निर्देशक : एंथोनी डिसूजा
स्टार: **
फिल्म 'बॉस' में एक्शन, रोमांस, ड्रामा, इमोशंस और मंझे हुए कलाकार सभी कुछ है। लेकिन नहीं है तो फिल्म की स्क्रिप्ट में दम, और इसी कमज़ोर स्क्रिप्ट ने पूरी फिल्म का दम निकाल दिया है। जगह-जगह फ़िल्मी कलाकार हरियाणवी बोलते नज़र आते है, लेकिन अक्षय के अलावा दूसरे कलाकारों की हरियाणवी में ना तो कोई दम है और ना ही कोई प्रभाव। हाँ फिल्म के गानों को हरियाणवी भाषा ने दमदार ज़रुर बना दिया है। अगर फिल्म की स्क्रिप्ट में सुघड़ता और सटीकता होती तो, फ़िल्मी पर्दे पर इसका अंदाज़ ही कुछ और होता।
कहानी: फिल्म की कहानी एक ऐसे किशोर सूर्या (अक्षय कुमार) की है, जो अपने पिता सरकारी अध्यापक सत्यकांत शास्त्री (मिथुन चक्रवर्ती) की रब समझकर इबादत करता है और शुरू से आखिर तक उनकी ही उपेक्षा का शिकार रहता है। वह अपने पिता के खिलाफ कोई अपशब्द नहीं सुन सकता लेकिन जब बार-बार उसे इस परिस्थिति से गुजरना पड़ता है। तो वह बेकाबू हो जाता है। नतीजा सत्यप्रकाश के पास शिकायतें और उनके मन में सूर्या के प्रति नफरत पैदा होना। जो हर ग़लतफ़हमी के बाद बढती जाती है और यह नफरत उस वक़्त अपनी हदों को पार कर जाती है जब सूर्या एक किशोर की आपसी दुश्मनी के चलते हत्या कर देता है। इतना ही नहीं जेल से बहार आकर वह अपने पिता की माफ़ी का आखिरी मौका भी सिर्फ एक ग़लतफहमी के चलते गँवा देता है।
पिता से तिरस्कृत सूर्या को पनाह मिलती है, कुरुक्षेत्र के ट्रांसपोर्टर 'बिग बॉस' (डैनी डेन्जोंगप) से जो वास्तविक रूप में कॉन्ट्रैक्ट पर लोगों की ठुकाई का काम करता है। सूर्या 'बिग बॉस' के पास आ कर सूर्या से 'बॉस' बन कर उनका तुड़ाई का काम संभाल लेता है, और 'बिग बॉस' को अपना ताऊ मान लेता है। कहानी में मोड़ तब आता हैं जब सत्यकांत और पुलिस अधिकारी आयुष्मान माथुर (रोनित रॉय) अलग-अलग शिव (शिव पंडित) के नाम का कॉन्ट्रैक्ट 'बॉस' को देते है। लेकिन एक बचाने के लिए और एक ठिकाने लगाने के लिए। दरअसल शिव सूर्या का छोटा भाई है जो आयुष्मान माथुर की बहन अंकिता (अदिति राव हैदरी) से प्यार करता है। जब 'बॉस' को पता चलता है कि शिव उसी का छोटा भाई है, फिर वह अंकिता और शिव की शादी कराने और आयुष्मान माथुर को ठिकाने लगाने की ठान लेता है। अंत में सत्यकांत शास्त्री के सामने एक हकीक़त आती हैं और वह सूर्या के साथ किये अन्याय के लिए बहुत पछताता है। यानी अंत में हैप्पी एंडिंग।
अभिनय: अगर अभिनय की बात की जाए तो 'अक्षय इज़ ऑलवेज बॉस' इसमें कोई शक नहीं है। अक्षय फिल्म में अपने पुराने अंदाज में हरियाणवी तेवर के साथ दिखे है। कॉमेडी के साथ धुरंदर एक्शन और वो भी खिलाडी के अंदाज में। अक्षय के बाद अगर फिल्म में किसी का नंबर आता हैं तो वह हैं रोनित रॉय जिन्होंने विलेन के रूप में अक्षय को अच्छी टक्कर दी है। डैनी डेन्जोंगप अच्छे व्यक्तित्व के मालिक है, जो फिल्म में भी साफ दीखता है। लेकिन उनके पास करने के लिए कुछ ख़ास नहीं था। मिथुन एक कड़क पिता के रूप में तो ठीक थे लेकिन भावुकता में वो बात नहीं थी जो हो सकती थी। वहीं शिव पंडित ने भी काफी हद तक अपना भाग संभाल लिया है। लेकिन अदिति राव हैदरी सिर्फ शो पीस ही थी। फिल्म में जॉनी लीवर ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
संगीत: फिल्म का संगीत काफी दमदार है। फिल्म में कुल पांच गाने है, जिनमें से फिल्म के शीर्षक गाने 'बॉस' और 'पार्टी आल नाईट' अपनी अच्छी पहचान बना चुके है। जिनमें से पार्टी आल नाईट को हनी सिंह ने कंपोज़ कर खुद ही गाय है। वहीं 'पार्टी आल नाईट' में हनी सिंह और मीत ब्रदर्स ने अपना योगदान दिया है। फिल्म के बाकी तीन गाने 'हम ना तोड़े', 'हर किसी को नहीं मिलता' और 'पिता से ही नाम तेरा' भी ठीक है।
क्यों देखे: अगर अक्षय के बहुत बड़े फैन है और सोचते हैं कि उनकी फिल्म एक बार तो देखनी बनती ही है।
क्यों ना देखे: अगर फिल्म को लेकर तार्किक तरीके से सोचते है और ड्रामे के अलावा फिल्म में मजबूत कहानी भी ढूँढ़ते है।