क्रैकडाउन रिव्यु: पूरी तरह 'क्रैक' व 'डाउन' है अपूर्व लाखिया की क्रैकडाउन

Thursday, September 24, 2020 17:22 IST
By Santa Banta News Network
निर्देशक: अपूर्व लखिया

कलाकार: साकिब सलीम, श्रिया पिलगांवकर, इकबाल खान, वलुश्चा डिसूजा, अंकुर भाटिया और राजेश तेलंग

प्लेटफार्म: वूट सेलेक्ट

रेटिंग: *1/2

देश को बाहरी खतरों से बचाने के लिए काम करने वाली भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के डिप्टी की जो छवि निर्देशक अपूर्व लखिया ने अपनी पहली वेब सीरीज़ 'क्रैकडाउन' में बनाई है| उसे देखने के बाद एक सर्कुलर इस एजेंसी की तरफ से भी जारी हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। वूट सेलेक्ट पर हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज 'क्रैकडाउन' की गालियां भी जबर्दस्ती की लगती हैं, शो तो खैर ज़बर्दस्ती का लगना ही था। आठ एपीसोड बैक टू बैक देखने के बाद पता ही नहीं चलता कि आखिर सीरीज़ जाना किस तरफ चाहती थी?

अभिषेक बच्चन और अमिताभ बच्चन तक को निर्देशित कर चुके निर्देशक अपूर्व ने ड्रोन को एक एसयूवी से उड़ाकर दूसरी एसयूवी तक ले जाने में कोई खास क्रिएटिविटी नहीं दिखाई है। फ़िल्मी की कहानी कैसी है, निर्देशक और बाकी कलाकारों ने इसमें कैसा काम किया है आइये जानते हैं |

वेब सीरीज़ 'क्रैकडाउन' की कहानी एक रॉ एजेंट रियाज़ पठान (साकिब सलीम) के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है। रियाज़ को दफ्तर में सब लोग आरपी कहकर बुलाते हैं, क्यों? शायद नाम में ही सब कुछ रखा है। फैमिली मैन और स्पेशल ऑप्स जैसी सीरीज़ देख चुके दर्शकों को ये सीरीज़ अगर आखिर तक देखनी है, तो किसी भी तरह के सवाल को नज़रंदाज़ करते रहना होगा क्योंकि ये सीरीज़ बनाते समय शायद मेकर्स ने खुद से भी कोई सवाल नहीं किये |

तो आरपी रॉ की एक ऐसी यूनिट में काम करता है जिसके वजूद का किसी को पता नहीं है। वह और उसकी टीम सीधे अपने चीफ अश्विनी (राजेश तैलंग) को रिपोर्ट करती है जिसे अपने होने वाले दामाद का नाम महक होने से दिक्कत है। बॉस अश्वनी राय के साथ रियाज़ की ट्यूनिंग बढ़िया है मगर बॉस के सहायक ज़ोरावर कालरा (इकबाल खान) की नजरों में वह खटकता रहता है| अश्वनी की कुर्सी पर भी कालरा की नज़र है |

दिल्ली में आरपी और उसकी टीम कुछ आतंकियों को मार गिराती है| मरने वालों में एक लड़की भी है, जिसकी टिप उनके पास नहीं थी| रॉ इन आतंकियों के पाकिस्तान में बैठे आका हनीफ तक पहुंचना चाहती है, तभी अश्वनी को एक लड़की की याद आती है, जो उन्हें एक परिचित की शादी में दिखी थी| यह है दिव्या (श्रीया पिलगांवकर), दिव्या शादियों में मेहंदी लगाने का काम करती है और आतंकियों के साथ मारी गई लड़की मरियम की हमशक्ल है |

इस हमशक्ल के माध्यम से रॉ हनीफ तक पहुंच सकती है क्योंकि मरियम की शादी हनीफ के मारे गए आतंकी भाई ज़हीर से होने वाली थी| आगे इस कहानी में क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी जिसके बारे में अच्छे से जान लेना सही रहेगा |

लेखक-निर्देशक का पूरा फोकस कहानी के बजाय साकिब सलीम और श्रीया पिलगांवकर पर है| नतीजा यह कि इकबाल खान, वेलुशा डिसूजा, राजेश तैलंग, व अंकुर भाटिया के किरदार भटकते नज़र आते हैं| ऐसा लगता है कि ये लोग साकिब-श्रीया की कहानी को ब्रेक देने के लिए बीच-बीच में एंट्री लेते हैं, खास तौर पर इकबाल-वेलुशा के ट्रैक और कैरेक्टरों पर काम का अभाव खटकता है |

राजेश तैलंग की प्रतिभा का भी यहां निर्देशक अच्छे से इस्तेमाल नही कर पाए हैं| इस वेब सीरिज़ के सभी कलाकार अपने-अपने हिस्से में आए काम को ठीक से कर पाने में असफल दिखते हैं और हैं भी | क्रैकडाउन के बैकग्राउंड म्यूज़िक समेत तकनीकी विभाग भी कुछ ख़ास कमाल करने में विफल दिखता है|

सीरीज़ की कास्टिंग इसकी सबसे कमज़ोर कड़ी है, न तो साकिब सलीम और न ही श्रिया पिलगांवकर अपने-अपने किरदारों में सहज नज़र आते हैं। इकबाल खान का किरदार कहानी में सिर्फ इसलिए है कि कोई तो विलेन चाहिए यहां, नहीं तो कोई हीरो कैसे बनेगा। हालांकि राजेश तेलंग जब भी स्क्रीन पर आते हैं, थोड़ा सा लोगों का मनोरजन ज़रूर करते हैं ।

लेकिन, दिक्कत यहां ये है कि पहला सीज़न खत्म होने के बाद भी ये तय नहीं हो पाता कि डायरेक्टर आखिर कहना क्या चाहता है। एक ही बार में 10 एपीसोड की शूटिंग करके एडिट करते समय उनके 16 एपीसोड बनाकर आठ पहले सीज़न के लिए और आठ दूसरे सीज़न के लिए बचा लिए गए दिखते हैं। यही गलती इससे पहले नेटफ्लिक्स अपनी सीरीज 'शी' में दोहरा चुका है। इस वेब सीरीज़ को इग्नोर ही करें तो बेहतर होगा नहीं तो बाकी का हफ्ता आपका डिस्टर्ब हो सकता है।
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