निर्देशक : फराज हैदर
अगर आप फिल्म 'वॉर छोड़ ना यार' देखने जा रहे है, तो सिर्फ एक बात ध्यान में रखियेगा कि सीमा की वास्तविक स्थिति की अब तक की जो तस्वीरें आपके मन मस्तिस्क में छपी हैं उन्हें घर पर ही रख कर जाइएगा। नहीं तो आप सिर्फ उधेड़बुन में ही उलझे रहेंगे और आप फिल्म का लुत्फ़ नहीं उठा पाएंगे। यह फिल्म सीमा पर खड़े सिपाहियों पर बनी जरुर है, लेकिन यह उन परिस्थितियों पर नहीं बनी है, जिसके बारे में हम अब तक सुनते और महसूस करते आए है।
'वॉर छोड़ ना यार' फराज हैदर की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है, और इस फिल्म के माध्यम से निर्देशक ने निसंदेह अब तक के बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दे को बेहद हलके-फुल्के और मनोरंजक तरीके से उठाया है। हम सीमा पर खड़े सिपाहियों और वहां की परिस्थितियों से काफी हद तक वाकिफ है। जो 'वॉर छोड़ ना यार' से वास्ता नहीं रखती। इसलिए इसे महज एक कल्पना ही कहा जा सकता है। लेकिन इस कल्पनात्मक फिल्म का सन्देश कल्पनात्मक नहीं है। फिल्म देखने वाले हर देशवासी की फिल्म देखते वक़्त सिर्फ यही कामना होगी कि 'काश ऐसा वास्तव में होता'।
अभी तक इस श्रेणी की जितनी भी फ़िल्में बनी है, सभी में सीमा पर सिर्फ खून-खराबा और दोनों देशों के सिपाहियों को एक दूसरे पर गोलिया और बारूद चलाते देखा गया है। लेकिन 'वॉर छोड़ ना यार' पहली ऐसी फिल्म है, जिसमें इस मार-काट के बिलकुल उलट एक दूसरे के साथ बेहद दोस्ताना और प्रेम पूर्वक संबंधों को दर्शाया गया है। जो एक दूसरे के साथ ताश खेलते है, अन्ताक्षरी खेलते है और हंसी मजाक करते है, और वह लड़ना नहीं चाहते। लेकिन उन्हें लड़ना पड़ता है, क्योंकि उनके ऊपर आदेश है लड़ने का। ऐसे में वह ना चाहते हुए भी लड़ते है। जिसमें सबकी समझ में सिर्फ एक ही बात आती है, कि यह सिर्फ सत्ताधारी लोगों का अपना स्वार्थ था।
कहानी: फिल्म की कहानी सिर्फ इतनी सी है, कि कैसे दो देशों के एक साथ हँसते खेलते सिपाही दोनों देशों के सत्ताधारी लोगों की चालों का शिकार होते है। जिनमें से भारत के कैप्टन राज राणा ( शरमन जोशी) है, वहीं पाक चौंकी का इंचार्ज कैप्टन कुरैशी (जावेद जाफरी) है, उन्ही के साथ खान साहब (संजय शर्मा) भी हैं जिनकी कुरैशी बहुत इज्जत करता है। वहीं रूद्रा दता (सोहा अली खान) खबरिया न्यूज चैनल की वॉर रिर्पोटर है, जो सीमा पर अपने कैमरामैन रंजीत के साथ कवरेज के लिए रक्षा मंत्री (दिलीप ताहिल) के आदेश पर आती है। लेकिन वहां का दोस्ताना माहौल देख कर दंग रह जाती है। साथ ही वह ये भी जानती है, की दो दिन बाद लड़ाई छिड़ने वाली है। लेकिन रुद्रा और राज इस लड़ाई को रोकने की योजना बनाते है। अब ये दोनों कामयाब होते हैं या नहीं ये तो आपको फिल्म देख कर ही पता चलेगा।
अभिनय: फिल्म में अभिनय की बात की जाए तो जाहिर तौर पर यह एक कॉमेडी फिल्म है। लेकिन अगर कॉमेडी में सफलता की बात की जाए तो, उसमें जावेद जाफरी, संजय मिश्रा और मनोज पाहवा ये तीनों ही कामयाब हुए है। इन्होने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया है, जिनमें से इस मामले में सबसे ज्यादा नंबर संजय मिश्रा को मिलने चाहिए। इनके आलावा बाकी कलाकार शर्मन जोशी, सोहा अली खान, मुकुल देव ये भी अच्छे कलाकार है जो ठीक-ठाक ही दिखे। वहीं दिलीप ताहिल के चार किरदार थे, लेकिन याद सिर्फ़ एक ही रह जाता हैं 'दिलीप ताहिल' इसके अलावा वह कुछ ख़ास नहीं था।
संगीत : फिल्म में टाइटल ट्रैक समेत कुल आठ गाने है। जिनमें से 'ख़्वाबों सी' और 'मैं जागूं अक्सर' रोमांटिक गाने है। इनके अलावा सभी गाने देश भक्ति पर आधारित है। फिल्म का संगीत इतना कुछ असर तो नहीं छोड़ता लेकिन सुनने में ठीक-ठाक लगता है।
क्यों देखें: सीमा पर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों की हास्य परक स्थिति, जिसे जावेद जाफरी और संजय मिश्रा ने बेहद मनोरंजक तरीके से दिखाया है।
क्यों ना देखे: अगर भारत-पाक सीमा की जमीनी हकीकत से परे एक काल्पनिक फिल्म में दिलचस्पी ना हो तो।