अमिताभ ने पर बृहस्पतिवार रात को अपने ब्लॉग पर लिखा हैं "पंचम-दा को अपने आखिरी दिनों में ये बात बेहद खटक रही थी कि फिल्म इंडस्ट्री ने न ही तो उनकी प्रतिभा को पहचाना और न ही उन्हें पूरा मौका दिया।"
पंचम-दा ने 1961 से कॉमेडियन महमूद की फिल्म 'छोटे नवाब' से शुरुआत की थी। इसके बाद से वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के संगीत में एक क्रांति लेकर आए थे। वे अकेले एक ऐसे संगीतकार थे जो उस समय के सारे संगीत वाद्य यंत्रों को बजा सकते थे।
पंचम को 'आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा', 'हमे तुमसे प्यार कितना', 'एक चतुर नार' और 'तेरे बिना जिंदगी से' जैसे गानों ने भीड़ से ला कर अलग खड़ा कर दिया था।
उन्होंने ने अपना आखिरी काम फिल्म 'ए लव स्टोरी-1942' में किया था। जो उनके बाद 1994 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म का संगीत भी उनके सर्वश्रेष्ठ ट्रैक में से एक था। फिल्म में दिया नायाब संगीत जब लोगों के बीच एक जादू की तरह फैला उस से पहले ही उन्होंने ये दुनिया छोड़ दी।
एक बेहद मिलन-सार और हंसमुख इंसान दुनिया से तो चला तो गया लेकिन लाखों लोगों की रगों में अपने संगीत को छोड़ गया।