निर्देशक: अनिल शर्मा
स्टार: 3
फ़िल्म में, एक्शन है, रोमांस है, ड्रामा है, भावनाएं भी है। जब 'सिंह साहब द ग्रेट' (सनी देओल) ज़मीन पर पाँव रखते है, तो वहाँ की मिटटी काफी ऊपर तक उड़ जाती है। जब दुश्मन को ढाई से साढ़े तीन किलों में बदले हाथ से मुक्का पड़ता है, तो दुश्मन की हड्डियां तड़-तड़ करने लगती है, और वह उठता नहीं बल्कि हमेशा के लिए ही उठ जाता है। यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन जब सिंह साहब द ग्रेट रोमांस करते है तो दर्शकों को उन पर हंसी आती है।
'सिंह साहब द ग्रेट' 'बदला नहीं बदलाव' पर आधारित एक ऐसी फ़िल्म है। जिसमें सनी देओल भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत झौंक देते है। इसके लिए वह समाज के दुश्मनों से जमकर टक्कर लेते है। फ़िल्म में भरपूर एक्शन और मार धाड़ है।
अनिल शर्मा ने फ़िल्म में आज की दर्शकों की मांग को देखते हुए हर वह चीज जोड़ने की कोशिश की है, जो दर्शकों को पसंद आ सके। लेकिन बावजूद इसके फ़िल्म में कुछ ऐसी खामियां है, जो दिमाग को खलती है, और कहीं-कहीं सनी को देख कर निराशा होती हैं। कहा जा सकता है कि फ़िल्म को उस बारीकी से पिरोने में निर्देशक इतने सफल नहीं रहे है जितनी की उनसे आशा की जा रही थी।
अनिल शर्मा को हमेशा से उनके बड़े दृषिटकोण के लिए जाना जाता है। खासकर अगर बात सनी या धर्मेन्द्र की बात की जाए। यहाँ तक कि धर्मेन्द्र को तो उनके लिए लकी माना जाता है। क्योंकि उन्होंने अपनी फ़िल्म की शुरुआत तो 1981 में कर ली थी लेकिन उन्हें बड़ी सफलता दिलाने वाले धर्मेन्द ही थे। उन्होंने धरम जी के साथ पांच फ़िल्में की जिनमें से 'हुकूमत', 'ऐलान-ए-जंग', 'फ़रिश्ते', 'तहलका' और फिर 'अपने' और इन सभी फिल्मों ने अनिल शर्मा के करियर को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया था। इनमें से ज्यादातर फ़िल्में अपने समय की सबसे ज्यादा सफल और कमाई वाली फ़िल्में थी।
लेकिन जब अनिल शर्मा ने धर्मेन्द्र के बड़े बेटे सनी के साथ फ़िल्में की तो उन्होंने सफलता के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए। जिनमें से 'ग़दर' सबसे अच्छा उदाहरण है। यह फ़िल्म एक मील का पत्थर साबित हुई थी। 'ग़दर' के अलावा सनी और अनिल की 'द हीरो' और 'अपने' के बाद 'सिंह साहब द ग्रेट' चौथी फ़िल्म है।
कहानी: फ़िल्म की कहानी एक ऐसे ईमानदार कलैक्टर सरनजीत सिंह तलवार उर्फ़ सनी (सनी देओल) की है। जो गरीबों के लिए और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाला मसीहा है, और जिनका हर बार ईमानदारी के चलते यहाँ से वहाँ तबादल कर दिया जाता है। जिससे उनकी पत्नी निम्मी (उर्वशी रौतेला) बहुत परेशान है। खैर अब इस कलैक्टर का तबादला यूपी के जिस छोटे से शहर भदौरी में होता है। वहाँ के काले कारनामों का एक मात्र जागीरदार भूदेव (प्रकाश राज) है। जो हर वह गलत काम करता है जो देश और समाज की सुख और शांति में भंग डालता हो। जब दोनों आपस में टकराते है तो वहीं धुआंदार दुश्मनी और मारकाट शुरू होती है। जिसमें भूदेव पहले तो सनी को रिश्वत दे कर उनकी राह का रोड़ा बनने से रोकता है। लेकिन जब सनी उसकी इस हरकत का जवाब तमाचे से देता है, तो भूदेव समझ जाता है कि यहाँ सीधे-सीधे बात नहीं बनने वाली।ऐसे में वह सनी की बहन गुड्डी को निशाना बनाता है और गुड्डी के ससुर को डरा धमका कर ये आदेश देता है कि गुड्डी को उसकी शादी के दिन ज़हर दे दे। भूराज गुड्डी को मारने में तो कामयाब नहीं हो पाता लेकिन यह ज़हर गलती से सनी की पत्नी मिन्नी पी लेती है। अब भूराज उस डॉक्टर जो मिन्नी को बचा सकता है, उसके बेटे को किडनैप कर लेता है और सनी को कहता है कि यदि वह अपने आप को रिश्वत का दोषी मानते हुए इन पेपर्स पर साइन कर दे कि हाँ मैंने भूराज से रिश्वत ली थी, तो ही उसकी पत्नी का इलाज हो पाएगा। अब सनी के सामने दो चुनाव होते है, या तो वह अपने आप पर रिश्वत का झूठा आरोप स्वीकार करे, या फिर अपनी पत्नी की जान बचा ले। ऐसे में सनी पेपर पर साइन तो कर देता है, लेकिन मिन्नी को भी नहीं बचा पाता। मिन्नी अपने पति पर इस तरह का जूठा आरोप लगते नहीं देखना चाहती और वह इसीलिए खुद की जान ले लेती है।
अब सनी को जेल हो जाती है। लेकिन वह अपने एक पुलिस अधिकारी दोस्त की वजह से बिना किसी को बताए नाम बदलकर बाहर आ जाता है। अब सनी सिंह साहब के नाम से शहर बदलकर समाज में से सामाजिक बुराइयों की गंदगी को साफ़ करने का काम शुरू करता है। वह समाज सेवा करता है, और आम लोगों को सताने वाले पापियों का नाश भी। इसी बीच जब पत्रकार (अमृता राव) की उनसे मुलाकात होती है तो वह उन्हें पहचान जाती है कि ये सरनजीत सिंह तलवार उर्फ़ सनी है। जो रिश्वत के जुर्म में जेल में बंद था। पत्रकार महोदया सनी को पहले तो गलत समझ लेती है। लेकिन जब सनी उसे अपनी हकीकत बताता है तो वह सनी का साथ देने का वादा करती है। फिर एक बार सनी को मौका मिलता है उसी भदौरी शहर जाने का जहाँ उनकी पत्नी की कड़वी यादें भी जुडी है और भूदेव जैसा समाज का दुश्मन अभी भी वहाँ अपने काले साम्राज्य से मासूम लोगों पर राज कर रहा है।
एक बार फिर से शुरू होती दोनों की एक दूसरे के साथ टक्कर। जहाँ दोनों अपने-अपने तरीके से एक दूसरे को मात देने में जुट जाते है। अब इस जद्दो जहद में किसी जीत होती है और फ़िल्म का अंत क्या होता है। इसके लिए तो आपको जाकर फ़िल्म ही देखनी पड़ेगी।
अभिनय: जहाँ तक अभिनय का सवाल है। फ़िल्म का मुख्य किरदार सनी का है। सनी देओल हमेशा से ही अपने ढाई किलो के हाथ और अपने डायलॉग्स के लिए जाने जाते है। इस बार उनका ये ढाई किलो का हाथ तो, ढाई से साढ़े तीन हो गया है, जिससे उन्होंने जमकर विरोधियों की हड्डी-पसलियां तोड़ी है। लेकिन फ़िल्म में उनकी भारी आवाज के बावजूद भी डायलॉग्स में कुछ ख़ास दम नहीं दिखा। साथ ही पगड़ी और दाढ़ी के बिना उनकी उम्र भी साफ-साफ नज़र आ रही थी।
फ़िल्म के बाकी कलाकारों में, प्रकाश राज विलेन की भूमिका में, फ़िल्म 'वांटेड' और 'सिंघम' की तरह ही नज़र आए है। जो कभी-कभी सनी पर भारी भी पड़ते दिखे है। एक विलेन के किरदार में प्रकाश राज काफी प्रभावपूर्ण है। वहीं फ़िल्म में अमृता राव के अलावा उर्वशी रौतेला के पास करने के लिए कुछ खास नहीं था। वह सिर्फ नाचने गाने और कुछ एक रोमांटिक किरदार के लिय ही रखी गई थी। वहीं अमृता राव एक पत्रकार तो बनी थी पर उनमें पत्रकारों वाली बात कुछ नजर नहीं आई। वहीं जॉनी लिवर और संजय मिश्रा के पास करने के लिए ना कुछ खास था और ना ही वह फ़िल्म के अंत में दिमाग में रहते है। हाँ मनोज पाहवा और यशपाल शर्मा ने ठीक ठाक काम किया है।
संगीत: फ़िल्म का संगीत कुछ ज्यादा प्रभावी नहीं है। फ़िल्म में कुल पांच गाने है। जिसका शीर्षक गाना 'सिंह साहब द ग्रेट' है। इसे 'अलावा दारु बंद कल से', 'जब मेहँदी लग लग जावे', हीर और 'पलंग तोड़'...इन सभी गानों में से सिर्फ शीर्षक गाना और 'दारु बंद कल से' ही है जो लोगों के दिमाग में होगा। नहीं तो फ़िल्म के गाने कुछ ज्यादा ख़ास प्रभावी नहीं है।