बाप-बेटी के रिश्ते के प्रति समर्पित, यह फिल्म शबाना और बाबा आज़मी के पिता कैफ़ी आज़मी साब को श्रद्धांजलि है, जिनकी इस वर्ष जन्म शताब्दी मनाई गई थी।
'मी रक़सम' जिसका मतलब 'आई डांस' है; जो भावनात्मक रूप से आगे बढ़ने और परिवारिक ड्रामा है। ऐसे में, मुस्लिम परिवारों में डांस से जुड़ी पाबंदी पर बात करते हुए नसीर साहब कहते है,`मुझे नहीं पता कि क्या सरोज मुस्लिम पैदा हुई थी, तो शायद डांस सीखना में उन्हें कोई बाधा नहीं आती, लेकिन मैं कह सकता हूं कि अधिकांश पारंपरिक मुस्लिम परिवारों में डांस सीखना आज भी निषेध है। जो बच्चे डांस करना चाहते हैं, उन्हें मेरी सलाह है कि लगातार प्रयास करें और हार न मानें। माता-पिता की आपत्तियों को हमेशा दूर किया जा सकता है और जब डांस सीखने के अविश्वसनीय श्रम की शुरुआत होती है तो वैसे भी वे एक छोटी बात की तरह प्रतीत होंगे। उन्हें यह पता होना चाहिए कि एक औसत दर्जे का डांसर होने के लिए भी आपको कमर तोड़ अभ्यास की ज़रूरत पड़ती है।"
यह प्यार, विश्वास और समाज के खिलाफ एक सपने को जीने पर आधारित है। फिल्म की कहानी, एक पिता और उसकी युवा बेटी द्वारा साझा किए गए रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है। यह एक युवा लड़की द्वारा डांसर बनने की आकांक्षा की कहानी है, लेकिन मिज़वान जैसे छोटे से गांव से तालुख रखने के कारण, हर कोई उसके सपनों और पसंद पर सवाल उठाता है। यह सिर्फ़ उसके एकमात्र पिता ही थे जो उसके सपने को पूरा करने में उसका साथ देते है।
यह बाबा आज़मी के निर्देशन में बनने वाली पहली फिल्म है। हिंदी फीचर फिल्म की शूटिंग आजमगढ़ और उसके आसपास के इलाकों में स्थित मिजवान में की गयी है। मी रक़सम हमें 21 अगस्त को ज़5 पर देखने को मिलेगी |