कलाकार : चंदन रॉय सान्याल, एलेना कज़ान, अर्फी लांबा
निर्देशक : आशीष शुक्ला
फिल्म 'प्राग' के बारे में कहा जा सकता हैं कि यह एक अलग किस्म की मानसिकता रखने वाले वर्ग के लिए है। लेकिन अगर आम जनता की बात की जाए तो यह उन्हें भ्रम में दाल देती है। यह एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म है। जिसे 'प्राग' की जमीनी हकीकत पर बनाया गया है। फिल्म में बताया गया हैं कि एक हर इंसान की ही तरह हर शहर का भी अपना एक अतीत, वर्तमान और भविष्य होता है।
फिल्म की कहानी का नायक एक आर्किटेक्ट छात्र चंदन (चंदन रॉय सान्याल) है। जो अपनी डॉक्टरेट की उपाधि के शोध के लिए मुंबई से 'प्राग' की राजधानी चेक जाता है। वह वहां के दूसरे विश्व युद्ध के यादगार स्मारक पर शोध करने जाता है। इसी बीच चंदन की मुलाकात एक पब में जिप्सियों की वंशज एलेना (एलेना कजान) से होती है, जिस से उसकी दोस्ती हो जाती है। एलेना भारत से खासकर कोलकाता से काफी हद तक परिचित है। वह चंदन को जिप्सी के उन हजारों लोगों के लिए स्मारक डिजाइन करने के लिए प्रेरित करती है, जो चेक में मर के दफ़न हो चुके है।
लेकिन चंदन का एक सच ये भी है कि वह अपने एक मित्र आरिफ (आरिफ लाम्बा) की मौत के सदमे से गुजर रहा है। जिसके लिए गुलशन हमेशा उसे इस सोच से बाहर आने के लिए सलाह देता रहता है। वह लगातार चंदन को समझाता हैं कि वह बीमार नहीं हैं और इसके लिए उसे किसी भी डॉक्टर से परामर्श लेने की कोई जरुरत नहीं है।
फिल्म में दर्शकों को गुदगुदाने और बाँध के रखने के लिए काफी अन्तरंग द्रश्यों को भी रखा गया है। फिल्म में जो द्रश्य मुंबई में गुलशन और सुभांगिनी (सोनिया बिंद्रा) के बीच लिए गये है, उन्हें प्राग में चंदन और एलेना के बीच में दोहराया गया है। साथ ही पब में एक पोल डांस में जो न्यूड डांस रखा गया हैं वह एक दम अर्थहीन और व्यर्थ प्रतीत होता है।
कहानी बेहद अजीब तरह से आगे बढती है। एलेना जब गर्भवती हो जाती है तो वह चंदन को इस बात से अवगत करवाती है, लेकिन यहाँ तो मामला ही उल्टा पड़ जाता है जब चंदन अपने एक सपने के आधार पर उल्टा एलेना को ही दोषी ठहरा देता है। दरअसल वह सपने में एलेना को अपने दोस्त गुलशन के साथ अन्तरंग होते हुए देखता है। इस बात से परेशान एलेना खुदखुशी कर लेती है।
फिल्म का अंत होते-होते चंदन जिप्सी के लिए स्मारक तैयार कर लेता है। लेकिन अब वह फिर से अपने दोस्त की ही तरह एलेना के जीवित होने के भ्रम से भी प्रभावित हो जाता है और में अंत में वह एलेना को वास्तुशिल्प स्मारक भेट करता है।
अपनी पूरी कोशिशों के बाद भी कहा जा सकता हैं कि निर्देशक फिल्म के माध्यम से अपना प्रभाव और संदेश छोड़ने में असफल रहे है। हालाँकि चंदन रॉय सान्याल के बारे में कहा जा सकता हैं कि उन्होंने अपने हिस्से का काम बड़ी ही मेहनत और ईमानदारी से किया है। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपने लिए रास्ता बनाने की संभवनाए बना ली है। फिल्म के दूसरे कलाकारों के किरदार बेहद कम थे और उनमें कोई ख़ास विशेषता भी नहीं थी।
वैसे अगर फिल्म की पटकथा के बारे में कहा जाए तो कहा जा सकता हैं की यह एक अलग सोच और मानसिकता द्वारा बनाई गई फिल्म है।है। फिल्म की पटकथा बेहद जटिल और डार्क है। फिल्म में चेक और रसियन भाषा थोडा नयापन लेकर आई है।
Monday, October 07, 2013 17:34 IST