इरफान ने यहां आईएएनएस को बताया, "हम आइटम नंबर वाले फिल्मकार नहीं बने रह सकते। बॉलीवुड को आइटम नंबर के लिए जाना जाता है, हमें इसे बदलना पड़ेगा। हमें सार्वभौमिक दर्शकों से इस तरह से जुड़ना होगा कि वे सोचें कि भारत से कुछ दिलचस्प सिनेमा बाहर आ रहा है।"
46 वर्षीय इरफान ने कहा, "हमें सार्वभौमिक भाषा की जरूरत है, जो कि 'किस्सा' और 'द लंचबॉक्स' में है।"
इरफान 'द नेमसेक' और ऑस्कर विजेता 'स्लमडॉग मिलियनेयर', 'लाइफ ऑफ पाई', 'मकबूल' और 'पान सिंह तोमार' जैसी फिल्मों में दमदार भूमिकाएं निभा चुके हैं।
इरफान अभिनीत 'द लंचबॉक्स' को दुनिया के कई फिल्म महोत्सवों में काफी सराहना मिली है।
अबु धाबी फिल्म महोत्सव के सातवें संस्करण में प्रदर्शित हुई 'किस्सा' ने भी दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ा।
इरफान ने कहा, "हमें कहानी कहने का ऐसा तरीका ढूंढने की जरूरत है जहां सार्वभौमिक दर्शक कहानी से खुद को जोड़ सकें।" इरफान का मानना है कि यह जिम्मेदारी निर्देशक और निर्माता की है।
उन्होंने कहा, "नए निर्माता ऐसे विषयों पर फिल्में बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन पर पहले विचार नहीं किया गया। 'मद्रास कैफे' एक उदाहरण है।"
'द लंचबॉक्स' के बजाय गुजराती फिल्म 'द गुड रोड' को ऑस्कर के लिए चुना गया है। इरफान को इससे कोई शिकायत नहीं है।
उनका कहना है, "क्या यह बेहतर नहीं है कि आपकी फिल्म को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया।"
'पान सिंह तोमर' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले इरफान ने कहा, "एक निर्माता और एक उद्योग के तौर पर, हमें बड़े बाजारों में अपनी मौजूदगी बनाने की जरूरत है।"