फिल्म समीक्षा 'बेशरम': इतनी भी क्या जल्दी थी?

Monday, October 07, 2013 17:36 IST
By Santa Banta News Network
कलाकार : ऋषि कपूर, नीतू सिंह, रणबीर कपूर, पल्लवी शारदा, जावेद जाफरी, अमितेष नागपाल

निर्देशक : अभिनव कश्यप

इसमें संदेह नहीं हैं कि अभिनव कश्यप अच्छे निर्देशन के मालिक है, और ये चीज उन्होंने फिल्म 'दबंग' से साबित कर दी थी। लेकिन 'फिल्म' 'बेशरम' के मामले में एक बात समझ नहीं आई कि उन्हें इतनी भी क्या जल्दी थी फिल्म को शूट कर के रिलीज़ करने की? फिल्म देख कर ही पता चल जाता है कि फिल्म को जल्दी-जल्दी शूट कर के रिलीज़ कर दिया गया है।

फिल्म अपने टाइटल 'बेशरम' के अनुसार एक दम सटीक बैठती है। फिल्म में रणबीर कपूर जितने बेशरम बने है, वह उनकी अनाथ परवरिश का नतीजा हैं या फिल्म के निर्देशक की स्क्रिप्ट का ये तो निर्देशक ही जाने। यहाँ तो सवाल सिर्फ यह उठता हैं कि निर्देशक अभिनव कश्यप को फिल्म को 'स्टार्ट टू फिनिश' करने की इतनी क्या जल्दी पड़ी थी। जबकि दर्शक फिल्म के पूरा होने के बाद आराम से इंतजार कर सकते थे। अगर ये आराम से शूट होकर आराम से रिलीज़ होती तो शायद ज्यादा अच्छा रहता। फिल्म देख कर ऐसा लगता हैं कि निर्माताओं ने 80-90 के दशक की फिल्मों एक-एक बार देख कर बिना स्क्रिप्ट लिखे फिल्म जल्दी-जल्दी फिल्म शूटिंग निपटा डाली हो।

कहानी: फिल्म की कहानी है, एक ऐसे अनाथ बच्चे 'बबली' (रणबीर कपूर) की जो बचपन से ही अनाथ आश्रम में पला बढा है। जिसे अपने माता-पिता यहाँ तक कि अपने जन्मदिन का भी नहीं पता है। वह जब से होश संभालता हैं तभी से अपने आप को अनाथ आश्रम में पाता है। और अच्छी परवरिश और मार्गदर्शन के अभाव में बेफिक्र, बेशरम चोर बन जाता है। जो वैसे तो मैकेनिक हैं, लेकिन मरम्मत सिर्फ चोरी की हुई गाड़ियों की ही करता है। पहले वह गाडी चुराता हैं और फिर उसका रंग ढंग बदलकर गाड़ी के नकली पेपर तैयार कर उसे दूसरे राज्य में बेक देता है। इसी बीच वह तारा शर्मा (पल्लवी शारदा), से टकराता हैं और उसके एक तरफ़ा प्यार में पड जाता है। लेकिन मामला गड़बड़ तब होता हैं जब वह अनजाने में तारा की ही गाडी चुरा कर भीम सिंह चंदेल (जावेद जाफरी) को बेच देता हैं। जबकि भीम सिंह चंदेल एक ख़तरनाक गुंडा है। जब उसे पता चलता हैं कि वह कार तो तारा की थी तह उसकी आँखे खुलती और उसके बाद बबली का मकसद होता हैं अपनी भीम सिंह से तारा की गाडी को वापिस लाना। जिसके लिए वह तारा को साथ लेकर दिल्ली से चंडीगढ़ आता है। साथ ही बबली का एक दोस्त टीटू (अमितोष नागपाल) भी है जो उसके साथ ही अनाथ आश्रम में पला-बढ़ा है। वह हर कदम पर बबली का साथ देता है। वहीं हैड कांस्टेबल बुलबुल चौटाला (नीतू सिंह) और इंस्पेक्टर चुलबुल चौटाला (ऋषि कपूर) बेऔलाद दंपति हैं। जिनमें से बुलबुल चौटाला एक भ्रष्टाचारी पुलिस अधिकारी हैं और हर बार चुलबुल को रिश्वत के लिए उकसाती है। ये दोनों शुरू से ही बबली के पीछे चोर-पुलिस का खेल खेलते रहते है। लेकिन फिल्म का अंत होते-होते वह बबली से इतने प्रभावित होते हैं कि अंत में उसे गोद ले लेते है।

अभिनय: अभिनय की जहाँ बात आती हैं, तो फिल्म में तीनों कपूर रणबीर, कपूर नीतू और ऋषि के अभिनय से सभी परिचित है, और तीनों ही दर्शकों को पसंद है। अगर इसमें रणबीर की बात की जाए तो वह एक अनाथ बच्चे के रूप में ठीक-ठाक चित्रण किया है। वहीं ऋषि और नीतू में से अगर कहा जाए तो पूरी फिल्म में नीतू ऋषि पर भारी पड़ी है। नीतू और ऋषि जहाँ भी आए हैं दर्शकों का ध्यान खीचने में कामयाब रहे है। जावेद जाफरी जिन्हें एक समय पर छोटे पर्दे का अमिताभ बच्चन कहा जाता था। उनकी एक्टिंग पर शक नहीं किया जा सकता। लेकिन फिल्म में वह एक गंभीर विलेन की भूमिका निभा रहे हैं या कॉमेडियन की ये समझ नहीं आता। उन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे अभी उनकी हंसी छूट पड़ेगी और वह खुल कर हंस पड़ेंगे। यानी उन्होंने जबरजस्ती अपनी हंसी को रोक हुआ है। जहाँ तक पल्लवी शारदा की बात हैं तो वह अभी नई हैं लेकिन फिल्म के हिसाब से वह अपना काम कर गई हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि फिल्म शारदा की वजह से कही कमजोर पड़ी हैं लेकिन इसमें भी दो-राय नहीं हैं कि उनके पास अनुभव का न होना साफ नज़र आया है। वहीं अमितोष नाग पाल ने रणबीर के अनाथ दोस्त के रूप में अच्छा काम किया है।

संगीत: फिल्म में कुल मिलकर 7 गाने है। जिनमें से ज्यादातर 80-90 दशक में फिल्माए नज़र आते है। यानी उनमें नये हैं तो सिर्फ रणबीर और शारदा। अगर फिल्म के टाइटल ट्रैक की बात की जाए तो वह भी उनके पापा ऋषि के गाने मेरी उमर के नौजवानों से काफी मेल खाता सा लगता है। यानी कुल मिला कर कहा जा सकता हैं कि फिल्म का संगीत ठीक ठाक हैं लेकिन नया कुछ नहीं हैं, जो दर्शक देख और सुन चुके हैं उसे दोहराया गया है।

क्यों देखे: ऋषि और नीतू की ऑनस्क्रीन कैमिस्ट्री के लिए और एक अनाथ की परविरश से उसमें आइ बेशर्मी के लिए।

क्यों न देखे: फिल्म में ऐसा कुछ नही हैं जिसे आपने पहले कभी ना देखा हो।
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