'रे' रिव्यू: सत्यजीत रे की कहानियों में मनोज और हर्षवर्धन करेंगें जमकर एंटरटेन!

Saturday, June 26, 2021 08:51 IST
By Santa Banta News Network
कलाकार: अली फज़ल, श्वेता बासु प्रसाद, मनोज बाजपेयी, गजराज राव, के के मेनन, राजेश शर्मा, हर्षवर्धन कपूर

निर्देशक: श्रीजीत मुखर्जी, अभिषेक चौबे, वसन बाला

प्लेटफॉर्म: नेटफ्लिक्स

रेटिंग: ***

हाल ही में एक दिग्गज लेखक और फ़िल्मकार सत्यजीत रे द्वारा लिखी चार कहानियों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया गया है| ऑस्कर आवर्ड से सम्मानित इस महान हस्ती को श्रद्धांजलि अर्पित करने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है| बॉलीवुड के मशहूर निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी, अभिषेक चौबे, वसन बाला ने उनकी कहानियों को लोगों के सामने प्रदर्शित करने का कार्यभार सम्भाला है| अगर आप भी नेटफ्लिक्स पर प्रस्तुत इस वेब सीरिज़ को देखने की सोच रहे हैं तो उससे पहले इसके बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर लें|

'रे' के बारे में बात करें तो इसको एक एंथोलॉजी वेब सीरिज़ कहा जा सकता है| इसमें चार ऐसे इंसानों के बारे में बताया गया है जिनके असली चेहरे के पीछे कोई और छिपा है| पहली कहानी 'फॉर्गेट मी नॉट' को श्रीजीत मुखर्जी ने निर्देशित किया है|

इसकी कहानी एक बिजनेसमैन इप्सित नायर (अली फज़ल) के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती है| उनका दिमाक कंप्यूटर की तरह चलता है वह कोई भी बात आसानी से नही भूलते हैं| ऑफिस के काम से लेकर घर की निजी जिंदगी से संबंधित कोई भी बात हो वह याद रखते हैं। एक दिन उनकी भेंट रिया सरन (अनिंदिता बोस) से हो जाती है, जो उसको याद दिलाने की कोशिश करती है कि वह दोनों 2017 में औरंगाबाद में मिलने के बाद काफी दिनों तक रिलेशन में रहे थे। परन्तु इप्सित को ऐसी कोई भी बात याद नही आती है, उस समय तो वह रिया की इन बातों पर ध्यान नही देता, लेकिन कुछ समय बाद ये सब उसके दिमाक में घुमने लगता है| अब इप्सित को लगने लगा है कि शायद उसकी याददाश्त पहले जैसी नही रही और वह बातों को भूलने लगा है| आगे उसकी लाइफ में क्या होता है इस बात को जानने के लिए आपको यह सीरिज़ देखनी होगी|

इसमें श्रीजीत मुखर्जी ने अंत तक एक संस्पेंस बनाए रखने की कोशिश की है और वह अपने कार्य में सफल भी हुए हैं| सिनेमेटोग्राफी में स्वपनिल सोनवाने का काम सराहनीय रहा है बात करें एडिटिंग की तो नितिन बेद शानदार नज़र आए हैं, अपने कार्य के लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं|

अभिनय में अली फज़ल ने इप्सित रमा नायर के किरदार को बड़े ही सटीक और सहज तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। एक शानदार बिजनेसमैन और कुछ ही पलों में एक बेचैन इन्सान हर सीन में आकर्षक दिखाई दिए हैं, वहीं अनिंदिता बोस के हिस्से में ज्यादा कुछ करने को था नही परन्तु उनको जो भी मिला वह उसमें सहज नज़र आई हैं|

दूसरी कहानी है 'बहरूपिया' जिसका निर्देशन भी श्रीजीत मुखर्जी ने ही किया है| इसकी कहानी इंद्राशीष साहा (के के मेनन) के इर्द-गिर्द घुमती है वह एक मेकअप आर्टिस्ट है| उनकी जिंदगी कैसे आगे बढ़ रही है, कुछ पता ही नही चल पा रहा है, न तो उसके पास पैसा है और न ही इस समाज में रहने लायक वह इज्जत रखता है। जब उसकी दादी का निधन हो जाता है तो उसको जायदाद और अन्य कुछ महत्वपूर्ण सामान मिल जाता है| इसके बाद प्रोस्थेटिक्स मेकअप के द्वारा वह उन लोगों से बदला लेने लग जाता है जो उसके साथ गलत कर रहे थे, परन्तु पासा उल्टा पड़ जाता है और वह अपने ही जाल में फसता दिखाई देता है| इसके बाद उसके साथ क्या हुआ ये तो आपको सीरिज़ देखकर ही पता चलेगा|

श्रीजीत मुखर्जी का निर्देशन कार्य इसमें आपको थोड़ा निराश कर सकता है| अभिनय में के के मेनन शुरुवात से लेकर अंत तक हर सीन में एक जैसे रिएक्शन चेहरे पर रखते हैं जो उनसे लोगों को उम्मीद नही थी| पूरी कहानी में सबसे मजबूत पक्ष एडिटिंग का रहा है, इसमें प्रणय दासगुप्ता ने अपना काम काबिलेतारीफ किया है|

तीसरी कहानी 'हंगामा क्यों है बरपा' का निर्देशन अभिषेक चौबे ने किया है, जो गजल गायक मुसाफिर अली (मनोज बाजपेयी) से संबंधित है| वह एक बार भोपाल से नई दिल्ली की यात्रा ट्रेन से कर रहे थे, इसी यात्रा में उनकी मुलाकात असलम बेग (गजराज राव) से हो जाती हैं जो पहले कुश्ती के पहलवान रह चुके हैं। आपस में बात करते-करते मुसाफिर को एकदम से याद आता है कि वह दोनों करीब 10 साल पहले ट्रेन में ही मिले थे। इस कहानी में शुरू से अंत तक सस्पेंस आपको इसके साथ बांध कर रखता है|

बात करें अभिषेक चौबे के निर्देशन की तो उन्होंने अपने काम से हर किसी का ध्यान आकर्षित किया है| अभिनय में मनोज बाजपेयी और गजराज राव दोनों ने अपने किरदारों से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है और वह हर सीन में शानदार नज़र आए हैं| अपनी एडिटिंग के द्वारा मानस मित्तल कहानी को और ज्यादा मजबूत बनाते दिखाई दिए हैं|

'रे' वेब सीरिज़ की आखिरी कहानी 'स्पॉटलाइट' का निर्देशन वसन बाला ने किया है| इसकी कहानी फिल्म स्टार विक्रम मल्होत्रा (हर्षवर्धन कपूर) और धर्म गुरु 'दीदी' के चारों ओर घुमती दिखाई देती है| एक बार विक्रम फिल्म की शूटिंग के काम के सिलसिले में होटल रूका हुआ था और वहां पर 'दीदी' के अचानक से आकर रहने से सब कुछ बदलने लगता है| धीरे-धीरे फिल्म का निर्देशक विक्रम की गर्लफ्रैंड (आकांशा रंजन कपूर) दीदी के वचनों से प्रभावित होकर उसकी ओर आकर्षित होने लग जाते हैं। जब वह धर्म गुरु दीदी से मिलता है तो कौन इन दोनों में 'स्पॉटलाइट' में रहता है इस बात को जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी|

निर्देशन में वसन बाला कई जगहों पर काफी फीके नज़र आए हैं उनकी यह कमी कहानी को कमजोर बनाती है। अभिनय में हर्षवर्धन कपूर के किरदार की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है, वह अंत तक दर्शकों को एंटरटेंट करते दिखे हैं|

अंत में यही कहा जा सकता है कि 'रे' की हर कहानी में आपको अलग किरदार नज़र आएगा जो आपको अभी तक देखे कंटेंट के हिसाब से अलग लगेगा| कुछ एक सीन को छोड़ दिया जाए तो यह वेब सीरिज़ आपका जमकर मनोरंजन करने वाली है, हर पार्ट में अलग कहानी को सस्पेंस के साथ देखना आपको मजेदार लगेगा|

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