निर्देशक: अलंकृता श्रीवास्तव
प्लेटफ़ॉर्म: नेटफ्लिक्स
रेटिंग: *1/2
अलंकृता श्रीवास्तव बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म 'टर्निंग 30' के छह साल बाद अपनी दूसरी फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' लेकर आई थी जिसे खूब सराहा गया था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सूचना प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड ने फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' को सर्टिफिकेट देने से ही इंकार कर दिया था। ये बात तीन साल पहले की है और तब इस बात पर खूब बवाल मचा था। हाल ही में अलंकृता ने अपनी नई फिल्म 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ किया है, इस बार एकता कपूर ने भी उनका साथ दिया है।
फिल्म 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' की कहानी दो बहनों डॉली (कोंकणा सेन शर्मा) और किटी (भूमि पेडनेकर) की है जो अपने अपने जीवन में आई मुसीबतों को खत्म करने में लगी हुई हैं। डॉली को लगता है दो बच्चों की मां बनने के बाद उसकी कामेच्छा को उसका पति पूरा नही कर पा रहा है और वह उसे ही दोष देता रहता है।
किट्टी एक एडल्ट कॉल सेंटर में काम करती है, जहां लड़कों को फोन पर खुश करने के उसे पैसे मिलते हैं। डॉली और किट्टी दोनों की अलग-अलग कहानी हैं। दोनों ही अपने-अपने तरीके से आकाश में उड़ने की कोशिशें कर रही हैं। डॉली अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से संतुष्ट नहीं है, इसके लिए वो ख़ुद को ही ज़िम्मेदार समझती रहती है, जब तक कि डिलीवरी ब्वॉय उस्मान से उसका प्रेम-प्रसंग शुरू नहीं होता। उस्मान के साथ वक़्त बिताने से उसे एहसास होता है कि दोष उसमें नहीं है।
उधर कम पढ़ी-लिखी किट्टी एक एडल्ट कॉल-सेण्टर में काम करती है और फोन पर लोगों से रोमांटिक बातें करके उन्हें संतुष्ट करती है। किट्टी जिस परिवार से आती है, उसमें इस तरह के कामों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है। लिहाज़ा, उसने अपनी जॉब के बारे में किसी को नहीं बताया | किट्टी आगे चल कर अपने ही एक क्लाइंट प्रदीप को पसंद करने लगती है और उसे भी प्यार हो जाता है| आगे दोनों की कहानी में क्या मोड़ आता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी |
'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' कहने को महिला सशक्तीकरण पर बनी फिल्म है| फिल्म को सीधे ओटीटी पर रिलीज़ किया गया है तो यहां न सेंसर बोर्ड का पंगा है और न कोई विवाद। इसी मुद्दे को फिल्मी चोला पहनाते हुए अलंकृता नौकरी की मजबूरी और पति के सेक्स के प्रति रवैय्ये को कहानी में ले आई हैं। 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' में निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव से उम्मीद थी कि वह इस बार बजाय बिस्तर वाली कहानी के कुछ सीरियस वाला विषय लेकर आएंगी, लेकिन उनकी पहली कमज़ोरी इस फिल्म की भटकी हुई कहानी है।
फिल्म का नाम सुनकर कहानी वैसे तो बड़ी रोचक लगती है। किसी शॉर्ट फिल्म के लिए तो ये सही मसाला है पर निर्देशक को तो दो घंटे की फिल्म बनानी है। तो फिर झेलिए, अलंकृता को जो कहानी सीधे - सीधे डॉली और किट्टी की कहानी बनाकर कहनी चाहिए थी, उसे उन्होंने एक मज़ाक बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया है।
कोंकणा और भूमि भले बहुत बोल्ड और मेहनती कलाकार हों, लेकिन दोनों से अपने-अपने किरदार आधे अधूरे ढंग से निभते दिखते हैं। अमोल पाराशर अपने किरदार को बढ़िया लगे हैं, विक्रांत मैसी ने पूरी कोशिश की है मगर कोई भी किरदार आप पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाता |
कहानी और अदाकारी विभाग में कमज़ोर पड़ी फिल्म 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' की तीसरी कमज़ोर कड़ी है इसका संगीत। इसका बैकग्राउंड म्यूज़िक फिल्म को सपोर्ट नहीं करता और जो एक गाना है वो भी कब आता है कब जाता है कुछ पता नहीं चलता |
अंत में यही कहा जा सकता है कि अच्छा ही हुआ 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' सीधे ओटीटी पर रिलीज़ की गई, नहीं तो दर्शकों के दो घंटे सिर्फ आरती बजाज की एडीटिंग और जॉन जेकब की सिनेमैटोग्राफी के लिए बर्बाद कर देना ठीक नहीं लगता।