कलाकारः बॉबी देओल, अनूप सोनी, हितेश भोजराज, भूपेंद्र जदावत, समीर परांजपे
रेटिंग: ***
पुलिस ट्रेनिंग स्कूल नासिक से |
अस्सी के दशक में मुंबई में सत्यघटनाओं के आधार पर हुसैन जैदी ने एक किताब 'द क्लास आफ 83'लिखी थी| अब उनकी इस किताब हुसैन पर रेड चिल्लीज़ इंटरटेनमेंट एक क्राइम-थ्रिलर सीरीज़ लेकर आया है जिसका निर्देशन अतुल सभरवाल ने किया है|
कहानी शुरू होती है अस्सी के दशक में जहां आई पी एस ऑफिसर विजय सिंह (बॉबी देओल) को उसके खबरी सूचना देते हैं कि मुंबई का बहुत बड़ा गैंगस्टर कालसेकर नासिक में मौजूद है| विजय सिंह की पत्नी सुधा अस्पताल में है परन्तु वह अपनी पत्नी व बेटे रोहन को ज़रुरी काम बताकर नासिक चला जाता है| कालसेकर को खत्म करने के लिए नासिक जा रहे विजय सिंह के पहुंचने से पहले ही खबर मिल जाने से कालसेकर भागने में कामयाब हो जाता है, इस रोमांचक वारदात में उसके कुछ गुर्गों के साथ छह पुलिस कर्मी भी मारे जाते हैं| मामला गरमा जाता है और विजय सिंह को सजा के तौर पर पुलिस अकादमी का डीन बनाकर भेज दिया जाता है|
विजय का नाम मुंबई के उन पुलिस ऑफिसर में आता है जो सर्वाधिक इमानदार व काबिल हैं| हर अपराधी और पुलिस अकादमी के छात्र उसके नाम से ही भय खाते हैं| इसके बाद विजय सिंह पुलिस अकादमी के तीन बदमाश कैडेट प्रमोद शुक्ला (भूपेंद्र जदावत), विष्णु वर्दे (हितेष भोजराज), असलम (समीर परांजपे ) को इस ढंग से तैयार करता है कि उनके पास अपराधियों और गैंगस्टर्स को खत्म करने की पूरी स्वतन्त्रता होगी| इसमें बॉबी अपने किरदार में काफी सीरियस नज़र आ रहे हैं और वह उन सभी क्रिमिनल को खत्म करना चाहते हैं जो पूरे शहर को दीमक की तरह खत्म कर रहे हैं|
निर्देशक अतुल सभरवाल ने सीरीज़ में अस्सी के दशक को बहुत ही अच्छे तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत किया है| जिन्होने कभी अस्सी के दशक में मुंबई को नही देखा है, उनके सामने इस फिल्म को देखते ही पुरानी मुंबई आ जाती है| इस सबसे बड़ी चुनौती पर निर्देशक अतुल सभरवाल खरे उतरे हैं, उन्होंने अपने कौशल का बेहतरीन परिचय दिया है|
यह अच्छाई व सच्चे इंसानों की रक्षा करते हए बुराई के खात्मे पर एक बेहतरीन रोचक व मनोरंजक सीरीज़ है| इसके कुछ डायलॉग जैसे 'मसलन-जिंदगी किसी भी विजय सिंह से बेरहम हो सकती है' और 'जहां बारूद काम न करे, वहां दीमक की तरह काम करना चाहिए' दमदार लगते हैं |
इस सीरीज़ में पहली बार बॉबी देओल एक अलग अंदाज़ में नज़र आए हैं, उन्होने काफी सहज और आकर्षक अभिनय किया है| विजय सिंह के किरदार में उनके अभिनय को देखकर आपके मन में ये ख़याल ज़रूर आएगा की उनकी अभिनय प्रतिभा का अब तक फिल्मकारों ने सही उपयोग क्यों नही किया है|
मुख्यमंत्री मनोहर पाटकर के किरदार में अनूप सोनी ने भी कमाल का अभिनय किया है वहीं विष्वजीत प्रधान, भूपेंद्र जदावत, हितेष भोजराज, जॉय सेन गुप्ता, निनाद महाजनी, पृथ्विक प्रताप, समीर परांजपे जैसे कलाकारों ने भी अपना किरदार बड़े ही जबरदस्त तरीके से निभाया है|
अंत में यही कहा जा सकता है कि मुंबई का अंडरवर्ल्ड और एनकाउंटर करती पुलिस दर्शकों के दिलों में शुरू से ही रहस्य बनाकर रखती जो देखने में शायद उतना नया न लगे लेकिन रोमांच की कमी यहाँ बिलकुल नहीं है | 'क्लास ऑफ '83' का सबसे मजबूत पक्ष उसकी पटकथा है, जो देखने में काफी दिलचस्प लगती है। बॉबी देओल और सह कलाकारों की उम्दा अदाकारी को देखने के लिए यदि आपके पास समय है तो इसे ज़रुर देखिये|