कलाकार: संजय दत्त, नर्गिस फाखरी, राहुल देव, गेवी चहल, राहुल मित्रा
रेटिंग: **1/2
प्लैटफॉर्म: नेटफ्लिक्स
फिल्म तोरबाज़ अफगानिस्तान में हो रहे आतंकी हमलों और इस देश के क्रिकेट प्रेम का प्रदर्शन करती है। क्रिकेट जगत में अफगानिस्तान की टीम ने जब से अपना ज़बरदस्त हूनर दिखाना शुरू किया है तभी से हर कोई आश्चर्य में है। वर्तमान समय में इस देश के खिलाड़ी आईसीसी के सदस्य भी हैं, एक ऐसा देश जो पिछले अनेक सालों से आतंकवाद से लड़ रहा है उसके लिए क्रिकेट टीम तैयार करना आसन नही रहा होगा| सेना का एक पूर्व डॉक्टर कैसे बच्चों को क्रिकेट सिखाते हुए उनको खुशी प्रदान करता है यही इस फिल्म में दिखाया गया है, अगर आप गिरीश मलिक द्वारा निर्देशित इस कहानी को देखना चाहते हैं तो उससे पहले इसके बारे में अच्छे से जान लें|
इस फिल्म की कहानी पूर्व आर्मी डॉक्टर नासीर खान ( संजय दत्त) जो भारत से अफगानिस्तान आता है के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है| इस देश में आतंकवाद का इतना खौफ है कि हर व्यक्ति को मरने वालों की संख्या पता होती है। आतंकवादियों ने इस बार छोटे बच्चों को निशाने पर लिया है, जिनको आतंकी भीड़ वाले इलाकों में सुसाइड बम बनाकर किसी बड़ी दुर्घटना को अंजाम देने की फिराक में हैं| नासीर ने ऐसे ही इस देश में अपने परिवार को हमेशा के लिए खो दिया था, अब उनकी पत्नी आएशा (नरगिस फ़ाखरी) और वह मिलकर एक एनजीओ कैंप चलाते हैं|
इस कैंप में रह रहे बच्चों को लेकर नासीर बहुत चिंतित रहता है और उन्हें सुसाइड बम या आतंकवाद के रास्ते पर जाने से बचाने के लिए एक उम्मीद से उनको क्रिकेट सिखाना शुरू कर देता है। नासीर इन्ही बच्चों में से कुछ को चुनकर एक क्रिकेट टीम बनाता है जिसको नाम दिया जाता है तोरबाज़, परन्तु क्या यह बच्चे आगे चलकर अपने हाथों से बंदूक को छोड़कर बल्ला पकड़ना पसंद करेंगे या नहीं और नसीर अपने इरादों में कामयाब हो पाएगा या नहीं, ये जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी|
तोरबाज़ की कहानी दिल को छूने वाली है, कई वर्षों से आंकतवाद की पीड़ा सह रहे लोगों और रिफ्यूजी कैंप्स में रह रहे बच्चों की मनोदशा व् आतंकवादी बच्चों का ब्रेनवॉश करके उनको सुसाइड बम बनाते हैं ये फिल्म में काफी अच्छे से दिखाया गया है। गिरिश मलिक द्वारा निर्देशित इस फिल्म तोरबाज़ के इरादे तो मज़बूत हैं मगर इसका लेखन कार्य बहुत ही कमज़ोर है क्यूंकि दो घंटों की यह फिल्म दर्शकों को अंत तक अपने साथ जोड़े रखने में असफल रहती है। शुरुआती एक घंटे में ये फिल्म बहुत ही धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ती है जोक की थकाने वाला लगता है लेकिन फिर सेकेंड हॉफ में एकदम से रफ्तार पकड़ लेती है और बहुत कुछ बहुत जल्दी-जल्दी होने लगता है और खिचड़ी पक जाती है|
अगर अभिनय की बात करें तो नासीर खान के किरदार में संजय दत्त ने ज़ोरदार एक्टिंग की है और दर्शकों का ध्यान खींचते नज़र आए हैं| बच्चों के साथ उनके दृश्य काफी खूबसूरत हैं जो आपको भावुक कर सकते हैं| नरगिस फ़ाखरी का किरदार छोटा सा है जिसमें वे ज़्यादातर समय खोई-खोई नज़र आती हैं| राहुल डेव जैसे बहतरीन कलाकार यहाँ आतंकवादी के किरदार में फीके से लगते हैं और सीधे शब्दों में कहा जाए तो उनकी प्रतिभा को ज़ाया किया गया है| फिल्म का सबसे जानदार हिस्सा इसके बच्चे, एशान जावेद मलिक, रेहान शेख और रूद्र सोनी हैं जो अपने अभिनय से आपका भरपूर मनोरंजन करेंगे|
तोर्बाज़ की सिनेमेटोग्राफी खूबसूरत है और हीरू केशवानी ने अपने कैमरे में अफगानिस्तान को बखूबी कैद किया है जो आँखों को खूब भाता है| हालांकि एडिटिंग में दिलीप देव कुछ खास कमाल नही कर पाए क्योंकि फिल्म के कई द्रश्य आपको बिना किसी मतलब के लगेंगे| बिक्रम घोष का म्यूज़िक भी बेअसर रहा है, बम ब्लास्ट और आतंकी हमलों के बीच किसी गाने का आना बेवजह लगता है।
कुल मिलाकर गिरीश मालिक की तोरबाज़ एक अच्छे विषय पर बनी फिल्म है जिसमें इसके विषय, संजय दत्त और बाल कलाकारों की परफॉरमेंसेस के अलावा फिल्म में कुछ भी नहीं है| तो अगर आप संजय दत्त या फिर अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के फैन हैं तो यह फिल्म एक बार बार चाहें तो देख सकतें हैं|