीवरी, हाव भाव सब कुछ बिलकुल उत्कृष्ट नज़र आता है| श्रीकांत वर्मा और ऋषिकेश जोशी अपनी एक्टिंग से आपको हंसाने की भी कोशिश करते हैं|
कुल मिलाकर ब्रीद: इनटू द शैडोज़ की शुरुआत बेहद धीमी है जो की धीरे - धीरे रफ़्तार पकडती है| अभिषेक बच्चन का प्रदर्शन यहाँ काफी साधारण है और उनके चाहनेवालों ने जो उम्मीद लगाई थी उस पर वे खरे नहीं उतारते| कहने में कुछ अच्छे ट्विस्ट हैं वे ज्यादा देर तक आपकी रूचि बना कर नहीं रख पाते| आसान शब्दों में कहा जाए तो आपकी सस्पेंस और थ्रिल की प्यास बुझाने में अभिषेक बच्चन की डेब्यू सीरीज़ नाकाम रहती है|