दर्शकों को खूब लुभाया 'फुकरों' ने

Saturday, June 15, 2013 12:40 IST
By Santa Banta News Network
'फुकरे' दोस्ती पर आधारित एक ऐसी कहानी हैं जिसमें रोज़मर्रा की घटनाओं को बेहद ही ख़ूबसूरती के साथ परदे पर उतारा गया हैं। फिल्म में चार दोस्त शॉर्टकट के ज़रिये पैसा कमाने के चक्कर में एक बड़ी मुसीबत में फँस जाते हैं। फिल्म में न तो किसी बड़े मुद्दे को उठाया गया हैं और न ही इसकी कहानी इतनी जटिल हैं।

अब तक बॉलीवुड में दोस्ती के ऊपर कई फ़िल्में बन चुकी हैं जिनमे 'दिल चाहता है', 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा, '3 इडियट्स' और 'काई पो चे जैसी फ़िल्में शामिल हैं। मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म 'फुकरे' की थीम तो यही है लेकिन ये फ़िल्म बाकी फिल्मों से अलग है। ये हल्की-फुल्की, मनोरंजक फिल्म है जिसमें चार युवा मुसीबत में फँस जाते हैं।

बेहद गंभीर सी दिखने वाली ये फिल्म असल में एकदम हलकी-फुलकी सी कहानी हैं। फिल्म में डायरेक्टर और लेख़क विपुल विज और मृगदीप सिंह लांबा ने संजीदगी और हास्य में अच्छा तालमेल रखा है। जाहिर तौर पर 'फुकरे' का उद्देश्य दर्शकों का मनोरंजन करना है और ये इस उद्देश्य में सफल होती है।

'फुकरे' चार युवाओं और उनके बड़े सपनों की कहानी है। जिसमें चूचा (वरुण शर्मा) को एक सपना आता है, जिसका हन्नी (पुलकित शर्मा) मतलब निकालने की कोशिश करता है और सपने की विवेचना कर लॉटरी टिकट का एक नंबर बनाता है। परीक्षा के पर्चे हासिल करने के लिए ये दोनों पैसा लगाते हैं। वहीं लाली (मंजोत सिंह) और जफ़र (अली फजल) भी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हन्नी और चूचा के साथ हो लेते हैं। जब ये चारों भोली पंजाबन (ऋचा चड्ढा) से लोन लेते हैं तो सबकुछ उल्टा-पुल्टा हो जाता है। भोली पंजाबन इसमें एक फ़ीमेल गैंग्स्टर है।

फिल्म में लेखक ने आम जिंदगी की कुछ घटनाएँ उठाकर फिल्म के चारों किरदारों को उनमें डाल दिया है। हालाँकि ये परिस्थितियां बड़ी गंभीर सी लगती हैं लेकिन दर्शकों को इसमें बहुत मज़ा आता हैं। वैसे तो फिल्म में दिल्ली की गलियों को दिखाया गया हैं लेकिन भाषा ऐसी प्रयोग की गई हैं, जो सभी को आसानी से समझ आती हैं।

फिल्म की सबसे अच्छी बात ये हैं कि फिल्म में कोई बड़ा अभिनेता नहीं हैं। सारे नए किरदारों को लिया गया हैं। जिससे एक्टर्स के किसी भी इमेज में बंधने की संभावना खत्म हो गई है जैसा कि अक्सर नामचिन एक्टर्स के साथ होता है।

'फुकरे' डायरेक्टर मृगदीप के लिए भी काफी अच्छा अनुभव रहेगी क्योंकि उनकी पहली फिल्म 'तीन थे भाई' फ़्लॉप हो गई थी। लेकिन इस फिल्म के माध्यम से वे अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहेंगे। फिल्म की स्क्रिप्ट इसकी सबसे बड़ी ताकत है। संवाद बेहद मजेदार और हाज़िर जवाबी से भरे हुए हैं।

राम संपत द्वारा दिया गया संगीत भी फिल्म की परिस्थितियों पर एक दम फिट बैठता हैं।'फुक फुक फुकरे', 'जुगाड़ कर ले' और 'अमबरसरिया' जैसे गीत लोगों को काफी भाये हैं। कैमरामैन ने पुरानी दिल्ली को बड़ी खूबसूरती से फिल्माया है।

पुलकित, मंजोत, अली और वरुण, सभी को अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका मिला है। मंजोत में हर फिल्म के साथ निखार आता जा रहा है। अली जो आखिरी बार 'ऑलवेज कभी कभी' में दिखे थे, उनका काम भी अच्छा है। फिल्म में वरुण ने सबसे ज्यादा चौंकाया है। सबसे ज्यादा वही हंसाते हैं। ऋचा चड्ढा का काम ला जवाब है और उनकी फिल्म में एंट्री के साथ ही फिल्म का ग्राफ़ ऊपर चढ़ने लगता है। विशाखा सिंह, प्रिया आनंद और पंकज त्रिपाठी का काम भी अच्छा है।
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