कैलीना फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) ने हालिया जाँच के आधार पर यह संदेह जताया है कि जिया ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उसका मर्डर हुआ था। ज्ञात हो तो जिया की माँ राबिया खान पहले से ही इस बात का दावा करती आ रही है। इस खुलासे के बाद राबिया का दावा और पुख्ता हो गया है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जिया की हत्या की बात सामने आने पर उसकी मां ने डॉ. आरके शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर 'एफएसएल' के द्वारा सबूतों के संरक्षण और उसकी जांच पर लापरवाही का संदेह जताया है।
3 जून को जिया की मौत के बाद 4 जून को जिया की बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ था और 5 जून को 'एफएसएल' को सभी सैम्पल भेज दिए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार 'एफएसएल' के पास जिया के दाएं और बाएं दोनों हाथ के फोटो थे। जिसमें 'एफएसएल' की 16 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार जिया के दोनों हाथों के नाखूनों से खून और मानव मांस के अवशेष पाए गए थे। लेकिन नाखूनों पर खून किसका था ये पता नहीं लगाया गया था।
इन सभी सबूतों के आधार पर राबिया ने इंडिपेंडेंट फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. आरके शर्मा को इस मामले की जांच करने को कहा। जिसके बाद डॉ. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्या पर गंभीर सवाल उठा दिए है। अपनी अंतरिम रिपोर्ट में उन्होंने जिया की हत्या होने की मजबूत संभावना जताई है। साथ ही सबूतों के संरक्षण और उनकी जांच में लापरवाही की तरफ इशारा करते हुए डॉ. शर्मा ने जेजे पोस्टमार्टम सेंटर द्वारा किए गए जिया के पोस्टमार्टम की वीडियो की मांग की है जिससे वो अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप सकें।
हत्या के निश्चित सबूत:
मिड डे से बात करते हुए राबिया खान ने कहा कि मेरी बेटी की निश्चित तौर पर हत्या की गई है, और पुलिस ने सबूतों को छिपा लिया है। अंतिम सबूत यही है, कि इसमें कोई ना कोई सम्मिलित था और उसे मारा गया है। फोरेंसिक विशेषज्ञों ने उसके नाखून में पाये गये मानव मांस पर डीएनए जांच क्यों नहीं की थी। क्यों नहीं पता लगाया कि यह किसका खून था।
वहीं राबिया के वकील दिनेश तिवारी का कहना है, "हमें 15 दिनों पहले 'एफएसएल' की रिपोर्ट मिली है, और वही रिपोर्ट डॉक्टर शर्मा को उनकी विशेष राय के लिए भेजा गया था। उनकी जांच के अनुसार उन्होंने बेहद गंभीर चिंताओं को उठाया जिसके लिए हमने एक पत्र 'एफएसएल' को लिखा जिसमें कहा गया था कि जिया के जो नमूने उनके पास भेजे गये थे उन्हें समाप्त ना किया जाए।
तिवारी आगे कहते है, "हम जल्द ही न्यायालय जा रहे है, जहाँ हम न्यायालय से ये दरखास्त करेंगे कि हमें शव परिक्षण की एक कॉपी प्रदान की जाए। साथ ही अगर जरुरत पड़ती है, तो हम हम शव के उत्खनन की भी मांग करेंगे।
वहीं जुहू पुलिस थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण शंकर राव भगत का कहना है, "मैं इस मामले पर इस वक़्त कोई टिप्पणी नहीं दे सकता, क्योंकि मैं बंदोबस्त ड्यूटी पर हूँ। मैं जब तक इस मामले के सारे कागज़ात नहीं देख लेता तब तक मैं कुछ नहीं बोल सकता। वहीं अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (पश्चिमी क्षेत्र) विश्वास नांगरे पाटिल ने कहा मैं इस मामले में सम्बंधित अधिकारीयों से मिलूंगा।
डॉ. आर के शर्मा की टिप्पणियां:
पोस्टमार्टम रिपोर्ट निम्नलिखित बातों विशेष उल्लेख की जरूरत है:
>>नील, (लगभग आकार 5x3 सेमी) जो बाएं हाथ पर फोटोग्राफ में साफ तौर पर दिखाई देते है, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इनका कहीं उल्लेख नहीं किया गया है।
>>आँखे बंद और जीभ अंदर, पीला कंजाक्तिवा और लार का अभाव सांस रुकने के संकेत नहीं है।
>>त्वचा पर दो बड़े चोट और रगड़ के निशान (एक काले और नीले या बैंगनी स्थान) (0.3 सेमी का आकार), वहीं दूसरी ओर निचले होंठ ताजगी और सीमा का पता करने के लिए कोई कटाव नहीं था।
>>निचले होंठ पर ताजगी और सीमा पता करने के लिए कटौती नहीं थी।
>>दोनों फेफडे सिकुड़ गये थे और ढह चुके थे। यह दम घुटने के लक्षण नहीं है। दोनों फेफड़ों के वजन का उल्लेख नहीं किया गया है, जो कि बहुत महत्वपूर्ण है।
>>चूंकि, जब इस मामले पेट में शराब की मात्रा बहुतायत में पाई गई है, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर किसी भी गंध को पहचानने में विफल रहे है।
विसरा और अन्य जैविक नमूने पर रिपोर्ट
निम्नलिखित बातों विशेष उल्लेख की जरूरत है:
अब क्योंकि शराब उड़नशील है, इसलिए उसकी मात्रा दिन पर दिन कम होती रहती है, और इस मामले में शराब को सुरक्षित रखने के लिए किसी परिरक्षण तकनीक जैसे कि सोडियम फ्लोराइड का भी प्रयोग नहीं किया गया था। यह बेहद सीधी सी बात है, कि जिया की मौत के दिन उनके उत्तकों और रक्त में, शराब की मात्रा ज्यादा थी। जबकि सैमपल की जांच में पूरे 15 दिन का समय लगा, जिसमें कुल 4 से 6 घंटे का समय लगता है।
मृतका के नाखून की कतरनों की परीक्षा के दौरान विश्लेषण में मानव मांस का पता चला है। जिनका कोई महत्व नहीं है, क्योंकि हमारे पास डीएनए फिंगरप्रिंटिंग जैसी बेहतर तकनीक उपलब्ध है। जब जाँच के दौरान नाखूनों से मानव मांस जैसे सबूत सामने आये है, तो नमूनों को नष्ट क्यों किया गया है। यह 'एफएसएल' की एक बहुत बड़ी भूल है। बल्कि 39 दिनों तक नमूनों पर किये गये परिक्षण ने रिपोर्ट को शंका में ही डाल दिया है।
पोस्टमार्टम परिक्षण उचित रूप से नहीं किया गया था। जैसे कि शारीर पर चोट के निशानों को अनदेखा कर दिया गया था। शारीर पर चोटों के निशान का ठीक से परिक्षण करने के लिए विडियो रिकॉर्डिंग्स को अच्छे से जांचना जरुरी है।
अंतिम विचार:
1. मृतक के शरीर में उच्च मात्रा में शराब के कारण मृतक शारीरिक तौर पर अक्षम था।
2. हो सकता है, कि जो शरीर पर चोटों के निशान थे वे संघर्ष के कारण हो।
3. ऐसी स्थिति में, यह संभव है, कि किसी ने मृतका को फांसी पर टांग दिया हो।
4. 'एफएसएल' की जांच को पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा नहीं किया गया है। नाखूनों की कतरन को डीएनए विश्लेषण के लिए ना भेजना बहुत बड़ी गलती है। साथ ही नमूनों को समाप्त कर देना स्वीकार करने लायक नहीं है।