निर्देशक: राघव लॉरेंस
रेटिंग: **
प्लेटफार्म: डिज्नी+ हॉटस्टार
काफी इंतजार करने के बाद अक्षय कुमार की फिल्म 'लक्ष्मी' को रिलीज़ किया गया है। इस फिल्म पर बीच में काफी विवाद भी रहा था लेकिन अब इसे लोगों के सामने प्रस्तुत कर दिया गया है। यह फिल्म तमिल मूवी 'कंचना' की हिंदी रीमेक है, कोरोना वायरस के दौरान सिनेमाघरों की तालाबंदी और भविष्य की अनिश्चितताओं ने साल 2020 में कई बड़ी स्टार कास्ट वाली फ़िल्मों को भी सीधे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर आने के लिए मजबूर कर दिया। इसी क्रम में अक्षय कुमार और किआरा आडवाणी की 'लक्ष्मी' सोमवार (9 नवम्बर) को दिवाली वीक में डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो गयी है।
बता दें कि ज्यादातर हिंदी फिल्में हॉरर के नाम पर कॉमेडी बन जाती है तो कुछ कॉमेडी के नाम पर हॉरर। अब इस फिल्म के द्वारा हॉरर-कॉमेडी नामक गली भी खोज ली गई है ताकि दर्शक हंसता भी रहे और डरता भी रहे और उसे समझ ही नहीं आए कि वह डरने वाली जगह कहीं हंस तो नहीं रहा है।
'लक्ष्मी' फिल्म की कहानी आसिफ (अक्षय कुमार) के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है| आसिफ और रश्मि (किआरा) की शादी हुई है लेकिन यह इंटर रिलीजन है। इन दोनों ने भाग के शादी की थी। आसिफ चाहता है कि उसकी पत्नी रश्मि एक बार फिर अपने परिवार से मिले और उन्हें अच्छे से समझाए, रश्मि के मां-बाप की शादी की सिल्वर जुबली ऐनिवर्सी है और उसकी मां उसे घर बुलाती है, बस यहीं से हो जाती इस फिल्म की कहानी शुरू।
आसिफ फैसला लेता है कि इस बार तो वो रश्मि के परिवार को मनाकर ही रहेगा। लेकिन घर आते वक्त आसिफ उस जमीन पर पहुंच जाता है जहां उसे नहीं जाना चाहिए था और वहीं से उसकी पूरी जिंदगी बदल जाती है। आसिफ हर बात पर बोलता था, 'मां कसम चूड़ियां पहन लूंगा' और फिर उसे चूड़ियां पहननी पड़ जाती हैं क्योंकि उसके भीतर एक आत्मा आ गई है। लेकिन आसिफ ने चूड़ियां क्यों पहनी हैं, उसका एक उद्देश्य है जो बेहद इमोशनल है और वह आपको फिल्म देखकर ही पता चलेगा।
फिल्म का शुरुआती एक घंटा बहुत ही निराशाजनक नज़र आया है। इस हिस्से में कॉमेडी को महत्व दिया गया है, जो कि एकदम नीरस नज़र आई है, बीच-बीच में हॉरर सीन आते हैं, लेकिन ये ऐसे नहीं है कि आपकी चीख निकल जाए, इन दृश्यों को कहानी का साथ नहीं मिलता। हर जगह जल्दबाजी नज़र आती है, न जाने क्यों फिल्म को भगाने की कोशिश की जाती है और हड़बड़ी में अधपके सीन दर्शकों के सामने प्रदर्शित किए गए हैं, लेखन की कमी साफ उभर कर नज़र आती है। फिल्म की इस असफलता का पूरा श्रेय राघव लॉरेन्स की कमज़ोर पटकथा और निर्देशन को जाता है।
फिल्म की कहानी है एक किन्नर की है, जो मरने के बाद अपना अधूरा काम पूरा करने लौटता है और उसकी आत्मा को साथ मिलता है अक्षय कुमार के किरदार आसिफ के शरीर का। आसिफ के शरीर में प्रवेश कर लक्ष्मी (शरद केलकर) अपने और अपने परिवार की मौत का बदला लेने लौटती है और फिल्म की पूरी कहानी बस इसी बिंदु पर आधारित है।
अगर बात की जाए अभिनय की तो अक्षय कुमार ने भले ही इसे अपने करियर का सबसे बड़ा चैलेंज माना हो लेकिन पर्दे पर वो बेअसर नज़र आए हैं। वहीं किआरा आडवाणी के हिस्से उनका नाम बुलाने और दो चार डायलॉग्स के अलावा और कुछ आया ही नहीं है। तो उनकी अभिनय क्षमता का पैमाना तय कर पाना यहां थोड़ा मुश्किल होगा। फिल्म में शरद केलकर का किरदार बहुत छोटा है मगर छाप छोड़कर जाता है।
लक्ष्मी को एक हॉरर कॉमेडी बताया गया है लेकिन फिल्म का म्यूज़िक और बैकग्राउंड म्यूज़िक इससे बिल्कुल अलग है। ना ही हल्के फुल्के सीन के दौरान म्यूज़िक मदद करता है और ना ही हॉरर सीन में बैकग्राउंड म्यूज़िक ही दर्शकों के मन में डर पैदा कर पाता है। दोनों ही पक्षों में फिल्म औंधे मुंह गिरती दिखाई देती है। वहीं ज़बरदस्ती डाले गए गाने फिल्म को और ढीला और लचर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
फिल्म का सबसे मज़बूत पक्ष असली लक्ष्मी की एंट्री है। शरद केलकर की एंट्री के साथ ही आप तुरंत पलक झपकते ही लक्ष्मी की कहानी जानना चाहते हैं और इसका पूरा श्रेय शरद केलकर को दिया जाना चाहिए। वो वाकई इस भूमिका के लिए तालियों और प्रशंसा के हकदार है।
कुल मिलाकर ये फिल्म अगर आप देखना चाहते हैं तो इसे शरद केलकर के लिए देख सकते हैं, लेकिन उसके लिए आपको काफी इंतज़ार करना पड़ेगा और तब तक शायद आपका संयम जवाब दे जाएगा। अगर आपको हॉरर फिल्मों से डर लगता है तो इस फिल्म को देख लें क्योंकि यह हॉरर फिल्म नहीं है बल्कि एक अच्छा संदेश देती है।