कलाकार: शारिब हाशमी, शरद केल्कर, रसिका दुग्गल, फ्लोरा सैनी, हर्ष छाया
प्लेटफॉर्म: ज़ी5
रेटिंग: ***
बिपिन नाददर्णी द्वारा निर्देशित शरद केल्कर और शारिब हाशमी की फिल्म दरबान ज़ी5 पर रिलीज़ कर दी गई है| दरबान की कहानी साहित्य जगत के आदिपुरुष रबींद्रनाथ टैगोर की 100 साल से ज्यादा पुरानी कहानी खोकाबाबूर (छोटे बाबू की वापसी) पर आधारित है| 100 साल पुरानी इस कहानी का डिजिटल प्रदर्शन आपका दिल छू लेगा, अगर आप इस फिल्म को देखने की सोच रहे हैं तो उससे पहले इसके बारे मैं अच्छे से जानकारी प्राप्त कर लें!
इसको कहानी एक मालिक और नौकर के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है, इसकी शुरूआत 1970 के धनबाद जिले से होती है| जहां नरेन त्रिपाठी (हर्ष छाया) की एक कोयले की खदान है और उनके यहां एक रायचरण (शारिब हाशमी) नाम का नौकर काम करता है| रायचरण का औहदा घर के सभी सदस्यों से अलग है, रायचरण नरेन के बेटे अनुकूल (शरद केल्कर) के लिए दोस्त, गुरु माँ-बाप और बड़ा भाई सभी की भूमिका निभाता है|
लेकिन एक समय ऐसा आता है कि नरेन कोयला खदान के बादशाह से फकीर बन जाता है और धीरे-धीरे अपने घर का सारा सामान बेचने पर मजबूर हो जाता है और अंत में उसे घर छोड़कर भी जाना पड़ता है और रायचरण भी अपने गांव की ओर लौट जाता है| काफी सालों बाद अनुकूल आईऐएस ऑफिसर बन जाता है और अपने पापा की हवेली को वापस ले लेता है|
इसके बाद अनुकूल, रायचरण को भी गांव से वापस ले आता है रायचरण का अनुकूल उनके बेटे सिद्धू से बहुत ज्यादा लगाव हो जाता है| कहानी में तगड़ा मोड़ तब आता है जब एक हादसे में सिद्धू गायब हो जाता है और इसका सारा इलज़ाम रायचरण पर लग जाता है इस दिल तोड़ देने वाले आरोप से वह खुद को कैसे बचाता है इस बात को जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी|
नेशनल अवॉर्ड विजेता मराठी निर्देशक बिपिन नाददर्णी ने फ़िल्म 'दरबान' से हिंदी सिनेमा में क़दम रखा है। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित फ़िल्म को बेहद सहज भाव के साथ लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। मालिक और नौकर के बीच के इमोशन्स को काफ़ी अच्छे से पेश किया गया है। 19वीं सदी की कहानी को 20वीं सदी के हिसाब से स्क्रीन पर खूबसूरती से रखा है। फिल्म की कहानी वैसे कुछ-कुछ जगह भागती नज़र आती है लेकिन कम समय में भी इससे बहुत कुछ देखने को मिलता है जो की काबिल'ए'तारीफ है| एक दशक कब बीत जाता है इसका पता दर्शकों को फिल्म के दृश्यों से नही इसके किरदारों से चलता है|
अभिनय की बात की जाए तो शारिब हाश्मी एक युवा से लेकर बुजुर्ग राय्चरण के रूप में बड़े ही सहज लगते हैं और अपने किरदार में पूरी तरह डूबे हुए नज़र आए हैं| वहीं अनुकूल के किरदार में बात करें तो शरद केल्कर ने काफी सटीकता से इसको प्रदर्शित किया है, उनकी और शारिब की केमिस्ट्री दर्शकों को काफी पसंद आएगी| अपने ग्लैमरस लुक के लिए मशहूर फ्लोरा सैनी ने भी अनुकूल की पत्नी चारुल के किरदार में फ़िल्म में काफ़ी अच्छा अभिनय किया है|
रायचरण की पत्नी भूरी के किरदार में रसिका दुग्गल ने भी दर्शकों का काफी ध्यान आकर्षित किया है, उनको स्क्रीन पर ज्यादा समय नही मिला, परन्तु जितना भी मिला उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है|| फिल्म के बाकि कलाकारों ने भी काफ़ी अच्छा काम किया और ख़ासतौर पर बच्चों ने बेहतरीन काम किया है।
कुल मिलाकर दरबान थोड़ी बहुत कमियों के साथ दर्शकों को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब हो जाती है।। बैकग्राउंड म्यूज़िक की बात करें तो फ़िल्म के लगभग सभी गाने कहानी के साथ जचते हैं|। मुख्य रूप से 'दिल भरया...' और 'बहती सी ज़िंदगी, ये दोनों ट्रैक्स आपको इमोशनल कर सकते हैं|। अंत में यही कहा जा सकता है कि अगर आपको ड्रामा पसंद है तो नौकर-मालिक की ये कहानी आपको पसंद आएग, एक बार देख सकते हैं|