सुभाष घई की फिल्म के चरित्र के इस तरह से प्रभावपूर्ण होने का एक कारण उनकी उत्कृष्ट कास्टिंग भी हैं। 1976 में आई फिल्म 'काली चरण' में अजित ने एक डायलाग बोल था 'सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता हैं' ये एक ऐसी लाइन हैं, जिसमें अजित के अलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। वहीँ फिल्म 'कर्मा' में अनुपम खेर का डायलाग 'इस थप्पड़ की गूंज सुनी तुमने?' को हर उस मौके पर बोल जाने लगा था जब किसी को थप्पड़ पड़ता था।
गुलशन ग्रोवर ने जब अपने करियर के शुरुआत में ही फिल्म 'राम लखन' में केसरिया विलायती का किरदार निभाया और 'बैड मैन' डायलाग बोल था उसके बाद से ही गुलशन 'बैड मैन' के नाम से ही प्रसिद्द हो गये थे। घई की ऐसी ही एक और हालिया फिल्म 'कांची भी तैयार हो रही हैं, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। यानी उम्मीद हैं कि वह ऐसा ही कुछ करिश्मा अपनी फिल्म में भी करने जा रहे हैं।
घई कहते हैं, "चमत्कार , दो चीजों से होता हैं, एक तो स्क्रिप्ट में लिखे गये चरित्र और दूसरा जिस अभिनेता द्वारा इसे निभाया जाता हैं वह महत्वपूर्ण होता हैं, साथ लोगों के साथ बिठाया ताल मेल काम आता हैं।"