निर्माता: शोभा-एकता कपूर
निर्देशक: मिलन लूथरिया
संगीत: प्रीतम, स्टोरी और डायलॉगः रजत अरोड़ा
अगर आप 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई दोबारा' देखने जा रहे हैं और आपकी सोच हैं कि आप 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' में पहली कहानी को आगे बढ़ते हुए देखेंगे। तो आप बहुत गलत सोच रहे हैं। फिल्म का नाम 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' जरुर हैं लेकिन फिल्म में सिर्फ 'दोबारा' ही रह गया हैं। 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' जैसा कुछ नहीं हैं। हाँ ऐसा जरुर हैं कि फिल्म वहीँ से शुरू होती हैं जहाँ से पहली ख़त्म हुई थी। लेकिन यह ज्यादा आगे पहुँच नहीं पाती और फिल्म अपनी विषय-वास्तु से भटक जाती हैं और एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी का मोड़ ले लेती हैं। साथ ही अगर आप यह सोच कर जा रहे हैं कि फिल्म में अंडरवर्ल्ड का साम्राज्य देखने को मिलेगा तो भी आप गलत सोच रहे हैं। क्योंकि फिल्म सिर्फ अंडरवर्ल्ड की कल्पनाओं पर आधारित हैं।
'दोबारा' में इमरान हाशमी की जगह अक्षय कुमार ने ले ली हैं। जहाँ पहली फिल्म में सुलतान बने अजय देवगन ने हाजी मस्तान पर आधारति किरदार निभाया था, वही इस बार अक्षय का किरदार यानी शोएब दाउद से प्रेरित हैं। लेकिन पहली फिल्म में गैंगस्टर की कहानी को जिस तरह से काफी मनोरंजन के साथ पेश किया गया था। इस बार निर्माता-निर्देशक नाकामयाब हो गये हैं। फिल्म में शोएब का किरदार तो दाउद से प्रेरित हैं और अंडर वर्ल्ड का दिखावा भी किया गया हैं। लेकिन फिल्म कहीं भी अंडरवर्ल्ड के किसी भी पहलु से जुडी हुई नहीं हैं और न ही उसे उजागर करती हैं। फिल्म पूरी तरह से कल्पनाओं पर आधारित एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी हैं।
दरअसल फिल्म में निर्देशक मिलन लुथरिया ने सिर्फ पैकट के जरिये अन्दर के सामान को बेचने की कोशिश की हैं लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए हैं। यह फिल्म काफी कन्फ्यूजन की शिकार है। आप तय ही नहीं कर पाते कि इसे एक माफिया फिल्म के तौर पर देखें। प्रेम कहानी के तौर पर देखें, या इंसानी रिश्तों के सघन गुंथे जाल के तौर पर। शोएब ने बार-बार जो डायलॉग बुरा मान जाएगा, बुरा मान जाएगा मारा हैं, उस से दर्शक के बुरा मानने के पूरे पूरे चांस बन जाते हैं।
फिल्म की शुरुआत शोएब (अक्षय कुमार) के मुंबई आने से होती हैं जहाँ वह अपने दुश्मन रावल (महेश मांजरेकर) को सबक सिखाने के लिए विदेश से आता है। पूरी मुंबई पर रावल के काले कामों का साम्राज्य चलता है। शोएब लगभाग 12 सालो के बाद उसी स्लम बस्ती में लौटा है जहां से उसने अपना जुर्म का सफर शुरू किया था। इसी बस्ती में शोएब का ख़ास आदमी असलम (इमरान खान) भी रहता है। शोएब असलम को फूटपाथ से उठाकर अपने साथ लाता हैं। साथ ही वह असलम पर बहुत भरोसा भी करता हैं। जस्मीन (सोनाक्षी सिन्हा) भी कश्मीर से मुंबई अपनी अम्मी और दो छोटी बहनों के साथ आती हैं और इसी बस्ती में रहती हैं। बस यही से शुरुआत होती हैं शोएब और असलम के जस्मीन के प्यार में पड़ने की। लेकिन जब शोएब को पता चलता हैं कि वह उस से नहीं बल्कि असलम से प्यार करती हैं तो वह किसी भी सूरत में जस्मीन को पाने के लिए असलम को रास्ते से हटाने की जुगत में लग जाता हैं। वहीँ रावल शुरू से आखिर तक सिर्फ शोएब को मारने की प्लानिंग करने में जुटा रहता हैं।
अगर फिल्म में किरदारों के अभिनय की बात की जाए तो फिल्म में सिर्फ अक्षय ही दिखाई देते हैं। वह फिल्म के बाकी कलाकारों पर भारी पड़ते हैं। इमरान तो अक्षय के किरदार के तले दब कर ही रह गये हैं। अगर दर्शक ये सोच कर फिल्म देखने जाते हैं कि यह अक्षय, इमरान और सोनाक्षी की फिल्म हैं वह सिर्फ अक्षय को देख कर वापिस आते हैं। इमरान अक्षय के सामने कही नहीं टिकते। अगर सोनाक्षी की बात की जाए तो उसमें कोई नई बात नहीं थी। सोनाक्षी का वहीँ पुराना रूप देखने को मिला हैं जिसमें वह कभी मासूम तो कभी भोंदू लगती हैं। गुलाल में रणसा का रोल करने वाले शानदार एक्टर अभिमन्यु भी एसीपी के किरदार में थे अभिनय भी अच्छा था लेकिन रोल को लंबाई नहीं दी। विद्या बालन ने भी एक सेकेंड के लिए अपनी झलक दिखाई।
फिल्म में तैयब अली की कव्वाली की बात की जाए तो वह कुछ हद तक मनोरंजन करती हैं। फिल्म के अगर बाकी दो गानों की बात की जाए तो वह थोड़ी बहुत पहचान पा चुके हैं, लेकिन ऐसे नहीं हैं जिन्हें फ़ोन में फीड कर के सूना जाए। फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक को भी ठीक-ठाक का दर्जा दिया जा सकता हैं।