पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करती हैं चार कहानियां!

Saturday, April 17, 2021 14:10 IST
By Santa Banta News Network
कलाकार: फातिमा सना शेख, जयदीप अहलावत, कोंकणा सेन शर्मा, अदिति राव हैदरी, नुसरत भरूचा, अभिषेक बनर्जी, इनायत वर्मा, शेफाली शाह, मानव कौल, तोता रॉय चौधरी

निर्देशक: शशांक खेतान, राज मेहता, नीरज घेवान, कायोज़ ईरानी

रेटिंग: ****

प्लेटफॉर्म: नेटफ्लिक्स

हाल ही में 'अजीब दास्तान्स' एक एंथोलॉजी कहानी को नेटफ्लिक्स पर लोगों के सामने प्रदर्शित किया गया है| चार अलग-अलग कहानियों को शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है, इसमें आपको एक्शन से लेकर इमोशन, ईष्या, और वेर भावना का खेल सब कुछ देखने को मिलेगा| फिल्म की चारों कहानियों में महिलाओं के अनेक किरदार दिखाए गए हैं| अगर आप राज मेहता, नीरज घेवान, कायोज़ ईरानी और शशांक खेतान की इस बेहतरीन कहानी को देखने की सोच रहे हैं तो उससे पहले इसके बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर लें|

फिल्म की सबसे पहली कहानी 'मजनू' का निर्देशन शशांत खेतान ने सम्भाला है। जो लिपाक्षी (फातिमा सना शेख) और बबलू (जयदीप अहलावत) एक नविवाहित जोड़े के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है| बबलू सुहागरात को कमरे में आते ही अपनी पत्नी को बोलता है कि हम किसी और से प्यार करते थे और आपसे कभी प्यार नहीं पाएंगे। इसके बाद लिपाक्षी थोड़ी देर के लिए डरते हुए गुस्से में बोलती है कि इस देश के सभी मर्द ढ़ोंगी क्यों हैं? वह अपने मन से डर और जबरदस्ती निकाल देती है| अब उसे एक ऐसे आदमी की तलाश है जो उसका साथ दे|

अंत में उसको बबलू के ड्राइवर के बेटा राज (अरमान रहलान) का साथ मिलता है। बबलू के पीछे से ही इन दोनों का प्यार परवान चड़ने लगता है, इनका यह प्रेम प्रसंग आगे क्या मोड़ लेता है, यह देखना मजेदार होने वाला है|

शशांक खेतान द्वारा निर्देशित 30 मिनट के आस-पास की यह कहानी टूटे हुए रिश्तों और उलझी हुई भावनाओं का प्रदर्शन करती है। इसका हर किरदार अपने अभिनय में फिट नज़र आया है, वहीं जयदीप अहलावत की बात करें तो उन्होंने अपने अभिनय में जान झोंक दी है। दूसरी और फातिमा भी अपने किरदार में सटीक दिखाई दी हैं| सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो पुष्कर सिंह का काम काबिलेतारीफ रहा है, उन्होंने फिल्म की कहानी को उपर उठाने का काम किया है|

फिल्म की दूसरी कहानी 'खिलौना' का निर्देशन राज मेहता ने किया है, जो आपका सस्पेंस के साथ मनोरंजन करने वाली है। इसकी कहानी समाज के दो वर्गों कोठीवाले और कटियावाले को प्रस्तुत करती है। इसमें मीनल (नुसरत भरूचा) अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सुशील (अभिषेक बनर्जी) से बोलती नज़र आती है कि ये कोठी वाले किसी के सगे नहीं होते हैं।

इसमें सुशील जो सोसाइटी के बाहर एक छोटी सी दुकान लगाकर इस्त्री का काम करता है| वहीं मीनल एक कोठी में काम करती है, काम करने के बाद वह सोसाइटी के बिजली के तारों पर कटिया डालकर अपने घर में बिजली का इंतजाम करती है। मीनल और सुशील मिलकर कोठी वालों को कोई न कोई सजा देना कहते हैं, इसके हर सीन में आया सस्पेंस आपको अंत तक इसके साथ बांध कर रखता है|

राज मेहता ने अपनी इस कहानी में रफ्तार को प्राथमिकता दी है, परन्तु इसके बावजूद भी यह आपकी एक पल के लिए भी बोरिंग नही लगेगी| इसकी कहानी को सुमित सक्सेना ने ऐसे लिखा है कि नुसरत भरूचा, अभिषेक बनर्जी और इनायत वर्मा सभी अपने किरदारों में सहज और आकर्षक दिखाई दिए हैं। सिनेमेटोग्राफी में जिश्नु भट्टाचार्यजी ने अपना काम बखूबी निभाया है|

तीसरी कहानी 'गीली पुच्ची' का निर्देशन नीरज घेवान ने किया है, इन्होने एक साथ अनेक विषयों को लोगों के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसकी कहानी में भारती मंडल (कोंकणा सेन शर्मा) एक फैक्टरी में मशीन वर्कर का कार्य करती हैं, इस जगह पर वह काफी समय से डाटा ऑपरेटर का पद पाने के लिए अनेक प्रयास करती हैं। उसे पिछड़ी जाति की होने के कारण तारीफ तो मिलती है, लेकिन पद नही मिल पाता।

एक बार फैक्टरी का मालिक उसकी जगह एक नई लड़की प्रिया शर्मा (अदिति राव हैदरी) को काम पर रख लेता है। शुरुवात में दोनों भीड़ जाती हैं, परन्तु कुछ समय बाद इनकी दोस्ती हो जाती है। इन दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल जाती है, परन्तु प्रिया शादी शुदा है और वह इस बात को मानने के लिए तैयार ही नही है कि वह समलैंगिक है। समाज के अपने नियमों और सोच के कारण वह इस चीज को बीमारी समझती है| दूसरी और भारती हर दिन मुसीबतों से लड़ते हुए आगे बढ़ती है, इन दोनों की जिंदगी आगे क्या मोड़ लेती है, ये तो आपको पूरी कहानी पढ़कर ही पता चलेगा|

नीरज घेवान की यह कहानी आपको समाज में फैले जातिवाद और समलैंगिकता जैसे मुद्दों के बारे में विस्तार से बताएगी| इसकी कहानी को बड़े ही साफ़ और सहज तरीके से दर्शकों के सामने प्रदर्शित किया गया है| इसका हर किरदार अपने अभिनय के द्वारा ध्यान आकर्षित करता नज़र आया है| सिद्धार्थ दिवान की सिनेमेटोग्राफी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है|

फिल्म की चौथी कहानी 'अनकही' का निर्देशन कायोज़ ईरानी ने किया है। इसकी कहानी सबसे सरल और सहज है परन्तु इसके द्वारा जो संदेश दिया गया है वो काफी गहरा है| इसमें नताशा (शेफाली शाह) और रोहन (तोता रॉय चौधरी) की बेटी समायरा की सुनने की शक्ति धीरे-धीरे कम होती चली जाती है। इसके बाद नताशा उसे साइन लैंग्वेज सिखाना शुरू कर देती है, दूसरी और अपने काम में व्यस्त रोहन का बेटी की तरफ बिलकुल भी ध्यान नही है|

कुछ समय बीत जाने के बाद नताशा की मुलाकात फोटोग्राफर (मानव कौल) से होती है, वह बोल और सुन नहीं सकता। इसके बाद वह दोनों साइन लैंग्वेज में बात करना शुरू कर देते हैं। इसके बाद दोनों की नजदीकियां बढ़ने लग जाती हैं, क्या नताशा उसके लिए अपने परिवार से दूरियां बना लेगी, इस बात को जानने के लिए आपको नेटफ्लिक्स की यह फिल्म देखनी होगी|

अभिनय की बात करें तो इस कहानी में मानव कौल और शेफाली शाह दोनों अपने किरदारों के साथ न्याय करते नज़र आए हैं| हर सीन में इनके हाव-भाव आपको काफी पसंद आएंगें, सही मायने में कहा जाए तो कायोज़ ईयानी ने जिस तरीके से रिश्तों को लोगों के सामने प्रदर्शित किया वह काबिलेतारीफ है|

अगर आप ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर एक अच्छे कंटेंट की तलाश कर रहे हैं और आपको सब कुछ वहां बोरिंग मिल रहा है तो रिश्तों के बारे में सोचने पर मजबूर करने वाली 'अजीब दास्तान्स' एक फुल-ओन एंटरटेनिंग एंथोलॉजी कहानी को जरुर देख सकते हैं। पहली कहानी से लेकर आखिरी कहानी तक यह आपका भरपूर मनोरंजन करेगी|
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