निर्देशक : श्रीराम राघवन
निर्माता : विनोद भानुशाली, संदीप सिंह
लेखक : रवि जाधव
रेटिंग: ***
जब भी बात देश के हित की होती है तो जुबां पर अपने आप पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आ जाता है| हाल ही में भारत रत्न अटल जी के जीवन पर आधारित एक फिल्म लोगों के सामने प्रस्तुत की गई है| इस कहानी में हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने अटल जी का किरदार निभाया है| सारंग दर्शने द्वारा लिखी गई मराठी पुस्तक अटलजी: कविहृदयाच्या राष्ट्रनेत्याची चरितकहाणी से प्रेरित होकर "मैं अटल हूँ" फिल्म को तैयार किया गया है|
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता थे जिनके सहयोगी ही नही विपक्षी नेता भी दीवाने हुआ करते थे| अब ऐसी हस्ती के किरदार को निभाना पंकज त्रिपाठी के लिए मुश्किल तो काफी होने वाला था| आज हम आपके साथ इस फ़िल्म से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साँझा करने वाले हैं| अगर आप भी अटल जी की सादगी पर बनी इस मूवी को देखना चाहते हैं तो आपको इसके बारे में सब कुछ पता होना जरूरी है|
कहानी की शुरुवात पंकज के अटल बिहारी किरदार में प्रधानमंत्री पद पर बने हुए और कारगिल में पाकिस्तानी आतंकियों के भारत सीमा के अंदर आने की खबरों से होती है| ये सब कुछ होने के बाद अटल जी बोलते नज़र आते हैं कि हम शुरुआत से ही शांति के पक्ष में रहे हैं| यहाँ से फिल्म की कहानी अटल जी के बचपन की तरफ मुड जाती है| कैसे उनको मंच के उपर भाषण देने में डर लगता था और उस डर को दूर करने में उनके पिता ने मदद की थी| इसके बाद कालेज की पढ़ाई के दौरान राजकुमारी (एकता कौल) से प्यार हो जाता है|
अटल और राजकुमारी का प्यार थोड़े दिन का होता है परन्तु फिल्म देखने आए दर्शकों का रोमांच बढ़ा जाता है| कानपुर में वकालत करने आए अटल का सहपाठी उनका पिता होता है जो उनके साथ एक ही रूम में रहता है| यही वो समय होता है जब वह वकालत छोड़कर राजनीतिक में अपना ध्यान लगाना शुरू कर देते हैं| पंकज अपने जबरदस्त अभिनय से दिखाते हैं कि कैसे अटल जी अपनी कविताओं के द्वारा विरोधियों को चुप करवा देते थे|
आज के युवाओं को बहुत कम अटल बिहारी वाजपेयी के महान व्यक्तित्व के बारे में पता होगा| फिल्म में आया अटल जी का वो भाषण कौन भूल सकता है जिसमें वह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि 'सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए'| इस भाषण में पंकज का अटल जी की तरह उंगलियों को मोड़ना काफी ज्यादा वायरल भी हो रहा है|
अभिनय की बात करें तो पंकज त्रिपाठी ने अपने अटल बिहारी वाजपेयी किरदार में जान झोंक दी है| वह अपने हर सीन में सटीक और आकर्षक ही नज़र आए हैं| अभिनय के द्वारा वह अटल जी के किरदार से न्याय करते दिखाई दिए हैं परन्तु फिल्म की लिखाई सभी किरदारों पर भारी पड़ी है|
कहानी बहुत तेज़ी से चलती है जिससे आप अटल जी के व्यक्तित्व को महसूस नही कर पाते| कब इंटरवेल आ जाएगा और दूसरा हाफ स्टार्ट हो जाएगा आपको इस बात का पता ही नही चलेगा| अभिनय में दूसरी तरफ़ पीयूष मिश्रा अटल जी के पिता के किरदार में दमदार दिखाई दिए हैं| अटल बिहारी की प्रेमिका का किरदार निभा रही एकता कौल अपने रोल में एकदम फ़िट बैठी हैं|
निर्देशन में रवि जाधव ने अच्छा काम किया है लेकिन जल्दी के चकर में वह अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को स्पष्ट रूप से नही दिखा पाते हैं| उन्होंने फिल्म को रोमांचक बनाने में कोई कमी नही छोड़ी है जो उनके काम में दीखता भी है| मूवी के समय के हिसाब से निर्देशक ने सभी किरदारों को अपना मौका दिया है| सिनेमैटोग्राफर की बात करें तो लॉरेंस डी कुन्हा ने कई सीन को अपनी एडिटिंग के द्वारा आकर्षक बना दिया है| उन्होंने कलाकारों को अपने किरदार के बारे में कुछ बोलने का मौका ही नही दिया है|
'गीत नया गाता हूं' गाने से लेकर बैक राउंड म्यूजिक सलीम-सुलेमान, पायल देव, कैलाश खेर, अमितराज और मोंटी शर्मा सभी ने मिलकर अच्छा काम किया है|
वैसे तो अटल जी जैसी महान हस्ती को बड़े पर्दे पर प्रदर्शित करना किसी भी कलाकार के किए मुश्किल होता है लेकिन पंकज त्रिपाठी ने अपने किरदार के साथ सही न्याय किया है| अंत में यही कहा जा सकता है कि अगर आप राजनीती से संबंधित कंटेंट को पसंद करते हैं तो आपको "मैं अटल हूँ" पूरे परिवार के साथ जरुर देखनी चाहिए|