Mirzapur 2 (मिर्ज़ापुर 2) रिव्यु: पहले से ज़्यादा गोलियां, गालियाँ और खून-खराबा!

Friday, October 23, 2020 17:26 IST
By Santa Banta News Network
कास्ट: पंकज त्रिपाठी. अली फज़ल, दिव्येंदु शर्मा, श्वेता त्रिपाठी, रसिका दुग्गल, विजय वर्मा

निर्देशक: गुरमीत सिंह, मिहिर देसाई

रेटिंग: ***

प्लेटफॉर्म: अमेज़न प्राइम

2 साल पहले रिलीज़ हुई अमेज़न प्राइम की सीरीज मिर्ज़ापुर सुपरहिट रही थी| शो को उसकी थीम, कहानी और हटके किरदारों के लिए खूब पसंद किया गया था| कालीन भैय्या, मुन्ना भैय्या और गुड्डू पंडित जैसे किरदार फैन्स की जुबां पर चढ़ कर बोल रहे थे और ये कामयाबी देखते हुए सीरीज के निर्माताओं ने इसके दूसरे सीज़न को भी हरी झंडी दिखा दि थी| अब लम्बे इंतज़ार के बाद आखिर गुरमीत सिंह और मिहिर देसाई की मिर्ज़ापुर का सीज़न 2 रिलीज़ हो चुका है तो आइये, डालें नज़र इस बार मिर्ज़ापुर में क्या हो रहा है |

सीज़न 2 की कहानी जहाँ पर पिछला सीज़न ख़त्म हुआ था वहीँ से शुरू होती है | गुड्डू पंडित (अली फज़ल) गोलू (श्वेता त्रिपाठी) घायल है व कालीन भैय्या से अपने भाई और बहन की मौत का बदला लेने के लिए तड़प रहे है | मगर मिर्ज़ापुर में कुछ नहीं बदला है, कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) अब भी मिर्ज़ापुर के किंग हैं और धीरे - धीरे समझदार हो रहे अपने बेटे मुन्ना (दिव्येंदु शर्मा) को अपनी विरासत देने के बारे में सोच रहे हैं साथ ही अपनी ताकत का दायरा बढाने के लिए राजनीति में भी हाथ डाल रहे हैं |

इस बार गोलियां और गालियाँ दोनों पहले से ज्यादा चलती दिखती हैं | कहानी आगे बढती है तो दोनों खेमों की तरफ से खूब प्लानिंग-प्लौटिंग होती है और कई नए किरदार भी स्क्रीन पर एंट्री मारते हैं | पिछले सीज़न की ही तरह खूब-खराबा भी देखने को मिलता है जो की इस बार पहले से कहीं ज़्यादा है | अब सवाल ये ये है की क्या प्यादा मिर्ज़ापुर का नया बादशाह बनेगा या फिर बादशाह ही बादशाह रहेगा, जिसका जवाब जानने के लिए आपको ये अमेज़न प्राइम की ये सीरीज़ देखनी पड़ेगी |


मिर्ज़ापुर 2 की कहानी का मसला वही पुराना है, हर किसी को मिर्ज़ापुर चाहिए मगर मसाला पहले जितना नहीं है | पुराने किरदार दुसरे सीज़न में पुराने लगने लगते हैं और शुरुआत में कुछ बोर भी करते हैं हालांकि तीसरे एपिसोड से सीरीज़ रफ़्तार पकड़ती है | निर्देशक गुरमीत सिंह और मिहिर देसाई इस बार यूपी की राजनीति और गुंडई का और भी खतरनाक रूप स्क्रीन पर पेश किया है जहां बात - बात पर गोली चल जाती है | कहानी इस बार मिर्ज़ापुर से निकल कर लखनऊ और जौनपुर के भी दर्शन करवाती है जहाँ का फ्लेवर निर्देशक न बखूबी पकड़ा है जो की मज़ेदार है साथ ही सिनेमेटोग्राफी भी बढ़िया हैं |

कहानी पर निर्देशक की पकड़ शुरुआत में कुछ कमज़ोर है जो मध्य में पहुँच कर मज़बूत होती है मगर अंत में फिर कहानी बिखर जाती है | इसका श्रेय स्क्रीनप्ले को देना होगा क्यूंकि पुराने किरदारों को छोड़ कर जितने भी नए किरदार रचे गए हैं उनमे से कोई भी ऐसा नहीं है जो अपने दम-ख़म पर सीरीज में वज़न ला सके | पुराने सीज़न और किरदारों की कामयाबी पर सवार होकर कई नए किरदार आते हैं विजय वर्मा जैसे कलाकार को भी यहाँ ज़ाया किया गया है | कहानी का प्लौट भी दिशाहीन दिखाई देता है, वह भटकता है, कभी लखनऊ जाता है, कभी जौनपुर जाता है और फिर पुराना रास्ता पकड़ कर वापस मिर्ज़ापुर आता है |


परफॉरमेंस का मोर्चा फिर एक बार कालीन भैय्या उर्फ़ पंकज त्रिपाठी ही संभालते दिखते हैं | पंकज की चाल-ढाल, भौकाल, एक्सप्रेशन, और बहतरीन डायलॉग डिलीवरी हर सीन को एंटरटेनिंग बना देती है| कोई और किरदार ऐसे में बोर करने लगता है मगर ये पंकज त्रिपाठी हैं जो अपनि एक्टिंग के दम पर जब तक स्क्रीन पर रहते हैं हैं मिर्ज़ापुर की उड़ान ऊंची रखते है |

गुड्डू पंडित के किरदार में अली फज़ल पहले से ज्यादा भारी-भरकम दिखे हैं, मगर उनके डोले-शोले के अलावा उनके किरदार में कुछ ख़ास नया नहीं है | मुन्ना भैय्या के रूप में दिव्येंदु शर्मा पहले से ज्यादा संकी और मनमौजी लगते हैं जिनकी बेलगाम बन्दूक फिर एक बार मिर्ज़ापुर में खलबली मचाती है | हालांकि कई जगह वे ओवर-एक्टिंग भी करते दिखते हैं |


कुलभूषण खरबंदा बाउजी के किरदार में पहले की तरह ही दमदार हैं और अपनी मौजूदगी से गिरती-पड़ती कहानी को उठाते हैं | इस सीज़न में महिला किरदारों को भी काफी प्रभावशाली बनाया गया है जो की पहले से कहीं मज़बूत हैं | कालीन भैय्या की पत्नी बीना त्रिपाठी के किरदार में रसिका दुग्गल गिरगिट की तरह रंग बदलती दिखती हैं और अपनी छाप छोड़ती है | श्वेता त्रिपाठी, हर्षिता गौर और शीबा चड्ढा के किरदार भी इस सीज़न में खुल कर सामने आए हैं |

इनके अलावा राजेश तैलंग, विजय वर्मा, प्रियांशु पेनयूली, इशा तलवार, दिव्येंदु भट्टाचार्य, अंजुम शर्मा जैसे कलाकार भी नज़र आये हैं मगर किसी की भी परफॉरमेंस याद रखने लायक नहीं है और न रहती है|

कुल मिलाकर मिर्ज़ापुर के दूसरे सीज़न में गोलियों, गालियों और सेक्स का तड़का पिछले सीज़न से ज्यादा है मगर कहानी शुरुआत और अंत में कुछ कमज़ोर है जो मज़ा किरकिरा कर देती है | पंकज त्रिपाठी, दिव्येंदु शर्मा और अली फज़ल ज़्यादातर समय अपने मज़बूत कन्धों पर मिर्ज़ापुर 2 को उठा कर रखते हैं और उनलिए इस सीज़न को 3 स्टार |
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