निर्माता-निर्देशक; संजय लीला भंसाली
अवधि: 155 मिनट
रेटिंग: 3.5
आपसी रंजिश, मार-काट, खून खराबा और असामाजिकता के बीच एक मासूम लेकिन मजबूत प्रेम की दास्तान है 'रामलीला'। जो एक बंजर भूमि में उस अकेले पौधे के समान है, जो अपने जीवन के लिए संघर्ष करता है, जो संजय लीला भंसाली की इस मसाला फ़िल्म की खासियत हैं। फ़िल्म की कहानी धीरे-धीरे परवान चढ़ती है और अंत में एक ऐसे चरम पर पहुंच जाती है, जहाँ मन भावुकता की जकड में आ जाता है।
भंसाली ने फ़िल्म में भरपूर रंग, चमक-दमक, हलकी फुलकी हंसी और मसाले के साथ-साथ मनोरंजन परोसा है। लेकिन फ़िल्म का सकारात्मक पहलु एक मजबूत प्रेम कहानी, कलाकारों का दमदार अभिनय और हिंदी सिने-जगत के कलाकारों का गुजरती रंग-ढंग और गुजरती भाषा का प्रयोग है।फ़िल्म की कहानी ब्रेक से पहले थोड़ी बोर लगती है, लेकिन जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, इसमें दिलचस्पी बढ़ती जाती है।
फ़िल्म की कहानी गुजरात की गलियों से शुरू होती है, जिसमें दो समुदायों रजाडो और सिनेडा के बीच 500 साल से दुश्मनी चली आ रही।और इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी वे एक दूसरे के खून के प्यासे है, और जिसे मौका मिल जाता है वही एक दूसरे को मौत के घाट उतार देता है। लेकिन इसी खूनी रंजिश और नफ़रत के बीच प्रेम का अंकुर फूटता है राम और लीला के बीच जिनके परिवारों के बीच सिर्फ एक ही रिश्ता है और वो हैं कट्टर दुश्मनी का।
कहानी: कहानी शुरू होती है, जब एक सिनेडा समुदाय का एक व्यक्ति भवानी (गुलशन देवियाह) राम (रणवीर सिंह) के भतीजे पर गोलियां चला देता है। लेकिन बच्चा बच जाता है। इसके बाद राम का बड़ा भाई (अभिमन्यु सिंह) अपने बेटे का बदला लेने के लिए सिनेडा समुदाय के लोगों पर हमला बोल देता है। लेकिन तभी ऐंट्री होती है, राम की जो एक दिल फेंक आशिक मिजाज़ और मस्त रहने वाला युवा है और मार-काट में यकीन नहीं करता बल्कि उसका मानना है कि युद्ध के मैदान में प्रेम का बीज बोने से युद्ध ही नहीं होगा। वह अपने भाई को भवानी का खून करने से रोक लेता है। फिर इस दिल फेक आशिक की नजरें टकराती है, उनकी दुश्मन बा (सुप्रिया पाठक) की बेटी लीला (दीपिका पादुकोण) से जिसकी बा जल्द से जल्द एक 'एनआरआई' से जबरजस्ती शादी कराना चाहती है। लेकिन जब राम और लीला आपस में मिल कर साथ जीने-मरने का वादा कर लेते है तो दोनों समुदायों के बीच मामला और बिगड़ जाता है। इसी बीच घटना घटती है कि दीपिका के भाई (शरद केलकर) के हाथों रणवीर के भाई को गोली लग जाती है, और राम अपना आपा खो कर लीला के भाई को गोली मार देता है। जिससे लीला पहले तो राम से नाराज हो जाती है लेकिन बाद में जब उसे समझ आता है कि यह आपसी रंजिश के ही कारण है तो दोनों घर से भाग जाते है। लेकिन जल्द ही दोनों पकडे भी जाते है। इसके बाद दौर शुरू होता है दोनों के बीच गलतफहमियों का जिसके कारण दोनों के बिच पारिवारिक दुश्मनी आ जाती है, और दोनों एक के बाद एक गलत फहमी के शिकार होते जाते है। लेकिन अंत में दोनों कुछ ऐसा काम करते है कि ये 500 सालों की दुश्मनी की दीवार धराशाही हो जाती है। राम और लीला ऐसा क्या करते है, ये जानने के लिए तो आपको फ़िल्म ही देखनी पड़ेगी।
अभिनय: फ़िल्म में सभी कलाकारों ने दमदार अभिनय दिया है। चलिए शुरुआत करते है रणवीर सिंह से जो फ़िल्म के हीरो है। रणवीर सिंह ने इस फ़िल्म में भी अपनी शुरुआती फ़िल्म 'बैंड बाजा बारात' के जोश और जूनून को बरक़रार रखा है। रणवीर सिंह ने 'राम' के किरदार को काफी फुर्ती और जोश के साथ निभाया है। वहीं दीपिका के बारे में तो यही कहा जाएगा "जहाँ जाती हैं छा जाती है" दीपिका अपने हर किरदार में बड़ी आसानी से ढल जाती है। फ़िल्म में लीला के किरदार में दीपिका ने अपनी बेहतरीन अदाकारी का प्रदर्शन दिया है।
वही 'बा' के किरदार में विलेन बनी सुप्रिया पाठक अपने सख्त किरदार को सबको चौंका देती है। विलेन के रूप में सुप्रिया ने बेहद मजबूत किरदार निभाया है। वहीं फुकरे की बिंदास और बोल्ड ऋचा चड्ढा ने गुजरात की एक पारम्परिक महिला का अभिनय अच्छे से किया है। इनके अलावा अभिमन्यु सिंह, गुलशन देवियाह, अंशुल त्रिवेदी और शरद केलकर ने भी अच्छा काम किया है।
संगीत: फ़िल्म में शीर्षक गाने समेत कुल 10 गाने है। जिनमें से प्रियंका पर फिल्माया शीर्षक गाना ' राम चाहे लीला चाहे लीला चाहे राम', खासा पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा 'इश्कियाउ डिस्काऊ', 'नगाड़ा', तत्तड़ तत्तड़' और 'लहू मुँह लग गया' जैसे गाने पहले ही अपनी पहचान बना चुके है। फ़िल्म के संगीत की ख़ास बात ये हैं कि यह फ़िल्म की परिस्थितियों के साथ मेल खाता है।
क्यों देखे: कैसे दो प्रेमी रक्तरंजित और खूंखार परस्थितियों को धीरे-धीरे एक मजबूत भावनात्मक स्तर पर ले कर जाते है। साथ ही इस प्रेमी जोड़े के रूप में पहली बार सिने-स्क्रीन पर दीपिका और रणवीर की केमिस्ट्री के लिए, जो समाज के लिए के संदेश भी छोड़ते है।
क्यों ना देखे: फ़िल्म में प्रयोग किये कुछ ऐसे दृश्यों और डायलॉग्स के लिए जिनका सामना करना आपको शायद ठीक ना लगे, खासकर परिवार के साथ। साथ ही फ़िल्म में अनावश्यक मसाले के लिए।