कलाकार: दिव्येंदु, अंशुल चौहान, सैयद ज़ीशान क़ादरी, राजेश शर्मा, तृष्णा मुखर्जी, मुकुल चड्ढा
रेटिंग: ***1/2
प्लेटफार्म: ज़ी5/ऑल्ट बालाजी
मिर्ज़ापुर से लोकप्रियता हांसिल कर चुके दिव्येंदु, इस बार ज़ी5 और ऑल्ट बालाजी की वेब सीरिज़ 'बिच्छू का खेल' में मुख्य भूमिका में नज़र आए हैं| इस साधारण मगर रोमांचक क्राइम ड्रामा सीरीज़ को देखने के बाद ऐसा लगेगा कि जैसे आपने कोई जासूसी उपन्यास पढ़ लिया हो| इस वेब सीरिज़ के टाइटल से लेकर कहानी तक इसमें वो सब कुछ है जो आपका भरपूर मनोरंजन करने के लिए काफी है, अगर आप इसको देखने की सोच रहे हैं तो पहले इसके बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर लें|
बिच्छू का खेल की कहानी मोक्ष की नगरी मानी जाने वाली वाराणसी के इर्द गिर्द घुमती नज़र आती है। इसकी शुरुआत अखिल श्रीवास्तव (दिव्येंदु) और एक कॉलेज फंक्शन के साथ होती है, जिसमें शहर के मशहूर वकील अनिल चौबे (सत्यजीत शर्मा) मुख्य अतिथि के तौर पर वहां पहुंचते हैं। फंक्शन में अखिल सभी के सामने अनिल चौबे की गोली मारकर हत्या कर देता है और इसके बाद पुलिस के सामने समर्पण कर देता है|
थाने पहुंचकर वह पुलिस अधिकारी निकुंज तिवारी (सैयद ज़ीशान क़ादरी) के सामने ये क़त्ल करने की का कारण और इसके पीछे की कहानी बताता है | अखिल और अनिल चौबे की बेटी रश्मि चौबे (अंशुल चौहान) आपस में बहुत ज्यादा प्यार करते हैं| अखिल और उसका पिता बाबू (मुकुल चड्ढा) अनिल चौबे के बड़े भाई मुकेश चौबे (राजेश शर्मा) की मिठाई की दुकान में काम करते हैं। बाबू, मुकेश की पत्नी प्रतिमा चौबे (तृष्णा मुखर्जी) से प्यार करते हैं।
एक कार्यक्रम के दौरान गैंगस्टर मुन्ना सिंह (गौतम बब्बर) की हत्या हो जाती है जिसके आरोप में बाबू को जेल हो जाती है। इसके बाद अखिल अपने पिता को जेल पहुंचाने वालों से बदला लेने के लिए निकल जाता है| फिर शुरू होता है कई चौंकाने वाली साजिशों का दिलचस्प सिलसिला और इसके बाद अखिल कैसे असली हत्यारों का पता लगता है व अपने पिता की सजा का बदला लेता है ये है कहानी बिच्छू का खेल की|
बिच्छू का खेल की कहानी में हीरो-हीरोइन के रोमांस, हर सीन में दिखे साजिशें और खुलासे, गाली-गलौज वाली डायलॉगबाज़ी, वो सब कुछ है जो एंटरटेनमेंट की रफ़्तार बना कर रखता है। पहले एपिसोड से ही सीरिज़ में सस्पंस शुरू हो जाता है जो अंत तक बना रहता है, हालांकि सातवें एपिसोड के बाद कहानी कुछ ज्यादा ही तेज़ी से भागती है जिसके कारण दर्शक कुछ कन्फ्यूज़ हो सकते हैं|
सीरिज़ वाराणसी में सेट है और इसलिए आपको ये वहां की अलंकृत हवेलियों और खूबसूरत विरासत से भी रूबरू करवाती है जो की सिनेमेटोग्राफी के कमाल को दर्शाता है| आशीष शुक्ला ने वारणसी के रहन-सहन को अणि सीरीज में खूबसूरती से दर्शाया है| किरदारों की चाल-ढाल, रहन-सहन, व बात करने का तरीका सब बेहतरीन है, फिल्म का संगीत भी कहानी के हिसाब से ठीक है|
अभिनय की बात करें तो बिच्छू का खेल के अखिल (दिव्येंदु) ने अपने शानदार अभिनय से खूब लोगों का ध्यान आकर्षित किया है| उनके किरदार इतना मजेदार व रोचक है की आपकी आँखें उन पर से हटटी ही नहीं| उनका लुक, चाल०धाल, डायलॉग डिलीवरी सब कुछ इस सीरीज की जान है| रश्मि के किरदार में अंशुल चौहान ने भी काबिल'ए'तारीफ प्रदर्शन किया है| दिव्येंदु और वे एक साथ क्यूट लगते हैं और दोनों की कैमिस्ट्री भी दर्शकों को काफी पसंद आएगी| मुकुल चड्डा, राजेश शर्मा, और सत्यजीत शर्मा जैसे अन्य प्रमुख कलाकारों ने भी अपने अभिनय से सीरीज में और जान डाल दी है|
कुल मिलाकर Zee5 की बिच्छू का खेल मनोरंजन का तगड़ा डोज़ है जिसकी शानदार कहानी आपको अंत तक जोड़े रखती है| कॉमेडी और सस्पेंस के साथ सीरीज़ के डायलॉग्स इसे और भी रोचक बनाते हैं और आपको एक सेकंड के लिए भी बोर नहीं करती| इसके एपिसोड का रनटाइम भी कम हैं तो देखने में ज़्यादा समय भी नहीं लगता| आपको जरुर देखना चाहिए।