निर्देशक: अनु मेनन
रेटिंग: ***
जैसा कि हम सब जानते हैं फिल्म की कहानी, भारत की महान गणितज्ञ स्वर्गीय शकुन्तला देवी के जीवन पर आधारित है। पर जितना हमने फिल्म के बारे में सोच रखा है, यह उससे कहीं ज़्यादा अलग और रोमांचक है। फिल्म में स्वर्गीय शकुन्तला देवी की मैथ्स से लगाव, जवानी के दिनों का पहला प्यार, माता पिता से नोक - झोंक जैसी कई अनकही बातों का मिश्रण देखने को मिलता है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है बेंगलुरु के एक छोटे से गांव से, जहां शकुन्तला देवी 5 साल की उम्र से ही गणित के बड़े - बड़े सवालों का जवाब देने में सक्षम है और उनके इन कारनामों से उनके परिजन हैरान होने के साथ काफी खुश भी होते हैं। अब चूंकि शकुन्तला का परिवार काफ़ी गरीब होता है तो उनके पिताजी उनके इस टैलेंट को अपना रोज़गार बना लेते हैं, और इससे धीरे धीरे शकुन्तला प्रसिद्ध होने लगती हैं। पर उनके जीवन में दुःख का पहाड़ तब टूटता है जब उनकी बड़ी बहन पैसों के अभाव से दम तोड़ देती है, और शकुंलता जो अपने घर की इकलौती कमाने वाली शक्स है, वह अपनी बहन का इलाज न करा सकने पर अपने माता पिता से नाराज़ रहने लगती हैं, उन्हें लगता है के उनके माता पिता उनसे नहीं बल्कि उनके पैसों से प्यार करते हैं और ये नाराज़गी शकुन्तला के आखिरी पड़ाव तक बरकरार रहती है।
शकुन्तला के जीवन में एक और नया मोड़ आता है जब उन्हें पहली बार प्यार होता है, वो भी एक ऐसे शख्स से जो सिर्फ उनके नाम से प्यार करता है। किसी ने सच कहा है, "प्यार में धोखा खाए इंसान के लिए सब कुछ मुमकिन हो जाता है", ऐसा ही कुछ शकुन्तला के साथ होता है और वह भारत छोड़ कर लंदन पहुंच जाती हैं। शकुन्तला देवी लंदन पहुंच कर पूरे विश्व में नाम कमा लेती हैं और यहां तक कि एक बार तो वह अपने गणित के ज्ञान से कंप्यूटर को भी फेल कर देती हैं और तब उनका नाम "ह्यूमन कंप्यूटर" पड़ जाता है।
इसके आगे शकुन्तला की ज़िन्दगी में एक आईएएस अफसर यानी परितोष की एंट्री होती है, जिससे उन्हें प्यार हो जाता है और फिर दोनों की ज़िन्दगी में आती है उनकी एक नन्ही सी बेटी जो उनके जीवन को खुशियों से भर देती है। आगे की कहानी में काफी नोक झोंक और प्यार छुपा हुआ है जो कि आपको फिल्म देख कर ही पता चलेगा। बस एक बात तो तय है के फिल्म को देख कर आप जितना मुस्कुराएंगे उतना ही आपको रोना भी आयेगा। मतलब फिल्म एकदम पैसा वसूल होने वाला है।
निर्देशक अनु मेनन ने उन्होंने शकुन्तला देवी जैसे बड़ी शख्सियत के जीवन की सभी उतार चढ़ाव बखूबी दिखाए हैं। अनु ने कहानी का फोकस शुरुआत में शकुंतला और उनके टैलेंट पर और बाद में उनके और उनकी बेटी के बीच के रिश्ते पर रखा है जो की बैलेंस बना कर चलता है| मगर कहानी शकुंतला के गणित जीनियस होने पर कहीं - कहीं कुछ ज़्यादा ही फोकस करते हुए नज़र आती है जो की कुछ देर के बाद उबाऊ लगने लगता है | इसके अलावा कुछ जगह पर विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा की केमिस्ट्री में भी मां- बेटी के रिश्ते वाला जादू गायब दिखता है |
कहानी की बात करें तो सब बढ़िया है मगर यह कुछ फिल्म आपको कम समय में काफी कुछ बताने के चक्कर में काफी तेज़ चलती हुई और कहीं - कहीं तो दौड़ती हुई नज़र आती है जो की दर्शक कोई कंफ्यूज क्र सकता है | फिल्म की शुरुआत काफी अच्छी है जो आपको पहले ही सीन से बाँध लेती है हालांकि जैसे - जैसे फिल्म आगे बढती है ये पकड़ थोड़ी कमज़ोर होती दिखती है खासकर अंत में| मगर कुल मिलाकर शकुंतला देवी आपका मनोरंजन करने में कामयाब रहती है|
एक्टिंग डिपार्टमेंट में विद्या बालन ने अपने किरदार में हमेशा की तरह जान भर दी है, उन्होंने शकुन्तला देवी के बचपन से जवानी से ले कर बुढ़ापे तक के सफ़र को रोचक, रोमांचक और विचारशील बना दिया है| उन्हें देखना बेहद आनंदमय है और पूरी फिल्म उन्ही के कन्धों पर सवार होकर चलती है| साथ ही सन्या मल्होत्रा, अमित साध और जिशु सेनगुप्ता ने भी बहुत बढ़िया तरीके से अपने किरदारों को निभाया है और सभी के अभिनय को देख आप फिल्म में खो जाएंगे।
संगीत की बात की जाए तो फिल्म में 4 गाने हैं जिनमे से 3 गानों को सुनिधि चौहान ने और एक गाने को मोनाली ठाकुर ने आवाज़ दी है और ये चारों गाने अपनी - अपनी जगह सही लगते हैं|
कुल मिलाकर, अनु मेनन की शकुंतला देवी कुछ जल्दी में नज़र आती है और सेकंड हाफ में कहानी पर निर्देशक की पकड़ भी कमज़ोर होती है मगर विद्या बालन ने अपनी ज़बरदस्त एक्टिंग से फिर ये साबित किया है की अदाकारी के मामले में उनकी शायद ही फिलहाल बॉलीवुड में कोई सानी हो| कहानी आपको हंसाती भी है रुलाती भी है और फिर हंसाती है तो इसे एक बार ज़रूर देख सकते हैं|