निर्माता निर्देशक: राकेश रोशन
हिंदी-सिने जगत में एक नई शैली की शुरुआत है, 'कृष-3'। इस बात में कोई संदेह नहीं है, कि 'कृष-3' भारत की सबसे पहली ऐसी फ़िल्म है, जिसमें विदेशी दर्जे की ऐसी तकनीकों का प्रयोग किया गया है, जो अब से पहले भारत में किसी भी फ़िल्म में नहीं हुआ था। साथ ही अगर इस फ़िल्म को पसंद करने की बात की जाए तो इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि फ़िल्म युवाओं और बच्चों को काफी पसंद आएगी। इसका कारण है युवाओं का हॉलीवुड की मशीनीकरण से भरपूर फिल्मों की तरफ रुझान होना।
'कोई मिल गया' और 'कृष' के बाद 'कृष-3' में भी ऋतिक जिनके पास अलौकिक शक्तियां है, फ़िल्म के कुछ दृश्यों में वह स्पाइडर मैंन तो कभी मुकेश खन्ना के शक्तिमान कि तरह दीखते है। फ़िल्म में अगर कहानी की बात की जाए तो वह इतनी बड़ी और जटिल नहीं है। कहानी बेहद साधारण है। लेकिन फ़िल्म की आधुनिक तकनीक, बेहतरीन कंप्यूटर ग्राफिक्स और स्पेशल इफेक्ट ने इसे दमदार बना दिया है।
कहानी: फ़िल्म 'कृष' की कहानी को आगे बढाती है। जब कृष्णा (ऋतिक रोशन) सिद्धांत आर्या (नसीरूदीन शाह) की कैद से अपने पिता रोहित मेहरा (ऋतिक रोशन) को निकाल का ले लाते है। अब कृष्णा और प्रिया मेहरा (प्रियंका चोपड़ा) शादीशुदा जोड़े है और ये तीनों एक साथ एक सुखी परिवार की तरह रहते है। जहाँ रोहित मेहरा अपनी रिसर्च का कार्य जारी रखता है, वहीं कृष कृष्णा बनकर नौकरी करता है, और कृष बनकर जरुरत मंद लोगों की मदद। प्रिया आजतक न्यूज़ चैनल की एंकर है।
कहानी में मोड़ तब आता है, जब फ़िल्म में काल (विवेक ओबरॉय) और काया (कंगना) की ऐंट्री होती है, जिनका मकसद, दुनिया को ख़त्म कर अपना साम्राज्य स्थापित करना। जिसके लिए वह एक ऐसा वायरस बनता है, जो सिर्फ पांच मिनट में इंसानो की जान निगल लेता है। अब कृष्णा और रोहित मेहरा का दायित्व है, इस मुसीबत से मुंबई को बचाना। जिसमें कृष और उसके पिता कामयाब हो जाते है।
लेकिन साथ ही वह काल की नज़रों में भी आ जाते है। काल एक ऐसा क्रूर अमानव है, जो असीमित शक्तियों का मालिक है, और जो अमानवीय सफल प्रयोगों द्वारा अपनी शक्तियां बढ़ा लेता है। लेकिन अब वह कृष और उसके पिता को अपनी राह का रोड़ा पाता है। ऐसे में काल रोहित और प्रिया को अपने कब्ज़े में ले लेता है। प्रिया जो की प्रेग्नेंट है। ऐसे में कृष का काम है अपने परिवार के साथ-साथ दुनिया को काल के हाथों बर्बाद होने से बचाना।
संगीत: फ़िल्म के दो गाने, ऋतिक और प्रियंका पर फिल्माया 'रघु पति राघव' और कंगना और ऋतिक पर फिल्माया 'दिल तु ही बता' दोनों ही बेहतर गाने है। 'दिल तु ही बता' में ज़ुबीन गर्ग और अलीशा चेनॉय की मखमली और मीठी आवाज सुनने वाले पर जादू करने में सफल है। फ़िल्म के बाकी गाने इतने प्रभाव पूर्ण नहीं है, लेकिन फ़िल्म की कहानी से मेल खाते लगते है।
अभिनय: ऋतिक रोशन ने फ़िल्म की कहानी और दृश्यों के अनुसार जितनी मेहनत चाहिए थी वह की है। जो फ़िल्म में साफ़ दिखती है। वह एक सुपरहीरो के रूप में बहुत जमते है। ख़ास कर फ़िल्म में डबल रोल में ऋतिक के लिए बड़ी चुनौती थी। जिसे उन्होंने फ़िल्म की पहली दोनों श्रेणियों समेत अब तक बना के रखा है। प्रियंका चोपड़ा ने अपनी पुरानी तर्ज पर ठीक-ठाक अभिनय किया है। वैसे उनके पास करने के लिए कुछ ज्यादा था भी नहीं। लेकिन काया के रूप में कंगना ने बेहद दमदार प्रदर्शन किया है। वहीं आरिफ ज़कारिया का किरदार छोटा था लेकिन इस छोटे से समय में वह अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे है। राजपाल यादव के किरदार में कोई जान नहीं थी।