रेटिंग: ***
प्लेटफार्म: ज़ी5
प्रकाश झा ने फिल्म 'परीक्षा' के द्वारा लोगों को एक सीधी सी कहानी बताई है कि प्रतिभा का अमीरी - गरीबी से कोई लेना-देना नही होता है| उनके अनुसार समाज में लोगों द्वारा बहिष्कृत तबके के प्रतिभावान बच्चों को भी शहर के नामी स्कूलों में अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिये और इसी से पूरे समाज का विकास अच्छे से होगा|
वर्तमान समय में हर मोहल्ले और हर गली में इंग्लिश मीडियम स्कूल अपना आधिपत्य जमा चुके हैं परन्तु सबसे अच्छे अंग्रेजी स्कूल की बात ही अलग होती है| वहां पर अपने बच्चे को भेजने का सपना हर कच्चे घर में रहने वाला आदमी देखता है| यही सपना निर्देशक प्रकाश झा की फिल्म 'परीक्षा' में बुची पासवान (आदिल हुसैन) ने भी देखा है, वह भी अपने बेटे बुलबुल (शुभम जैन) को रांची के सबसे बड़े अंग्रेजी मीडियम स्कूल 'सफायर इंटरनेशल' में पढ़ाने का सपना देखता है|
बुची का कहना है कि स्टेट बोर्ड वाले सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल में बेसक उसका बेटा अव्वल आ जाए परन्तु उसको जिंदगी में तरक्की सीबीएसई स्कूल 'सेफायर इंटरनेशल' में पढ़ने के बाद ही मिलेगी| अगर ऐसा नही होता तो बुलबुल को भी शायद मेरी ही तरह साइकल रिक्शा चलानी पड़ेगी, बुची को उसके आस-पास के लोग बिलकुल सहायता नही करते है उनका मानना है कि बुलबुल अगर अंग्रेजी पढ़ गया तो क्या पता इलेक्ट्रिक रिक्शा भी खरीद सकता है| लोगों को यह फिल्म देखने के बाद एकदम सच्ची कहानी लगने वाली है|
बुची हर दिन सफायर स्कूल के बच्चों को अपनी साइकल रिक्शा पर बैठाकर लेने और छोड़ने जाता है और मन में यही सोचता रहता है कि काश उसके बेटे का दाखिला यहाँ हो सकता मगर हो भी जाता तो वह उसकी फ़ीस कैसे भरेगा| बबली का एडमिशन किस्मत से उसकी पसंद के स्कूल में हो जाता है मगर फीस और एक्स्ट्रा क्लास का बजट बुची की पहुँच से बाहर होने के कारण वह पैसे जुटाने के लिए शराब और चोरी - चकारी के चक्कर में पड़ जाता है| आगे की कहानी यही है की क्या अब बुची के सपने सच हो पाएंगे या फिरत वह इन्ही गलत कामों में फंसा रह जाएगा |
प्रकाश झा ने अपनी पहली फिल्मों की तरह इसको भी सहज और सरल रूप से लोगों के सामने पेश किया है| बुची का किरदार निभा रहे आदिल हुसैन ने इतने अच्छे तरीके से अपना अभिनय दिखाया है कि जब-जब वह बुलबुल की पढ़ाई की बात करते हैं तो आपको सपने उनकी आंखों में साफ-साफ नज़र आएगें|
फिल्म की कहानी मज़ेदार भी है और दिल को छू लेने वाली भी| फिल्म आपको हंसाती भी है और इमोशनल भी करती है मगर सबसे बड़ी बात ये है की ज़िन्दगी के उस हिस्से से मिलवाती है जहां लोगों को छोटी से छोटी ख़ुशी के लिए भी अपनी किस्मत से लड़ना पड़ता है | इसे देख कर दिल भर आता है और ये ख़याल आता है की काश आप बुच्ची और बुलबुल की मदद कर सकते हैं और यही फिल्म की सबसे बड़ी जीत है |
वैसे तो फिल्म कहानी बुलबुल और उसकी पढ़ाई के इर्द-गिर्द घूमती है मगर इसके असली हीरो हैं आदिल हुसैन| उन्होंने अपने बच्चे के लिए आँखों में बड़े सपने संजोये हुए गरीब रिक्शा चालाक का किरदार बखूबी निभाया है |
ड्यूटी के बाद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने वाले रांची के एसपी कैलाश आनंद के रूप में संजय सूरी भी ने भी सटीक काम किया है और उनका अदाकारी हर बार की तरह उम्दा है |
प्रियंका बोस भी बुलबुल की मां के रूप में राधिका के रूप में अपनी दुनिया और अपनी परेशानियों से रूबरू करवाने में सफल रहती हैं जो अपने लिए नहीं बल्कि सिर्फ अपने बच्चे और सपनों के लिए जीती है| इसके अलावा सह कलारों का काम भी बढ़िया है|
सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो झा ने हर बार की तरह बिहार और वहां के रहन - सहन को बखूबी दर्शाया है| किरदारों की चाल - ढाल, रहन - सहन, व बात करने का तरीका सब बेहतरीन है| फिल्म का संगीत कहानी के हिसाब से ठीक है|
कुल मिलाकर परीक्षा एक ऐसी फिल्म है जो समाज के निचले तबके की परेशानियां आपके सामने रखती है और अपनी बात बड़ी खूबसूरती से कहती है | आदिल हुसैन को बुची के रूप में देखना आनंदमय है और झा ने फिर ये साबित किया है की समाज के निचले तबके की बात बड़े परदे पर उनसे बेहतर शायद ही कोई रख सकता हो|