निर्देशक: मकबूल खान
रेटिंग: ***
प्लेटफ़ॉर्म: ज़ी प्लेक्स
कहते हैं की किताब के कवर को देख कर उसका आंकलन नहीं करना चाहिए, कहानी का पता किताब को देख कर नहीं बल्कि उसे पढ़ कर चलता है | ये कहावत ईशान खट्टर व आनन्या पाण्डेय की 'खाली - पीली' पर भी लागू होती है क्यूंकि ये फिल्म आपको जो ट्रेलर में नज़र आई थी उससे कुछ हटके है | फिल्म को अपने गानों के लिए काफी खरी - खोटी सुन्नी पड़ी अब फिल्म को क्या सुनना को मिलेगा उसके लिए आइये ज़रा डालते हैं फिल्म पर एक नज़र |
खाली पीली की कहानी की शुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर शिवपुर से जहां विजय चौहान (ईशान खट्टर) और उसके पिता (अनूप सोनी) एक सुनार की दूकान लूट लेते हैं, दोनों के पीछे पुलिस लग जाती है जिनसे बचने के लिए विजय ट्रेन पकड़ करपहुँचता है सपनों के शहर मुंबई | यहाँ पहुँच कर विजय अपना नाम बदल कर ब्लैकी रख लेता है और युसूफ (जयदीप एहलावत) के साथ काम करने लगता है | जल्द ब्लैकी की मुलाकात होती है पूजा (आनन्या पाण्डेय) से और जैसे - जैसे वक़्त बीतता है दोनों गहरे दोस्त बन जाते हैं और एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं |
युसूफ का वैश्यावृत्ति का भी धंधा है और एक दिन उसके एक क्लाइंट चोकसी सेठ (स्वानंद किरकिरे) को 8 साल की पूजा पसंद आ जाती है जो उसके 18 साल का होने पर उससे शादी करना चाहता है | युसूफ ये सौदा तय कर लेता है मगर जब उसे पता चलता है की ब्लैकी और पूजा एक दुसरे के करीब आ रहे हैं तो वह ब्लेकी को पूजा से दूर रहने की हिदायत देता है मगर उसका कोई असर नहीं होता अंत में युसूफ ब्लैकी को पूजा को मारने के लिए कहता है लेकिन ब्लैकी युसूफ से बाख कर भाग निकलता है|
कुछ साल बीत जाते हैं और ब्लैकी, जो अब एक टैक्सी ड्राईवर बन गया है एक रात एक खूबसूरत लड़की से मिलता है जो किसी से भाग रही है | ये लड़की है पूजा जो एक पैसों से भरा बैग लेकर ब्लेकी की टैक्सी में आ बैठती है और उससे भागने के लिए मदद मांगती है | ब्लैकी पैसों के लालच में उससे सौदा कर लेता और इसके बाद शुरू होता है एक भागम - भाग खेल जिसमे कई मज़ेदार मोड़ आते हैं और आपका मनोरंजन करते हैं |
निर्देशक मकबूल खान ने खाली - पीली को एक शुद्ध मसाला एंटरटेनर के रूप में पेश किया है और चूहे - बिल्ली के खेल को सभी उतार - चढ़ाव के साथ बड़े ही दिलचस्प अंदाज़ में पेश किया है | फिल्म में एक के बाद एक रोचक मोड़ आते हैं जिन्हें मकबूल ने इसे दिखाया है की कहानी दर्शक को कहीं भी सर खुजाने पर नहीं मजबूर करती |
राइटिंग डिपार्टमेंट में सीमा अग्रवाल, यश केसवानी, साईंकुमार, रेड्डी, व राहुल संक्रित्यान ने कहानी में खूब मसाला डाला है और हर सीन को मनोरंजक बनाया है | कहानी है साधारण मगर आपको हंसाने का काम अच्छा करती है और आदिल अफसर की सिनेमेटोग्राफी आपकी आँखों को भी आनंद देती है |
ईशान खट्टर 'ब्लैकी' के किरदार में कमाल लगे हैं जिनकी एक्टिंग आपको 80 के दशक के अमिताभ बच्चन की दिलातीं है | ईशान ने बेयौंड द क्लाउड्स के बाद फिर अपनी दमदार प्रतिभा का प्रदर्शन किया है और दिखाया है की वे किसी भी तरह के किरदार पर पकड़ बना सकते हैं | दूसरी तरफ आनन्या पांडे 'पूजा' के रोल में मनमोहक लगी हैं, उनका किरदार चुलबुला है और दर्शकों पर अपना जादू चला ही देता है | वेदान्त देसाई, देशना दुगड़ और अनूप सोनी अपने - अपने किरदारों में ठीक हैं |
इसके अलावा जयदीप अहलावत भी युसूफ के किरदार में अपनी छाप छोड़ते हैं और 'पातळ लोक' के बाद ये उनकी एक और बढ़िया परफॉरमेंस है | स्वानंद किरकिरे और सतीश कौशिक भी अपने छोटे रोल में कॉमेडी का तड़का लगाते हैं और दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहते हैं |
रामेश्वर भगत ने एडिटिंग करते वक़्त खूब कटाई - छंटाई की है जिससे फिल्म में उबाऊ पल कम ही नज़र आते हैं हालांकि कई सीन सर के ऊपर से गुज़ार जाते हैं जो की एक मसला फिल्म के लिए कोई नयी बात नहीं है |
कुल मिलाकर मकबूल खान की खाली - पीली एक मज़ेदार मसाला एंटरटेनर है| ईशान खट्टर और आनन्या पाण्डेय की एक्टिंग बढ़िया है और दोनों की फ्रेश जोड़ी को एक साथ देखना भी मनोरंजक है | तो अगर आप बॉलीवुड की मसला रोमांटिक-कॉमेडी फिल्मों के शौक़ीन हैं तो खाली - पीली आपको पसंद आएगी |